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Join NowUP Madrasa Education Board: उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में इन दिनों एक ऐसी खामोशी पसरी हुई है, जिसकी गूंज प्रशासनिक गलियारों से लेकर सामाजिक मंचों तक सुनाई दे रही है। कभी बच्चों के शोर और धार्मिक तालीम की चहल-पहल से गुलजार रहने वाले यूपी के मदरसे आज एक ऐतिहासिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। पिछले एक दशक का डेटा कुछ ऐसी कड़वी हकीकत बयां कर रहा है, जिसने विशेषज्ञों को सोचने पर मजबूर कर दिया है—क्या उत्तर प्रदेश में मदरसों की पढ़ाई से विद्यार्थियों का मोह पूरी तरह भंग हो चुका है?
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10 साल और 80% की भारी गिरावट
सरकारी आंकड़ों और उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के रिकॉर्ड्स की मानें तो यह महज छोटी-मोटी कमी नहीं, बल्कि एक बड़ी गिरावट है। पिछले 10 वर्षों के भीतर यूपी के मदरसों में छात्र-छात्राओं की संख्या में 80 प्रतिशत की भारी कमी आई है। साल 2016 में जहां इन शिक्षण संस्थानों में सवा चार लाख के करीब विद्यार्थी तालीम ले रहे थे, वहीं 2025 के ताजा आंकड़े बताते हैं कि अब यह संख्या सिमटकर महज 80 हजार के करीब रह गई है।
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मदरसा बोर्ड के आंकड़े: साल-दर-साल घटती संख्या
यदि हम गहराई से आंकड़ों का विश्लेषण करें, तो 2016 में अनुदानित और मान्यता प्राप्त मदरसों में छात्रों की संख्या 4,22,667 थी। लेकिन 2017 में ही यह गिरकर 3,71,052 हो गई। असली झटका 2018 में लगा, जब करीब एक लाख छात्रों की कमी देखी गई और आंकड़ा 2,70,755 पर पहुंच गया।
इसके बाद गिरावट का सिलसिला नहीं रुका:
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2019: 2,06,337 छात्र
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2020: 1,82,259 छात्र
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2022: 1,63,999 छात्र
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2025: सिर्फ 88,082 छात्र
जालौन का ‘हैरतअंगेज’ मामला: बचा सिर्फ एक छात्र!
इस गिरावट के बीच सबसे चौंकाने वाली खबर यूपी के जिलों से आई है। जालौन जिले के अनुदानित मदरसों से इस साल की परीक्षा के लिए केवल एक छात्र ने आवेदन किया है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? एक पूरा जिला और अनुदानित मदरसा बोर्ड से सिर्फ एक आवेदन। इसी तरह अलीगढ़ से 6, जबकि एटा, बागपत और इटावा जैसे जिलों से मात्र 8-8 छात्रों ने आवेदन किया है। ये आंकड़े चीख-चीख कर कह रहे हैं कि जमीनी स्तर पर तस्वीर कितनी तेजी से बदल रही है।
कौन से शहर अब भी सबसे ऊपर हैं?
हालांकि कुछ शहरों में अब भी संख्या अन्य के मुकाबले ठीक है, लेकिन गिरावट वहां भी साफ दिखती है। प्रयागराज इस सूची में सबसे ऊपर है, जहां से 644 छात्रों ने आवेदन किया है। इसके बाद मऊ (636), आजमगढ़ (497), सिद्धार्थनगर (478) और राजधानी लखनऊ से 477 छात्रों ने परीक्षा के लिए अपना फॉर्म भरा है।
आधुनिक शिक्षा की ओर बढ़ता रुझान?
विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में अब मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा पारंपरिक धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा (Science, Maths and Computer Education) को ज्यादा तरजीह दे रहा है। नौकरियों की बढ़ती मांग और बदलते सामाजिक परिवेश ने अभिभावकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बेहतर भविष्य के लिए केवल धार्मिक शिक्षा पर्याप्त नहीं है। शायद यही कारण है कि सरकारी स्कूलों और प्राइवेट कॉन्वेंट स्कूलों की तरफ मुस्लिम छात्र-छात्राओं का झुकाव बढ़ रहा है।
यूपी के मदरसों का खाली होता आंगन शिक्षा व्यवस्था में एक बड़े बदलाव का संकेत है। जहां एक ओर इसे ‘मॉडर्नाइजेशन’ और ‘एजुकेशन रिफॉर्म्स’ के नजरिए से देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इन संस्थानों के भविष्य पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है। यह गिरावट क्या स्थायी होगी, या मदरसों में बदलाव लाकर इन्हें फिर से बच्चों के योग्य बनाया जाएगा, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।












