Delhi Air Pollution : GRAP फेल या सिस्टम लाचार? जानिए क्यों ‘गैस चैंबर’ बनती जा रही है देश की राजधानी

Published On: December 16, 2025
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Delhi Air Pollution : GRAP फेल या सिस्टम लाचार? जानिए क्यों 'गैस चैंबर' बनती जा रही है देश की राजधानी

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Delhi Air Pollution : पिछले दो महीनों से देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास का इलाका (NCR) एक गहरी धुंध की चादर में लिपटा हुआ है। नवंबर से लेकर अब दिसंबर के मध्य तक, Air Quality Index (AQI) लगातार खतरे के निशान से ऊपर बना हुआ है। कभी थोड़ी राहत मिलती है, तो कभी हालात इतने बिगड़ जाते हैं कि घर से बाहर निकलना भी दूभर हो जाता है।

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खासकर, 15 दिसंबर 2025 को जो हुआ, उसने सबको डरा दिया है। कुछ इलाकों में AQI का स्तर 600 के पार चला गया। यह ‘सीवियर’ (Severe) यानी गंभीर श्रेणी से भी कहीं आगे है। GRAP (ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान) के नियम लागू तो होते हैं, लेकिन जैसे ही थोड़ी हवा चलती है, नियम ढीले पड़ जाते हैं और प्रदूषण फिर वापस आ जाता है।

सवाल यह है कि आखिर हम गलती कहां कर रहे हैं? क्यों हर साल सर्दियों में दिल्ली का दम घुटने लगता है? आइए, वैज्ञानिक तथ्यों और वैश्विक उदाहरणों के जरिए इस समस्या की गहराई को समझते हैं।

आखिर क्यों जहरीली हो रही है दिल्ली की हवा? (Causes of Delhi Pollution)

दिल्ली का प्रदूषण किसी एक वजह से नहीं है, बल्कि यह कई कारणों का एक खतरनाक कॉकटेल है। वैज्ञानिकों और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की ताजा रिपोर्ट्स बताती हैं कि इसके मुख्य गुनहगार कौन हैं:

  1. वाहनों का जानलेवा धुआं (Vehicle Emissions):
    दिल्ली की सड़कों पर रेंगती गाड़ियों की कतारें सबसे बड़ी विलेन हैं। ये गाड़ियां PM2.5 (ऐसे कण जो बालों से भी 100 गुना पतले होते हैं) और NO2 (नाइट्रोजन डाइऑक्साइड) छोड़ती हैं। CSE की रिपोर्ट साफ कहती है कि सर्दियों में प्रदूषण बढ़ने की मुख्य वजह ट्रैफिक है। सुबह और शाम के पीक ऑवर्स में, जब आप ऑफिस जा रहे होते हैं, तब ठंडी हवा में यह धुआं फंस जाता है और एक जहरीली परत बना देता है।

  2. सर्दियों का ‘इनवर्शन’ इफेक्ट (Weather & Inversion):
    क्या आपने सोचा है कि गर्मियों में इतना प्रदूषण क्यों नहीं दिखता? वजह है मौसम। सर्दियों में हवा की गति धीमी हो जाती है और तापमान गिर जाता है। विज्ञान की भाषा में इसे ‘इनवर्शन लेयर’ (Inversion Layer) कहते हैं। इसमें ठंडी हवा जमीन के पास भारी होकर बैठ जाती है और उसके ऊपर गर्म हवा की परत होती है। यह प्रदूषण को ऊपर उड़ने ही नहीं देती। यही कारण है कि दिसंबर में AQI 400-500 तक पहुंच जाता है।

  3. पराली का धुंआ (Stubble Burning):
    हालांकि, इस साल बाढ़ और अन्य कारणों से पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं कम हुई हैं, लेकिन प्रदूषण कम नहीं हुआ। इसका मतलब साफ है—पराली का योगदान 5-15% जरूर है, लेकिन स्थानीय स्रोत (Local Sources) यानी दिल्ली का अपना कचरा और धुआं ज्यादा जिम्मेदार है।

  4. अन्य कारण:
    धूल उड़ते निर्माण कार्य, फैक्ट्रियों का धुआं, कचरा जलाना और दिल्ली की भौगोलिक स्थिति (इंडो-गैंजेटिक प्लेन), जो प्रदूषण को ट्रैप कर लेती है।

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WHO की चेतावनी और स्वास्थ्य पर असर

आज दिल्ली की हवा में PM2.5 की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सुरक्षित सीमा से 30 गुना ज्यादा है। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है; यह जहर सीधे हमारे और आपके बच्चों के फेफड़ों में घुस रहा है। इससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और दिल की बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ गया है।

क्यों बेअसर हो रहा है GRAP? (Why GRAP is failing?)

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सरकार ने प्रदूषण से लड़ने के लिए GRAP बनाया है, जो चार चरणों (Stages) में काम करता है:

  • स्टेज 1 (AQI 201-300): धूल पर नियंत्रण, जनरेटर पर रोक।

  • स्टेज 2 (AQI 301-400): ऑफिस टाइमिंग में बदलाव।

  • स्टेज 3 (AQI 401-450): निर्माण कार्य बंद, BS-III पेट्रोल और BS-IV डीजल गाड़ियों पर रोक।

  • स्टेज 4 (AQI 450+): ट्रकों की एंट्री बंद, स्कूल ऑनलाइन।

दिसंबर में स्टेज 3 और 4 लागू किए गए, फिर भी असर कम दिखा। विशेषज्ञ मानते हैं कि GRAP एक ‘रिएक्टिव’ (Reactive) कदम है—यानी आग लगने पर कुआं खोदना। यह तब लागू होता है जब हवा खराब हो चुकी होती है। इसके अलावा, नियमों को तोड़ने पर सजा का डर कम है और साल भर प्रदूषण के स्रोतों पर काम नहीं किया जाता।

दुनिया से सीखें: कैसे जीतीं दूसरे शहरों ने यह जंग?

अगर आपको लगता है कि यह समस्या लाइलाज है, तो दुनिया के इन शहरों को देखें जिन्होंने अपनी हवा साफ कर ली:

  • बीजिंग, चीन (Beijing Model): 2013 में बीजिंग की हालत दिल्ली जैसी थी। उन्होंने कठोर फैसला लिया—कोयले की जगह गैस का इस्तेमाल शुरू किया, प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों को शहर से बाहर किया और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया। आज वहां PM2.5 का स्तर 50% तक कम हो गया है।

  • लंदन, ब्रिटेन (London Smog): 1952 के भयानक स्मॉग के बाद लंदन ने कोयला बैन किया और ‘कंजेशन चार्ज’ लगाया ताकि लोग प्राइवेट कारों का इस्तेमाल कम करें।

  • लॉस एंजिल्स और मैक्सिको सिटी: यहां भी पुराने वाहनों को हटाकर (Scrapping Policy) और पब्लिक ट्रांसपोर्ट (Metro/Buses) को बेहतर बनाकर हवा सुधारी गई।

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अब दिल्ली को क्या करना होगा?

दिल्ली को अब GRAP जैसे अस्थायी समाधानों से आगे सोचना होगा। हमें साल भर चलने वाली योजना (Year-round Action Plan) की जरूरत है।

  1. पब्लिक ट्रांसपोर्ट और इलेक्ट्रिक बसों की संख्या बढ़ानी होगी।

  2. पंजाब, हरियाणा और यूपी के साथ मिलकर काम करना होगा (Regional Cooperation)।

  3. सख्त कानून और भारी जुर्माना लगाना होगा।

वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर सही राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनता का सहयोग मिले, तो अगले 5-10 सालों में दिल्ली फिर से खुलकर सांस ले सकती है।

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