डेस्क। हम बात कर रहे हैं कोलकता के हावड़ा ब्रिज (Howrah bridge) की जो हमेशा से कोलकाता की पहचान रहा है। इस पुल को बने करीब 79 साल हो गए हैं। साल 1965 में इसका नाम रवींद्र सेतु रखा गया था जिसे बाद में बदलकर हावड़ा ब्रिज कर दिया गया था।
मीडिया रिपोर्ट की माने तो, 19वीं सदी के आखिरी दशकों में ब्रिटिश इंडिया सरकार ने कोलकाता और हावड़ा के बीच बहने वाली हुगली नदी पर एक तैरते हुए पुल के निर्माण की योजना बनाई क्योंकि उस दौर में हुगली में रोजाना कई जहाज आते जाते थे और खंभों वाला पुल से जहाजों की आवाजाही में रुकावट पैदा हो सकती थी।
साल 1936 में हावड़ा ब्रिज का निर्माण कार्य शुरू किया गया और 1942 में यह पूरा हो गया। उसके बाद 3 फरवरी, 1943 को इसे जनता के लिए खोल दिया गया और उस समय यह पुल दुनिया में अपनी तरह का तीसरा सबसे लंबा ब्रिज था।
इस पुल की खासियत ये है कि पूरा ब्रिज महज नदी के दोनों किनारों पर बने 280 फीट ऊंचे दो पायों पर टिका हुआ है। इसके दोनों पायों के बीच की दूरी डेढ़ हजार फीट की है। इन दो पायों के अलावा नदी में कहीं कोई पाया नहीं बना है, जो ब्रिज को सपोर्ट दे।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दिसंबर 1942 में जापान का एक बम इस ब्रिज से कुछ दूरी पर ही गिरा था, लेकिन यह ब्रिज तब भी ज्यों का त्यों ही खड़ा रहा और आज भारतीयों सहित विदेशियों के लिए भी पर्यटन का केन्द्र बन चुका है।