डेस्क। एक तरफ जहां देश में बात-बात पर धर्म के नाम पर दंगे होते रहते हैं तो वहीं आजमगढ़ जिले के डोरवा गांव की चौहान बस्ती के लोग लगभग 354 वर्षों से मुहर्रम मनाते हैं और आज भी यहां की ताजिया पूरे पूर्वांचल में मशहूर है।
ताजिया बनाने के लिए चार सोने के झूमर और 22 चांदी की कलशी सिंगापुर से मंगाई गई थी जो आज भी यहां मौजूद है।
गांव में ताजिया रखने के लिए गांव के बीच में इमामबाड़ा भी है और जहां 250 साल पुराना तंबू भी रखें है। जिसे रामदीन ने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर छह महीने में तैयार किया था और ताजिया को पूरे क्षेत्र में घुमाया जाता है। डोरवा के चौहान बस्ती और सुंदर सराय बल्लो के पठान लोगों के ताजिया का मिलन भी होता है।
सुंदर सराय बल्लो में स्थित कर्बला के मैदान में ताजिए को दफनाया जाता है वहीं गांव के बुजुर्ग सत्यदेव चौहान, बजरंगी चौहान, राजदेव चौहान, लक्ष्मण चौहान, गुलाब चौहान ने बताया कि यह परंपरा काफी पुरानी है जिसका हम लोग आज भी निर्वहन जरूर से करते हैं।
ग्रामीणों के मुताबिक, 354 वर्ष से पहले की बात है डोरवा चौहान बस्ती में एक परिवार भी रहता था। जिनका नाम टोकरी था। टोकरी के तीन पुत्र हुए गुज्जन, बाल गोविंद और धर्मू, गुंजन और बाल गोविंद की महामारी में मृत्यु भी हो गई। धर्मू को कोई संतान नहीं थी और तब उनके पिता टोकरी वंश को लाकर चिंतित रहने लगे। एक दिन एक फकीर उनके पास आए और उनकी चिंता का कारण भी पूछा।
टोकरी के बताने पर उस फकीर ने उन्हें अंजान शहीद में मनाई जाने वाली ताजिया के विषय में बताया है और ये कहा कि वहां जाकर प्रार्थना करें तब आपका वंश आगे भी चलेगा।
इस पर टोकरी अपने पुत्र धर्मू और बहू सत्यवती को मुहर्रम के समय लेकर अंजान शहीद गए और वहां प्रार्थना करी। एक साल के अंदर ही उनकी मनोकामना पूर्ण हुई और धर्मू को चार पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। धीरे-धीरे इनका वंश बढ़ता गया और आज 125 से अधिक घरों की चौहान बस्ती है। आज भी इस बस्ती के लोग इस परंपरा को निभाते हैं।