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Join NowSupreme Court India: देश के लाखों किसानों के लिए सुप्रीम कोर्ट से एक बहुत बड़ी और ऐतिहासिक खुशखबरी आई है। एक महत्वपूर्ण फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जिन किसानों की जमीन राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के प्रोजेक्ट्स के लिए अधिग्रहित की गई थी, उन्हें मिलने वाला मुआवजा और उस पर देय ब्याज पिछली तारीख से ही मिलेगा। इसका सीधा मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का 2019 का वह landmark फैसला, जिसमें बढ़े हुए मुआवजे की अनुमति दी गई थी, अब भविष्य के मामलों पर ही नहीं, बल्कि उन सभी पुराने मामलों पर भी पूरी तरह से लागू होगा जो पहले हो चुके हैं। इस फैसले से उन हजारों किसानों को जबरदस्त फायदा होगा, जिनकी जमीनें NHAI ने वर्षों पहले ले ली थीं और वे अपने हक के लिए लड़ रहे थे।
NHAI की याचिका खारिज, किसानों के हक में मुहर
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने यह फैसला भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highway Authority of India) द्वारा दायर एक याचिका को खारिज करते हुए सुनाया। NHAI ने अपनी याचिका में यह मांग की थी कि 19 सितंबर, 2019 को आए उच्चतम न्यायालय के फैसले को केवल भविष्य के मामलों (prospectively) पर ही लागू किया जाए। प्राधिकरण चाहता था कि उन पुराने मामलों को दोबारा न खोला जाए जहां भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) की कार्यवाही पूरी हो चुकी थी और मुआवजे का अंतिम निर्धारण भी हो चुका था। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने NHAI की इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में?
अदालत ने NHAI की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि उनमें कोई दम नहीं है और वे न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ हैं। कोर्ट ने 2019 के ऐतिहासिक ‘तरसेम सिंह’ मामले में स्थापित किए गए सिद्धांतों को एक बार फिर दोहराया, जिसमें ‘मुआवजा’ और ‘ब्याज’ को किसानों के लिए एक लाभकारी प्रावधान बताया गया था। बेंच ने इस बात पर भी जोर दिया कि कानून की नजर में सभी नागरिक समान हैं और सिर्फ अधिग्रहण की तारीख के आधार पर किसानों के बीच अनुचित वर्गीकरण (unreasonable classification) नहीं किया जा सकता। इन्हीं तर्कों के आधार पर NHAI की याचिका को खारिज कर दिया गया।
फैसला भविष्य से लागू क्यों नहीं हो सकता?
सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा, “अगर हम तरसेम सिंह मामले में दिए गए निर्णय को केवल भविष्य की दृष्टि से लागू करते हैं, तो इससे उस फैसले का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा।” अदालत ने समझाया कि ऐसा करने से स्थिति ठीक वैसी ही हो जाएगी जैसी इस फैसले के आने से पहले थी, और किसानों को न्याय नहीं मिल पाएगा।
एक उदाहरण से समझिए किसानों को कितना बड़ा फायदा हुआ
पीठ ने एक बहुत ही सरल उदाहरण देते हुए समझाया कि अगर 2019 के फैसले को भविष्य से लागू किया जाता, तो यह कितना अन्यायपूर्ण होता। उदाहरण के तौर पर, एक भूस्वामी जिसकी जमीन (landowner’s land) 31 दिसंबर, 2014 को अधिग्रहीत हुई थी, वह बढ़े हुए मुआवजे और ब्याज के लाभ से पूरी तरह वंचित रह जाता। वहीं, ठीक एक दिन बाद, यानी 1 जनवरी, 2015 को अगर किसी दूसरे किसान की जमीन अधिग्रहीत हुई होती, तो वह सभी वैधानिक लाभ पाने का हकदार हो जाता। सुप्रीम कोर्ट ने इसी भेदभाव को खत्म करते हुए यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।
याद दिला दें कि 2019 में, सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने फैसला सुनाया था कि NHAI को 1997 और 2015 के बीच अधिग्रहित भूमि के प्रभावित मालिकों को पूरा मुआवजा और ब्याज देना चाहिए। इस फैसले का उद्देश्य उन मामलों में न्याय दिलाना था जो अभी तक अंतिम रूप से बंद नहीं हुए थे।