Home Loan : आज के आधुनिक युग में अपना खुद का घर खरीदना (Buying a Home) पहले से कहीं ज़्यादा सुलभ (Easier) हो गया है। इसका सबसे बड़ा श्रेय होम लोन (Home Loan) की उपलब्धता को जाता है। विशेष रूप से भारत के बड़े शहरों (Big Cities) में, वेतनभोगी लोग (Salaried Individuals) आसानी से होम लोन लेकर (Taking Home Loan) अपने सपनों का आशियाना (Dream Home) खरीद पा रहे हैं। अब तो छोटे शहरों (Small Cities) में भी फ्लैट कल्चर (Flat Culture) तेज़ी से बढ़ रहा है, और वहाँ भी होम लोन (Home Loan) लोगों को अपना घर बनाने में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान कर रहा है।
हालांकि, जीवन में कई बार अप्रत्याशित परिस्थितियाँ (Unexpected Circumstances) आ जाती हैं। कई बार ग्राहक विभिन्न कारणों से अपने होम लोन (Home Loan) की मासिक किस्त (EMI – Equated Monthly Installment) समय पर नहीं चुका पाते हैं। ऐसी स्थिति विशेष रूप से तब उत्पन्न हो सकती है जब नौकरी छूट जाए (Job Loss) या कोई अचानक मेडिकल इमरजेंसी (Medical Emergency) आ जाए। ऐसे में होम लोन की EMI भरने से चूक (Missing EMI Payment) जाना स्वाभाविक हो सकता है। लेकिन क्या आपको पता है कि होम लोन की EMI नहीं चुकाने पर क्या होता है? बैंक कितनी ईएमआई तक का इंतजार करता है और उसके बाद क्या कार्रवाई (Action) करता है? दरअसल, होम लोन (Home Loan) को बैंकों द्वारा सिक्योर्ड लोन (Secured Loan) की कैटेगरी में रखा जाता है। इसका मतलब है कि लोन के बदले, ग्राहक को बैंक के पास गारंटी के तौर पर अपनी संपत्ति (Property) को गिरवी (Mortgage) रखना होता है।
सबसे पहले बैंक करता है ये काम… (This is what the bank does first…)
अब आइए जानते हैं कि जब कोई ग्राहक होम लोन (Home Loan) नहीं चुकाता है तो आरबीआई की गाइडलाइंस (RBI Guidelines) क्या कहती हैं। अगर कोई ग्राहक अपनी होम लोन की पहली किस्त (First EMI) नहीं चुकाता है, तो आमतौर पर बैंक या वित्तीय संस्थान (Financial Institution) इसे बहुत गंभीरता से नहीं लेते हैं। बैंक यह मान सकता है कि किसी कारणवश एक ईएमआई (One EMI) में देरी हो रही है।
लेकिन जब ग्राहक लगातार दो EMI (Two Consecutive EMIs) भरने में विफल रहता है, तो बैंक सबसे पहले ग्राहक को एक रिमाइंडर (Reminder) भेजता है। यह एक औपचारिक सूचना होती है। इसके बाद भी अगर ग्राहक तीसरी EMI (Third EMI) का भुगतान करने में असफल रहता है, तो बैंक फिर ग्राहक को लोन चुकाने के लिए एक कानूनी नोटिस (Legal Notice) भेजता है। यह नोटिस दर्शाता है कि बैंक अब मामले को गंभीरता से ले रहा है।
एक तरह से, तीसरी EMI नहीं चुकाने के साथ ही बैंक वसूली कार्रवाई (Recovery Action) के मूड में आ जाता है। अगर ग्राहक कानूनी नोटिस मिलने के बाद भी लोन नहीं चुकाता है, तो फिर बैंक ग्राहक को डिफॉल्टर (Defaulter) घोषित कर देता है। इसके साथ ही बैंक उस होम लोन अकाउंट (Home Loan Account) को एनपीए (NPA – Non-Performing Asset) मान लेता है। एनपीए का मतलब है गैर-निष्पादित परिसंपत्ति, यानी एक ऐसा लोन जिससे बैंक को आय प्राप्त नहीं हो रही है। आरबीआई के दिशानिर्देशों के अनुसार, लोन अकाउंट को एनपीए तब घोषित किया जाता है जब किस्तें 90 दिनों से अधिक समय तक बकाया हों। अन्य वित्तीय संस्थाओं के मामले में, यह सीमा 120 दिन तक हो सकती है। इस समय सीमा के बाद, बैंक लोन की वसूली प्रक्रिया (Recovery Process) के बारे में गंभीरता से सोचने लगता है।
RBI की ये है गाइंडलाइंस (These are RBI’s Guidelines)
जैसा कि पहले बताया गया है, सिक्योर्ड लोन (Secured Loan) जैसे कि होम लोन (Home Loan) में, लोन के बदले प्रॉपर्टी को गिरवी रखा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि यदि ग्राहक लोन नहीं चुका पाता है, तो बैंक उस प्रॉपर्टी को बेचकर (Selling the Property) अपने लोन की भरपाई कर सके। हालांकि, बैंक की तरफ से प्रॉपर्टी को बेचना आखिरी विकल्प (Last Resort) होता है।
आरबीआई की गाइडलाइंस (RBI Guidelines) के मुताबिक, बैंक को ग्राहक को लोन चुकाने (Repaying the Loan) के लिए काफी समय देना पड़ता है। बैंक के पास अपने पैसे वापस लेने के लिए कानूनी तौर पर आखिरी विकल्प (Last Resort) के तौर पर गिरवी रखी संपत्ति की नीलामी (Auction of Mortgaged Property) करने का अधिकार होता है। नीलामी से मिली राशि का उपयोग लोन की बकाया रकम (Outstanding Loan Amount) की भरपाई के लिए किया जाता है।
मोटे तौर पर, बैंक तीन महीने (Three Months) की ईएमआई (EMI) नहीं चुकाने के बाद ग्राहक को बकाया चुकाने के लिए लगभग दो महीने (Two More Months) का और समय देता है। यह एक अतिरिक्त मौका होता है। अगर ग्राहक इस बढ़ाए गए समय में भी चूक जाते हैं, तो बैंक ग्राहक को उनकी संपत्ति के अनुमानित मूल्य (Estimated Property Value) के साथ एक नीलामी नोटिस (Auction Notice) भेजता है। इस नोटिस में नीलामी की तारीख और अन्य विवरण दिए होते हैं। यदि ग्राहक नीलामी की निर्धारित तारीख से पहले, यानी नीलामी नोटिस मिलने के लगभग एक महीने (One Month) बाद भी बकाया किस्तें नहीं भरता है, तो बैंक कानूनी तौर पर नीलामी औपचारिकताओं (Auction Formalities) के साथ आगे बढ़ सकता है।
हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, जो लगभग 6 महीने (Six Months) तक चल सकती है (तीन महीने एनपीए घोषित होने तक + दो महीने का अतिरिक्त समय + नीलामी नोटिस के बाद का समय), ग्राहक किसी भी समय बैंक से संपर्क कर सकता है। यदि ग्राहक इस 6 महीने के भीतर बकाया राशि (Outstanding Amount) का भुगतान करने या बैंक के साथ कोई समझौता (Settlement) करने में कामयाब हो जाता है, तो वह मामले को सुलझा सकता है और अपनी संपत्ति की नीलामी को रोक सकता है।
समय पर लोन नहीं चुकाने (Not Repaying Loan on Time) से सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि बैंक ग्राहक को डिफॉल्टर (Defaulter) घोषित कर देता है। डिफॉल्टर घोषित होने से ग्राहक का सिबिल स्कोर (CIBIL Score) या क्रेडिट स्कोर (Credit Score) बुरी तरह खराब हो जाता है। सिबिल स्कोर (CIBIL Score) एक रिकॉर्ड होता है जो व्यक्ति की लोन चुकाने की क्षमता और इतिहास को दर्शाता है। सिबिल स्कोर खराब होने (Poor CIBIL Score) से भविष्य में उस व्यक्ति को किसी भी तरह का लोन (Any Type of Loan), चाहे वह पर्सनल लोन (Personal Loan), कार लोन (Car Loan) या कोई अन्य लोन हो, मिलने में बहुत परेशानी होती है। कई बार तो लोन मिलना लगभग असंभव हो जाता है।
EMI नहीं चुका पाने की स्थिति में क्या करें? (What to do if unable to pay EMI?)
अगर किसी व्यक्ति के साथ ऐसी मुश्किल स्थिति आ जाती है, यानी वे होम लोन (Home Loan) की ईएमआई (EMI) चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं, तो घबराने की बजाय तुरंत कुछ उपाय (Measures) करने चाहिए। सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम यह है कि ग्राहक ने जिस बैंक या वित्तीय संस्थान से होम लोन (Home Loan) लिया है, उनसे तुरंत संपर्क (Contact Bank Immediately) करें। बैंक को अपनी वित्तीय कठिनाई (Financial Hardship) के बारे में बताएं और उनसे अपनी वित्तीय प्राथमिकताओं (Financial Priorities) के आधार पर होम लोन पुनर्गठित (Home Loan Restructuring) करने के तरीकों पर चर्चा करें। आपको बैंक को अपनी परेशानी के प्रमाण के रूप में संबंधित दस्तावेज (Relevant Documents) भी सौंपने पड़ सकते हैं। लोन का पुनर्गठन (Loan Restructuring) एक ऐसा विकल्प है जिससे कुछ महीनों तक ईएमआई (EMI) को टाला जा सकता है (Moratorium) या ईएमआई की राशि (EMI Amount) को कम किया जा सकता है, जिससे आपको कुछ समय के लिए राहत मिल सकती है। हालांकि, ऐसे मामले में होम लोन की अवधि (Home Loan Tenure) बढ़ जाएगी, जिससे कुल देय राशि (Total Amount Payable) थोड़ी बढ़ सकती है।
इसके अलावा, इसका सबसे सीधा और प्रभावी हल यह है कि होम लोन की EMI (Home Loan EMI) को हरसंभव समय पर चुकाने की कोशिश करें। इसके लिए, यदि आपके पास कोई फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit – FD) है, तो उसे तोड़ दें (Break FD)। यदि आपने कहीं भी निवेश (Investments) किया हुआ है, तो उसे निकालकर ईएमआई (EMI) भर दें। ऐसे कठिन समय में, आप अपने परिवार (Family) या दोस्तों (Friends) से भी आर्थिक सहायता (Financial Help) या उधार (Borrow) ले सकते हैं और बाद में अपनी सुविधा के अनुसार उन्हें वापस कर सकते हैं। संपत्ति खोने या सिबिल स्कोर खराब होने से बेहतर है कि आप इन विकल्पों पर विचार करें।
रिकवरी एजेंट धमकी दे तो क्या करें? (What to do if Recovery Agent threatens?)
यदि आप होम लोन (Home Loan) चुकाने में असमर्थ हैं और बैंक द्वारा नियुक्त रिकवरी एजेंट (Recovery Agent) आपको लगातार परेशान कर रहे हैं, तो यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि यह एक सिविल विवाद (Civil Dispute) का मामला है, न कि कोई आपराधिक मामला (Criminal Case)। रिकवरी एजेंट (Recovery Agent) को आपको डराने-धमकाने (Threatening) या किसी भी तरह से परेशान करने (Harassing) का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। दुर्भाग्यवश, देशभर में ऐसे कई मामले सामने आते हैं जहां रिकवरी एजेंट अपनी सीमाएं पार करते हैं और ग्राहकों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं।
अगर आपको भी होम लोन (Home Loan) चुकाने को लेकर कोई रिकवरी एजेंट (Recovery Agent) अनुचित रूप से परेशान कर रहा है या धमकी दे रहा है, तो आप सीधे पुलिस (Police) में शिकायत दर्ज (File a Complaint) करा सकते हैं। चूंकि लोन की किस्त नहीं चुका पाना सिविल विवाद (Civil Dispute) के दायरे में आता है, इसलिए डिफॉल्टर (Defaulter) के साथ कोई भी मनमानी या गैरकानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। इसके अलावा, आप सीधे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को भी लिखित शिकायत (Written Complaint) दे सकते हैं। आरबीआई (RBI) बैंकों और उनके रिकवरी एजेंटों के लिए सख्त दिशानिर्देश (Strict Guidelines) जारी करता है, और इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। अपने अधिकारों को जानें और उनका उपयोग करें।