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Join NowDonald Trump : भारत में चुनावों के दौरान “मुफ्त सुविधाएं” या “फ्रीबीज” (Freebies) का शोर बहुत आम है। कभी फ्री बिजली, कभी मुफ़्त राशन, तो कभी सीधे बैंक खातों में नकद पैसे—भारतीय वोटर इन वादों का आदी हो चुका है। लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि दुनिया का सबसे शक्तिशाली और पूंजीवादी देश अमेरिका (USA) भी अब इसी रास्ते पर चल पड़ा है?
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ताजा खबर अमेरिका के वाइट हाउस से आई है, जहाँ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने एक ऐसा ऐलान किया है जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। जानकारों का कहना है कि भारत की चुनावी राजनीति में इस्तेमाल होने वाला यह ‘फ्री का फॉर्मूला’ अब सात समंदर पार अमेरिका की राजनीति को भी साधने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप का ‘वॉरियर डिविडेंड’ धमाका: क्रिसमस से पहले तोहफा
व्हाइट हाउस में दो शानदार क्रिसमस ट्री और अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन की तस्वीर के बीच खड़े होकर, डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ी घोषणा की। उन्होंने अमेरिका के 1.45 मिलियन (लगभग 14.5 लाख) सैनिकों को एक खास नकद बोनस देने का वादा किया है। इस बोनस को ट्रंप ने ‘वॉरियर डिविडेंड’ (Warrior Dividend) का नाम दिया है।
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कितनी मिलेगी रकम: प्रत्येक सर्विस मेंबर को 1,776 अमेरिकी डॉलर दिए जाएंगे। भारतीय मुद्रा में यह रकम करीब 1 लाख 60 हजार रुपये होती है।
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कब मिलेगा पैसा: राष्ट्रपति ने वादा किया है कि छुट्टियों (क्रिसमस और न्यू ईयर) से पहले यह पैसा सैनिकों के बैंक खातों में पहुंच जाएगा।
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उद्देश्य: ट्रंप का कहना है कि यह बोनस मिलिट्री परिवारों पर आर्थिक दबाव (Financial Pressure) कम करने में मदद करेगा। लेकिन दबी जुबान में आलोचक इसे टैरिफ से कमाए गए पैसों की ‘मुफ्त रेवड़ी’ बता रहे हैं।
क्यों याद आया ट्रंप को यह ‘देसी फॉर्मूला’? (US Mid-Term Elections 2026)
अब सवाल यह उठता है कि अचानक ट्रंप को सैनिकों की याद क्यों आई? राजनीति के माहिर खिलाड़ी जानते हैं कि कोई भी बड़ा फैसला बेवजह नहीं होता। दरअसल, इसके पीछे की मुख्य वजह है साल 2026 के मिड-टर्म चुनाव (Mid-Term Elections)।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से नीचे गिर रहा है। महंगाई और अंदरूनी कलह के कारण जनता नाराज है। मार्च 2026 में वहां चुनाव होने हैं और डर है कि ट्रंप की पार्टी को तगड़ा झटका लग सकता है। ऐसे में, सैनिकों को यह नकद राशि देकर ट्रंप अपनी गिरती हुई साख को बचाने और वोटर्स को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। यह बिलकुल वैसा ही है जैसा अक्सर हम भारत के राज्यों में चुनावों से ठीक पहले देखते हैं।
क्या होता है अमेरिका का मिड-टर्म चुनाव? (Understanding US Politics)
भारतीय पाठकों के लिए यह समझना दिलचस्प होगा कि आखिर मिड-टर्म चुनाव क्या बला है।
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अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव 4 साल के लिए होता है।
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लेकिन संसद (अमेरिकी कांग्रेस) के चुनाव हर 2 साल में होते हैं।
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चूंकि ये राष्ट्रपति के कार्यकाल के बीच में आते हैं, इसलिए इन्हें ‘मिड-टर्म इलेक्शन’ कहा जाता है।
अमेरिकी कांग्रेस दो सदनों से मिलकर बनती है—प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) और सीनेट (Senate)।
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प्रतिनिधि सभा: तय करती है कि किन कानूनों पर वोटिंग होगी।
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सीनेट: कानूनों को पास करने या रोकने की ताकत रखती है और राष्ट्रपति द्वारा की गई नियुक्तियों की जांच भी कर सकती है।
अगर मिड-टर्म में ट्रंप की पार्टी हारती है, तो राष्ट्रपति होते हुए भी ट्रंप ‘कमजोर’ पड़ जाएंगे क्योंकि वे आसानी से कोई कानून पास नहीं करा पाएंगे।
न्यूयॉर्क में जोहरान ममदानी का ‘फ्री-बीज’ मॉडल
अमेरिका में मुफ्त की राजनीति करने वाले ट्रंप अकेले नहीं हैं। इससे पहले न्यूयॉर्क (New York) में भी ऐसा ही एक नजारा देखने को मिला था। वहां मेयर का चुनाव लड़ने वाले जोहरान ममदानी (Zohran Mamdani) ने ‘मुफ्त सुविधाओं’ के वादों की झड़ी लगा दी थी और ऐतिहासिक जीत भी दर्ज की।
जरा देखिए, वहां के वादे भारतीय वादों से कितने मिलते-जुलते हैं:
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किराया फ्रीज: न्यूयॉर्क में 10 लाख किराए के अपार्टमेंट का किराया फिक्स (Freeze) कर दिया जाएगा, यानी मकान मालिक मनमर्जी से किराया नहीं बढ़ा सकेंगे।
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फ्री बस सेवा: सभी सिटी बसों का किराया माफ़ कर दिया गया ताकि गरीबों पर बोझ कम हो।
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मुफ्त चाइल्डकेयर: 6 हफ्ते से लेकर 5 साल तक के बच्चों की देखरेख मुफ्त होगी।
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सस्ती ग्रोसरी: खाने-पीने की चीजें थोक भाव पर बेचने के लिए सरकारी स्टोर बढ़ाए जाएंगे।
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सैलरी में बढ़ोतरी: 2030 तक न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाकर 30 डॉलर प्रति घंटा करने का वादा।
अमेरिका की चकाचौंध के पीछे का सच: महंगा हेल्थकेयर
बहुत से लोगों को लगता है कि अमेरिका स्वर्ग है, लेकिन वहां की जमीनी हकीकत कुछ और ही है। हालांकि वहां लोगों की कमाई (Income) भारत से बहुत ज्यादा है, लेकिन हेल्थकेयर (Healthcare) का खर्चा किसी की भी जेब खाली कर सकता है।
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दुनिया का सबसे महंगा इलाज: अमेरिका में इलाज का खर्च अन्य विकसित देशों से दोगुना है।
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बीमा है तो जीवन है: वहां सब कुछ ‘हेल्थ इंश्योरेंस’ पर चलता है। अगर किसी के पास इंश्योरेंस नहीं है और वह बीमार पड़ गया, तो समझो वह कर्ज में डूब गया।
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मुनाफाखोरी: वहां का हेल्थ सिस्टम ‘प्रॉफिट’ (Profit) पर चलता है, न कि ‘सेवा’ पर। दवाइयों की कीमतें आसमान छू रही हैं।
ऐसे में, जब नेताओं द्वारा नकद बोनस या फ्री सुविधाओं की बात की जाती है, तो वहां की जनता (जो महंगाई से त्रस्त है) भी इन वादों के जाल में फंस जाती है। ट्रंप का 1,776 डॉलर का दांव इसी दुखती नब्ज पर हाथ रखने जैसा है।
क्या चुनाव जीत पाएंगे ट्रंप?
भारत से शुरू हुआ यह ‘फ्री रेवड़ी’ का ट्रेंड अब ग्लोबल हो चुका है। ट्रंप का यह दांव मार्च 2026 में कितना सफल होगा, यह तो वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि सत्ता पाने या बचाने के लिए दुनिया भर के नेता अब “शॉर्टकट” और “नकद नारायण” के फॉर्मूले पर भरोसा करने लगे हैं।










