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Join NowShashi Tharoor: भारतीय राजनीति के ‘शब्दों के जादूगर’ कहे जाने वाले और केरल से कांग्रेस सांसद, शशि थरूर (Shashi Tharoor) एक बार फिर चर्चा के केंद्र में हैं. लेकिन इस बार मामला उनकी अंग्रेजी डिक्शनरी का नहीं, बल्कि एक सियासी ‘यू-टर्न’ और विचारधारा की लड़ाई का है. अक्सर अपने बयानों के चलते अपनी ही पार्टी (कांग्रेस) को असहज करने वाले थरूर इस बार एक नई अग्निपरीक्षा से गुजरे हैं और ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया है.
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मामला ‘वीर सावरकर इंटरनेशनल इम्पैक्ट अवार्ड 2025’ (Veer Savarkar International Impact Award 2025) से जुड़ा है, जिसे लेकर दिल्ली से केरल तक सियासत गरमा गई है.
आखिर क्या है पूरा विवाद? (The Main Controversy)
दरअसल, एक एनजीओ ‘HRDS इंडिया’ (मानव संसाधन विकास सोसाइटी) ने घोषणा की कि वे शशि थरूर को वीर सावरकर अवार्ड से सम्मानित करने जा रहे हैं. जैसे ही यह खबर सियासी गलियारों में फैली, कयासों का बाजार गर्म हो गया कि क्या थरूर अब सावरकर (Veer Savarkar) की विचारधारा—जो भाजपा और आरएसएस के करीब है—की तरफ झुक रहे हैं?
लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आया जब शशि थरूर ने साफ शब्दों में इस पुरस्कार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया.
शशि थरूर का पक्ष: “मुझसे तो पूछा ही नहीं गया”
इस पूरे घटनाक्रम पर शशि थरूर ने हैरानी जताई है. उनका कहना है कि अवार्ड के लिए उनके नाम की घोषणा “बिना उनकी सहमति” के कर दी गई.
थरूर ने सोशल मीडिया (X) पर और मीडिया से बातचीत में अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, “मुझे तो मीडिया रिपोर्ट्स के जरिए पता चला कि मेरा नाम इस अवार्ड के लिए चुना गया है और दिल्ली में समारोह हो रहा है. आयोजकों ने मुझसे पूछे बिना मेरा नाम घोषित किया, जो पूरी तरह गैर-जिम्मेदाराना है.
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उन्होंने आगे कहा कि जब पुरस्कार की प्रकृति और संदर्भ के बारे में कोई स्पष्टता नहीं थी, तो उसे स्वीकार करने का सवाल ही नहीं उठता.
आयोजकों का दावा: “डर गए थरूर, पहले थे तैयार”
वहीं, दूसरी तरफ कहानी कुछ और ही बयां कर रही है. HRDS इंडिया के सचिव अजी कृष्णन ने थरूर के दावों को खारिज कर दिया है. उन्होंने एक चौंकाने वाला बयान दिया. कृष्णन का दावा है कि उनके प्रतिनिधि और जूरी चेयरमैन खुद थरूर के आवास पर गए थे और उन्हें आमंत्रित किया था.
अजी कृष्णन ने तो यहाँ तक कह दिया कि, “शशि थरूर ने हमसे उन लोगों की लिस्ट भी मांगी थी जिन्हें यह पुरस्कार दिया जा रहा है. शायद अब वे डर गए हैं (Maybe he is scared), क्योंकि कांग्रेस ने इसे मुद्दा बना दिया है.”
अब सवाल यह उठता है कि अगर थरूर ने हामी नहीं भरी थी, तो आयोजकों ने उनका नाम कंफर्म कैसे मान लिया? और अगर हामी भरी थी, तो अचानक ‘ना’ क्यों?
बीजेपी प्रेम या कांग्रेसी वफादारी? (Congress vs BJP Ideology)
शशि थरूर का राजनीतिक करियर हमेशा एक टाइटरोप वॉक (Tightrope Walk) जैसा रहा है. एक तरफ वो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की टीम के सदस्य हैं, तो दूसरी तरफ वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की तारीफ करने से भी नहीं चूकते.
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मोदी और पुतिन का डिनर: हाल ही में जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन भारत आए, तो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के भोज में राहुल गांधी और खड़गे को न्योता नहीं मिला, लेकिन थरूर वहां मौजूद थे. कांग्रेस ने इस पर ऐतराज जताया, लेकिन थरूर ने इसे अपनी ‘संसदीय जिम्मेदारी’ बताया.
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‘ऑपरेशन सिंदूर’ और विदेश नीति: केंद्र सरकार ने कई बार विदेश नीति के मसलों पर थरूर को तरजीह दी है. केरल में पीएम मोदी ने मंच से कटाक्ष भी किया था कि थरूर के साथ उन्हें देखकर कई लोगों की नींद उड़ जाएगी.
इन्हीं घटनाओं की वजह से कयास लगाए जा रहे थे कि क्या थरूर कांग्रेस छोड़ने का मन बना रहे हैं? लेकिन सावरकर अवार्ड को ठुकरा कर उन्होंने यह साबित कर दिया है कि वे अभी कहीं नहीं जा रहे हैं. उन्होंने साफ संदेश दिया है कि वैचारिक रूप से वे आज भी ‘गांधीवादी कांग्रेस’ के साथ हैं, ‘सावरकरवादी विचारधारा’ के साथ नहीं.
G-23 और ‘पराये’ अपने
थरूर कांग्रेस के उन G-23 नेताओं में शामिल रहे हैं, जिन्होंने पार्टी में सुधार की मांग की थी. वे मानते हैं कि मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना होनी चाहिए, लेकिन उन पर निजी हमले (Personal Attacks) नहीं होने चाहिए. यही वजह है कि सोनिया और राहुल गांधी कई बार उनसे नाराज भी रहते हैं.
2014 में मोदी ने उन्हें “50 करोड़ की गर्लफ्रेंड” वाला ताना दिया था, लेकिन थरूर ने हमेशा ग्रेसफुल राजनीति की है. हालिया पॉडकास्ट में भी उन्होंने कहा था कि “मेरे पास और भी काम हैं”, जिसे मीडिया ने उनके इस्तीफे के संकेत के रूप में लिया, लेकिन उन्होंने इसे भी खारिज कर दिया.
10 दिसंबर को दिल्ली में हुए कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा (Manoj Sinha) मुख्य अतिथि थे, जहां सावरकर की जमकर तारीफ हुई. अगर थरूर वहां जाते, तो यह कांग्रेस में उनके करियर के लिए आत्मघाती हो सकता था.
सावरकर अवार्ड को ‘ना’ कहकर शशि थरूर ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे कांग्रेस में इसलिए शामिल हुए थे क्योंकि वे इसकी विचारधारा से इत्तफाक रखते हैं. चाहे भाजपा या आयोजक कुछ भी कहें, इस बार थरूर ने साबित कर दिया कि वे कांग्रेस के पक्के सिपाही हैं.















