देश– आज पूरा भारत शिक्षक दिवस मना रहा है। आज के दिन भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन होता है। इस दिन लोग अपने शिक्षक का आभार व्यक्त करते है। वही शिक्षा एक ऐसा तमगा है जो देश के हर नागरिक का अधिकार है। शिक्षा में किसी प्रकार का कोई भेदभाव नही है। क्योंकि ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार हर किसी को समानता से है।
शिक्षा का अधिकार सभी को संविधान के मुताबिक समान रूप से मिला है। और कोई भी किसी को शिक्षा से वंचित नही रख सकता है। लेकिन इस सबके बाद भी आज देश मे कई लोग ऐसे है। जो शिक्षा के नाम पर भेदभाव करते हैं और कई लोगो के लिए शिक्षा ग्रहण करना मुश्किल हो जाता है।
भारत मे आजादी से पूर्व से पहले से शिक्षा के महत्व को लोग काफी समझते थे। भारत के लोग पहले भी विदेश शिक्षा ग्रहण करने जाते थे। लेकिन तब भी लोग महिलाओं के लिए शिक्षा को गलत मानते थे और आज भी कई जगह ऐसी है। जहां महिलाओं की शिक्षा को पुरुषों की अपेक्षा कम तबज्जूब मिलता है।
लेकिन इन सब पाबंदियों को तोड़ते हुए। महिलाओं ने अपने लिये शिक्षा के द्वारा खोल दिये। सावित्री बाई फुले का नाम सभी ने सुना है। यह महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं उस महिला के बारे में जिसने मुस्लिम महिलाओं के लिए संघर्ष किया और उनके लिए शिक्षा के द्वारा खोल दिए।
रुकैया सखावत हुसैन जिनका मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा दिलाने में विशेष योगदान रहा है। नारीवादी विचारक, कथाकार, उपन्यासकार और कवि थी। इन्होंने बंगाल में मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा दिलाने के लिये मुहिम चलाई थी और महिलाओं के सम्मान के लिए काम किया। इन्होंने स्कूल खोले और मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करने के लिये प्रेरित किया।
रुकैया सखावत ने अपनी रचनाओं से महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को उजागर किया और उन्हें उनके हक से परिचित करवाया। इनके जीवन का एक मात्र उद्देश्य महिलाओं को शिक्षित बनाना और समाज मे बदलाव लाना था।
रुकैया का महज 22-23 साल की उम्र में एक लेख प्रकाशित हुआ, ‘स्त्री जातिर अबोनति’, जिस पर बहुत हंगामा हुआ। इस लेख में महिलाओं की गिरी हुई स्थिति के बारे में लिखा गया था। इसके बाद अंग्रेजी में उनका लघु उपन्यास, ‘सुल्तानाज ड्रीम्स’ (सुल्ताना के ख्वाब) प्रकाशित हुई। ये उपन्यास मद्रास की एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी पत्रिका ‘इंडियन लेडीज मैगजीन’ में 1905 में छपा था।
मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा दिलाने के लिए रुकैया ने 1910 में भागलपुर में लड़कियों स्कूल खोला और 1911 में कोलकाता में स्कूल की शुरुआत की। इन स्कूलों ने मुस्लिम महिलाओं के जीवन को बदल दिया और उनके लिए एक क्रांति ले आए।