Join WhatsApp
Join NowSolah Shringar after death: सनातन हिंदू धर्म शास्त्रों में जन्म से लेकर मृत्यु तक, जीवन के हर पड़ाव के लिए कुछ विशेष नियम और परंपराएं बनाई गई हैं, जिनका गहरा आध्यात्मिक और भावनात्मक महत्व है। इन्हीं में से एक बेहद मार्मिक और महत्वपूर्ण परंपरा है, एक सुहागिन स्त्री की मृत्यु के बाद उसके अंतिम संस्कार से पहले उसे सोलह श्रृंगार से सजाने की प्रथा।
जब किसी ऐसी महिला की मृत्यु होती है जिसके पति जीवित हों, तो उसे सामान्य तरीके से विदा नहीं किया जाता। शास्त्रों के अनुसार, मृत सुहागिन स्त्री को सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां, मंगलसूत्र, बिछिया और अन्य सभी श्रृंगार सामग्री से एक दुल्हन की भांति सजाया जाता है और नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। यह दृश्य किसी को भी भावुक कर सकता है, लेकिन इस प्रथा के पीछे छिपे कारण अत्यंत गहरे हैं। आइए, ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी जी से इस परंपरा के महत्व को विस्तार से जानते हैं।
स्त्री और उसके सुहाग का अटूट संबंध
भारतीय संस्कृति में एक सुहागिन स्त्री के अस्तित्व और उसकी पहचान को उसके श्रृंगार से गहराई से जोड़ा जाता है। सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां, बिछिया और मंगलसूत्र जैसे आभूषण केवल उसके सौंदर्य को बढ़ाने वाली वस्तुएं नहीं हैं, बल्कि ये उसके वैवाहिक जीवन, सौभाग्य और सबसे बढ़कर, उसके पति की लंबी उम्र और سلامती का प्रतीक माने जाते हैं। एक स्त्री के लिए यह श्रृंगार केवल बाहरी सजावट नहीं, बल्कि उसकी आस्था, प्रेम, समर्पण और अपने पति के प्रति उसके अटूट रिश्ते का जीवंत प्रमाण होता है। यह श्रृंगार उसके जीवन का वह पवित्र हिस्सा है जो विवाह के साथ शुरू होता है और उसकी अंतिम सांस तक उसके साथ रहता है।
मृत्यु के बाद क्यों किया जाता है ‘सदा सुहागन’ का श्रृंगार?
जब एक सुहागिन स्त्री इस संसार से विदा लेती है, तो शास्त्रों और पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं के अनुसार, उसे अंतिम विदाई से पहले पूर्ण वैवाहिक श्रृंगार में सजाया जाता है। इस मार्मिक परंपरा के पीछे कई गहरे भावनात्मक और आध्यात्मिक कारण छिपे हैं:
1. मृत्यु अंत नहीं, एक नई यात्रा की शुरुआत है
हिंदू धर्म में मृत्यु को जीवन का अंत नहीं माना जाता, बल्कि इसे आत्मा की एक शरीर से दूसरे शरीर या एक लोक से दूसरे लोक की एक नई यात्रा का आरंभ माना जाता है। मान्यता है कि जिस प्रकार हम किसी नई और महत्वपूर्ण यात्रा पर जाने से पहले खुद को अच्छी तरह सजाते-संवारते हैं, ठीक उसी प्रकार जब आत्मा एक लोक से दूसरे लोक की यात्रा पर निकलती है, तो उसे भी पूर्ण सम्मान और गरिमा के साथ विदा किया जाना चाहिए।
एक सुहागिन स्त्री का मृत्यु के बाद किया गया सोलह श्रृंगार, इसी अंतिम सम्मान का प्रतीक है। यह इस बात को दर्शाता है कि उसने जीवन भर अपने रिश्ते, अपने धर्म और अपनी परंपराओं का पूरी निष्ठा से पालन किया और उसे उसी गरिमा और सम्मान के साथ इस दुनिया से अंतिम विदाई दी जा रही है।
2. पति की लंबी उम्र की कामना का सम्मान
एक सुहागिन स्त्री अपने पूरे जीवनकाल में अपने पति की लंबी उम्र और سلامتی के लिए अनगिनत व्रत, पूजा-पाठ और उपवास करती है। उसकी हर प्रार्थना, हर मन्नत में केवल उसके पति की रक्षा और दीर्घायु की कामना समाहित होती है। ऐसे में, जब वह अपने पति से पहले इस संसार से विदा होती है, तो इसे उसके ‘अखंड सौभाग्यवती’ होने का प्रमाण माना जाता है। उसकी प्रार्थनाओं की सफलता और उसके सौभाग्य का सम्मान करने के लिए ही इस रस्म को पूरी श्रद्धा के साथ निभाया जाता है। यह श्रृंगार उसकी उस तपस्या और प्रेम को एक श्रद्धांजलि होती है।
3. एक सकारात्मक और मंगलमय विदाई
किसी भी व्यक्ति की मृत्यु परिवार के लिए एक दुखद क्षण होता है। लेकिन एक सुहागिन स्त्री को दुल्हन की तरह सजाकर विदा करने के पीछे यह भी भावना है कि उसने एक संपूर्ण और सौभाग्यशाली जीवन जिया है। उसकी विदाई शोक और मातम से भरी होने के बजाय, उसके सम्मानित जीवन के उत्सव के रूप में देखी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार की मंगलमय विदाई से आत्मा को शांति और सद्गति प्राप्त होती है। यह परंपरा हिंदू धर्म के उस गहरे दर्शन को दर्शाती है, जहां मृत्यु पर शोक नहीं, बल्कि आत्मा की अगली यात्रा को सम्मान देने पर जोर दिया जाता है।