Chhath Puja: क्यों छठ में सूर्य को दिया जाता है अर्घ्य? जवाब उस प्राचीन श्लोक में छिपा है जिसे वैज्ञानिक भी मानते हैं

Published On: October 25, 2025
Follow Us
Chhath Puja: क्यों छठ में सूर्य को दिया जाता है अर्घ्य? जवाब उस प्राचीन श्लोक में छिपा है जिसे वैज्ञानिक भी मानते हैं

Join WhatsApp

Join Now

Chhath Puja: लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ आज से आरंभ हो चुका है। यह एक ऐसा अद्भुत पर्व है जिसमें व्रत तो संतान की रक्षा करने वाली षष्ठी मैया (छठी मैया) का होता है, लेकिन केंद्र में उपासना सूर्य देव की होती है। सूर्य इस महापर्व के आध्यात्मिक शक्ति स्रोत हैं, एक ऐसे देवता जिनका अस्तित्व समय की गणना से भी परे है। उन्हें वैदिक काल का प्रथम और सबसे शक्तिशाली देवता माना जाता है। वह देवताओं में सबसे बड़े हैं और उनकी स्तुति ऋग्वेद के पन्नों से ही गूंजने लगती है, जो उन्हें सनातन धर्म की सबसे प्राचीन और जीवंत परंपरा का केंद्र बनाती है।

वेद और ‘बिग बैंग’: जब हज़ारों साल पहले लिखा गया ब्रह्मांड का रहस्य

आज का विज्ञान ब्रह्मांड की उत्पत्ति ‘बिग बैंग थ्योरी’ से बताता है, लेकिन यह जानकर आश्चर्य होता है कि इसका सबसे गहरा आध्यात्मिक संकेत हज़ारों साल पहले ऋग्वेद के दसवें मंडल में लिखे हिरण्यगर्भ सूत्र में मिलता है। इसका पहला श्लोक कहता है:

हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥

यह श्लोक ब्रह्मांड के जन्म की व्याख्या करता है। यह बताता है कि शुरुआत में सब कुछ एक हिरण्यगर्भ (सोने के अंडे या ब्रह्मांडीय गर्भ) के भीतर समाया हुआ था। इसी पिंड से संपूर्ण सृष्टि का जन्म हुआ। जब इस पिंड में विस्फोट हुआ, तो उससे पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि, वायु, चंद्रमा और सूर्य जैसे सभी ब्रह्मांडीय तत्वों का विकास हुआ। यह वैदिक व्याख्या आधुनिक बिग बैंग थ्योरी के आश्चर्यजनक रूप से करीब है और यह स्थापित करती है कि सूर्य भी उसी आदि स्रोत का एक अंश है।

READ ALSO  Ramayan Facts: श्री राम ने रावण को 32 बाण ही क्यों मारे? •

लेकिन सूर्य को लेकर दिलचस्पी इसलिए सबसे अधिक है क्योंकि कई आध्यात्मिक व्याख्याओं में माना जाता है कि सूर्य ही वह मूल पिंड, वह हिरण्यगर्भ था, जिसके भीतर जीवन था। अपने सुनहरे, दहकते और प्रकाशमान स्वरूप के कारण ही सूर्य को उनका सबसे पहला नाम ‘हिरण्यगर्भ’ मिला।

भगवान विष्णु की आंख से हुआ सूर्य का जन्म

सूर्य का जन्म कैसे हुआ? इस दिव्य प्रश्न का उत्तर पुराणों में बड़ी ही अद्भुत कथाओं के साथ मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार, जब कुछ भी नहीं था, तब विराट पुरुष (भगवान विष्णु) की इच्छा से एक क्षीर सागर (दूध का सागर) बना। उसी सागर में एक पीपल के पत्ते पर एक शिशु प्रकट हुआ। वह शिशु अपनी ही इच्छा से विकसित होकर पूर्ण पुरुष बन गया, जिसके चार हाथ थे और सिर पर शेषनाग की छाया थी। जब उस विराट पुरुष ने अपनी आंखें खोलीं, तो उनके नेत्रों से जो दिव्य प्रकाश निकला, वही सूर्य बन गया। उनके मन से चंद्रमा बना और उनकी सांसों से ब्रह्मांड में प्राण वायु भर गई।

यजुर्वेद में भी यही बात और अधिक स्पष्टता से कही गई है:

चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत।
(अर्थात्: उस विराट पुरुष के मन से चन्द्रमा और चक्षु यानी नेत्रों से सूर्य का जन्म हुआ।)

भगवान विष्णु के नेत्रों से उत्पन्न होने के कारण ही सूर्य देव को उन्हीं का स्वरूप माना जाता है और उन्हें “सूर्य नारायण” के नाम से पुकारा जाता है। इसीलिए छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देना वास्तव में भगवान विष्णु की ही परम उपासना करना है, जैसा कि शास्त्रों में कहा गया है:

READ ALSO  EPFO Pension : आपका पीएफ सिर्फ बचत नहीं, 7 तरह की पेंशन का है खजाना! जानें रिटायरमेंट से पहले और बाद में मिलने वाले फायदे

आकाशात् पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम्,
सर्वदेवनमस्कार: केशवं प्रति गच्छति॥
(अर्थात्: जैसे आकाश से गिरा हुआ जल अंततः सागर में ही जाता है, वैसे ही सभी देवताओं को किया गया नमस्कार केशव (भगवान विष्णु) तक ही पहुंचता है।)

देवताओं के राजा इंद्र, फिर भी सूर्य सबसे श्रेष्ठ क्यों?

यद्यपि देवताओं के राजा इंद्र हैं, सूर्य को हमेशा एक अद्वितीय और सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ है। उनका पद किसी सिंहासन से नहीं, बल्कि उनके त्याग, तप और निरंतर जलते रहने के गुण से परिभाषित होता है। ब्रह्मांड पुराण में एक कथा आती है कि एक बार दैत्यों ने देवताओं को पराजित कर दिया। तब सभी देवता अपनी मां अदिति के पास पहुंचे। मां अदिति ने अपने पुत्रों की रक्षा के लिए सूर्य देव की कठोर उपासना की। सूर्य देव ने प्रसन्न होकर उन्हें स्वयं उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। अदिति के पुत्र होने के कारण ही सूर्य का एक नाम “आदित्य” है।

अदिति के इंद्र समेत 12 पुत्र हैं, जिन्हें आदित्य कहा जाता है, लेकिन सूर्य को उन सभी में सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली माना जाता है। उनका सम्मान इसलिए सर्वोच्च है क्योंकि वह बिना रुके, बिना थके, स्वयं को जलाकर संपूर्ण ब्रह्मांड को जीवन, प्रकाश और ऊर्जा देते हैं। छठ महापर्व इसी निस्वार्थ भाव, त्याग और जीवन ऊर्जा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का सबसे बड़ा अवसर है, जो इसे भारत से लेकर अमेरिका और ब्रिटेन तक में बसे भारतीयों के लिए आस्था का महापर्व बनाता है।

Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now