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Join NowSupreme Court on TET: देश भर के लाखों सरकारी और निजी स्कूल शिक्षकों के लिए यह अब तक की सबसे बड़ी और चिंताजनक खबर है। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया है कि स्कूल शिक्षक बनने और बने रहने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) पास करना अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्य शर्त है। इस फैसले ने उन हजारों शिक्षकों के भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है जो सालों से बिना TET पास किए अपनी सेवाएं दे रहे थे।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act), 2009 के प्रावधानों की गहराई से व्याख्या करते हुए यह अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि कक्षा 1 से लेकर 8 तक के बच्चों को पढ़ाने वाले हर शिक्षक के लिए TET की योग्यता रखना कानूनन अनिवार्य है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने और क्या हैं इसके मायने?
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) ने 29 जुलाई, 2011 को ही शिक्षकों के लिए TET को अनिवार्य कर दिया था। इसलिए, इस तारीख के बाद बिना इस योग्यता के की गई कोई भी नियुक्ति अवैध है।
इस फैसले का सबसे बड़ा असर उन शिक्षकों पर पड़ेगा जो वर्तमान में बिना TET पास किए नौकरी कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे शिक्षकों को एक आखिरी मौका देते हुए एक बड़ी शर्त रखी है:
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2 साल की मोहलत: जो शिक्षक बिना TET के पढ़ा रहे हैं, उन्हें अब से 2 साल के भीतर हर हाल में TET की परीक्षा पास करनी होगी।
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नौकरी या सेवानिवृत्ति: अगर कोई शिक्षक इस अवधि में TET पास करने में असफल रहता है, तो उसके पास सिर्फ दो ही रास्ते होंगे – या तो उसे नौकरी छोड़नी पड़ेगी, या फिर उसे अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त (Compulsory Retirement) कर दिया जाएगा। यह नियम उन सभी शिक्षकों पर लागू होगा जिनकी नौकरी में 5 साल से ज्यादा का समय बचा है।
किसे मिली है राहत?
हालांकि, अदालत ने कुछ शिक्षकों को थोड़ी राहत भी दी है।
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जिन शिक्षकों की सेवानिवृत्ति में 5 साल से कम का समय बचा है, उनके लिए TET पास करना अनिवार्य नहीं होगा। लेकिन इसमें भी एक पेंच है – अगर वे अपनी नौकरी के दौरान पदोन्नति (Promotion) चाहते हैं, तो उन्हें भी TET की बाधा को पार करना ही होगा।
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फिलहाल यह फैसला धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त स्कूलों पर लागू नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के अपने एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को RTE एक्ट के दायरे से बाहर रखा है।
अल्पसंख्यक स्कूलों पर भविष्य में लटकी तलवार?
भले ही अल्पसंख्यक स्कूलों को फिलहाल छूट मिल गई हो, लेकिन भविष्य में उनके लिए भी राह आसान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि 2014 के उस फैसले पर पुनर्विचार की सख्त जरूरत है। जजों ने इस मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के पास भेजने का निर्देश दिया है, ताकि इस पर विचार के लिए एक बड़ी संवैधानिक बेंच का गठन किया जा सके।
गौरतलब है कि RTE एक्ट के तहत सभी स्कूलों (अल्पसंख्यक स्कूलों को छोड़कर) में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित रखना अनिवार्य है। अगर भविष्य में अल्पसंख्यक संस्थान भी इस कानून के दायरे में आते हैं, तो उन्हें न केवल TET योग्य शिक्षकों की भर्ती करनी होगी, बल्कि आरक्षण के नियमों का भी पालन करना होगा।
यह फैसला भारत की शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा और कड़ा कदम है। यह सुनिश्चित करेगा कि बच्चों को केवल योग्य और प्रमाणित शिक्षक ही पढ़ाएं। लेकिन दूसरी तरफ, यह उन लाखों शिक्षकों के लिए एक अस्तित्व का संकट भी है, जिन्हें अब अपनी नौकरी बचाने के लिए परीक्षा के दौर से गुजरना होगा।