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Join NowNuclear Energy Bill: बुधवार का दिन भारतीय संसद और ऊर्जा क्षेत्र के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा या विवादों में—यह तो वक्त बताएगा, लेकिन लोकसभा में जो हुआ उसने देश की राजनीति को गरमा दिया है। लोकसभा (Lok Sabha) ने तमाम विरोधों और शोर-शराबे के बीच परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी भागीदारी (Private Participation in Nuclear Energy) की अनुमति देने वाले विधेयक को हरी झंडी दे दी है।
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मोदी सरकार ने इसे ‘भारत के रूपांतरण के लिए नाभिकीय ऊर्जा का संधारणीय दोहन और अभिवर्द्धन (शांति) विधेयक, 2025’ नाम दिया है। सरकार इसे “गेम चेंजर” बता रही है, जबकि विपक्ष इसे “कॉरपोरेट के लिए रेड कार्पेट” बिछाने जैसा बता रहा है।
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संसद में क्या हुआ? (The Lok Sabha Showdown)
जैसे ही केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह (Jitendra Singh) ने विधेयक पर चर्चा का जवाब देना शुरू किया, विपक्ष ने कड़े सवाल पूछने शुरू कर दिए। सरकार की दलीलों से असंतुष्ट होकर कांग्रेस (Congress), द्रमुक (DMK) और सपा (SP) समेत कई विपक्षी दलों ने सदन से वॉकआउट (Walkout) कर दिया। विपक्ष की गैर-मौजूदगी में विधेयक को ध्वनिमत (Voice Vote) से पारित कर दिया गया।
सरकार का दावा है कि यह बिल 2047 तक भारत को ‘आत्मनिर्भर’ बनाने के लिए जरूरी है, लेकिन विपक्ष का कहना है कि यह एक “संवेदनशील क्षेत्र” है और इसमें निजी हाथों को खेल खेलने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
क्या अब ‘प्राइवेट प्लेयर’ संभालेंगे देश की सुरक्षा?
विपक्ष का सबसे बड़ा डर यही है। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी (Manish Tiwari) ने बहस के दौरान सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि इस बिल में ‘आपूर्तिकर्ता के उत्तरदायित्व’ (Supplier Liability) का कोई ठोस प्रावधान नहीं है। इसका सीधा मतलब है कि अगर कल को कोई हादसा होता है या मशीनरी में खराबी आती है, तो क्या प्राइवेट कंपनियां अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेंगी?
तिवारी ने पुरानी यादें ताजा करते हुए कहा कि 2008 में जब मनमोहन सिंह सरकार न्यूक्लियर डील (Nuclear Deal) ला रही थी, तब भाजपा ने ही उसका विरोध किया था। उन्होंने सवाल दागा, “तब आप जिसे देश विरोधी बता रहे थे, आज वही आपके लिए विकास की सीढ़ी कैसे बन गया?
दूसरी ओर, कांग्रेस सांसद शशि थरूर (Shashi Tharoor) ने तकनीकी खतरे का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि सरकार ने रेडियोधर्मी पदार्थों (Radioactive Materials) और परमाणु कचरे (Nuclear Waste) से जुड़े जोख़िमों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया है। थरूर का तर्क था कि मुनाफा कमाने के चक्कर में सुरक्षा से समझौता एक बहुत बड़ी तबाही ला सकता है।
सरकार का मास्टरस्ट्रोक: “पुराने नियम अब नहीं चलेंगे”
विपक्ष के तमाम आरोपों को खारिज करते हुए परमाणु ऊर्जा राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने सदन में एक बड़ा विजन रखा। उन्होंने स्पष्ट किया कि:
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37,000 करोड़ का बजट: परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में बड़ा निवेश किया जा रहा है।
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100 गीगावाट का लक्ष्य: सरकार का लक्ष्य 2047 तक 100 गीगावाट (100 GW) स्वच्छ ऊर्जा (Clean Energy) का उत्पादन करना है, जो केवल सरकारी संसाधनों से संभव नहीं है।
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सुरक्षा से समझौता नहीं: मंत्री ने भरोसा दिलाया कि सुरक्षा के वही कड़े इंतजाम रहेंगे जो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय तय किए गए थे। “निजी क्षेत्र आएगा, लेकिन नियंत्रण और सुरक्षा की चाबी सरकार के पास ही रहेगी।”
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ऑपरेटर की जिम्मेदारी: यदि कोई नुकसान होता है, तो उसकी भरपाई संचालक (Operator) को ही करनी होगी। इसके लिए एक ‘परमाणु उत्तरदायित्व कोष’ (Nuclear Liability Fund) भी बनाया जाएगा।
जब विपक्ष ने भाजपा के पुराने विरोध (अरुण जेटली के बयानों) की याद दिलाई, तो मंत्री ने मुस्कुराते हुए कहा, “समय बदल गया है। आज दुनिया भारत का अनुसरण कर रही है, हम दुनिया के पीछे नहीं चल रहे।”
2047 का रोडमैप: ‘आत्मनिर्भर भारत’ की नई तस्वीर
भाजपा सांसद शशांक मणि ने इस बिल का पुरजोर समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक ‘विकसित भारत’ के रथ को गति देगा। भारत की ऊर्जा जरूरतें तेजी से बढ़ रही हैं। कोयले और पेट्रोल पर निर्भरता कम करने के लिए और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से निपटने के लिए परमाणु ऊर्जा ही एकमात्र रास्ता है। दुनिया पहले ही ‘ग्रीन एनर्जी’ की तरफ मुड़ चुकी है, और भारत पीछे नहीं रह सकता।
आम जनता पर इसका क्या असर होगा?
अमेरिका (USA) और ब्रिटेन (UK) जैसे देशों में पहले से ही परमाणु ऊर्जा उत्पादन में निजी कंपनियों का बड़ा रोल है। भारत में इस बिल के पास होने का मतलब है कि आने वाले समय में टाटा, रिलायंस या अडानी जैसे बड़े समूह इस क्षेत्र में उतर सकते हैं।
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सकारात्मक: बिजली की भारी किल्लत खत्म हो सकती है। बिजली सस्ती और स्वच्छ मिल सकती है।
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नकारात्मक: अगर सुरक्षा मानकों में ढील दी गई, तो परिणाम भयावह हो सकते हैं। विपक्ष इसी ‘अगर-मगर’ की लड़ाई लड़ रहा है।
संसद से पास हुआ यह ‘शांति विधेयक’ (SHANTI Bill 2025) वास्तव में कितना शांतिपूर्ण रहेगा, यह भविष्य के गर्भ में है। एक तरफ भारत को ऊर्जा महाशक्ति बनाने का सपना है, तो दूसरी तरफ परमाणु विकिरण का अनजाना डर। फिलहाल, गेंद अब राज्यसभा और उसके बाद निजी कंपनियों के पाले में है।










