Pitru Paksha 2025: क्या पत्नी कर सकती है पति का श्राद्ध और पिंडदान? जानें क्या कहते हैं शास्त्र और गरुड़ पुराण

Published On: September 9, 2025
Follow Us
Pitru Paksha 2025: क्या पत्नी कर सकती है पति का श्राद्ध और पिंडदान? जानें क्या कहते हैं शास्त्र और गरुड़ पुराण

Join WhatsApp

Join Now

Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष के पवित्र दिनों में हर हिंदू धर्मावलंबी अपने पितरों यानी पूर्वजों की आत्मा की शांति और सद्गति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे महत्वपूर्ण कर्म करता है। यह हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और अनिवार्य संस्कार माना गया है, जो पितरों के प्रति हमारी श्रद्धा और कृतज्ञता को प्रकट करता है। सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि श्राद्ध कर्म को घर के पुरुष सदस्य, जैसे पुत्र, पोता, भाई या पिता ही संपन्न करते हैं, क्योंकि इसे वंश परंपरा से जोड़कर देखा जाता है।

लेकिन आज का समाज बदल रहा है। संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवारों ने ले ली है, और कई बार ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, जब परिवार में श्राद्ध कर्म करने के लिए कोई पुरुष सदस्य मौजूद नहीं होता। ऐसे में एक बहुत ही स्वाभाविक और महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है: क्या एक महिला, विशेषकर एक पत्नी, अपने दिवंगत पति का श्राद्ध और पिंडदान कर सकती है? क्या शास्त्रों में इसकी अनुमति है?

इस गहरे और संवेदनशील विषय पर प्रकाश डालने के लिए, हमने छिंदवाड़ा के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य और धर्म-विशेषज्ञ पंडित जी से मार्गदर्शन लिया। उन्होंने शास्त्रों के गहन अध्ययन के आधार पर जो बताया, वह कई लोगों के भ्रम को दूर कर सकता है।

क्या पत्नी को है पति का श्राद्ध करने का अधिकार?

इस प्रश्न पर पंडित जी ने पूरी स्पष्टता के साथ कहा, “निश्चित रूप से! एक पत्नी को अपने पति का श्राद्ध करने का पूरा अधिकार है।” वह आगे समझाते हैं, “यह सही है कि श्राद्ध को वंश परंपरा से जोड़कर देखा जाता है, और आदर्श स्थिति में यह कर्तव्य पुत्र या पौत्र द्वारा ही निभाया जाना चाहिए। लेकिन हिंदू धर्म और हमारे शास्त्र इतने संकीर्ण नहीं हैं। जब परिवार में श्राद्ध कर्म को पूरा करने के लिए कोई योग्य पुरुष उत्तराधिकारी उपस्थित न हो, तो यह पवित्र कर्तव्य पत्नी द्वारा निभाया जा सकता है और निभाया जाना ही चाहिए।”

READ ALSO  Australia Women in New Zealand 2025: ऑस्ट्रेलिया ने न्यूजीलैंड को 8 विकेट से हराया, बेथ मूनी और जॉर्जिया वोल की तूफानी पारियां

शास्त्रों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि महिलाएं भी अपने पितरों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकती हैं। पति की मृत्यु के बाद पत्नी को उनका श्राद्ध करना केवल एक अधिकार ही नहीं, बल्कि एक धार्मिक और भावनात्मक कर्तव्य भी है, जिसे शास्त्रों में पूरी तरह से स्वीकार्य और महा-पुण्यदायक माना गया है।

गरुड़ पुराण का प्रमाण: महिलाएं कर सकती हैं श्राद्ध

कई लोग यह मानते हैं कि महिलाओं को श्राद्ध कर्म करने की मनाही है, लेकिन यह एक अधूरा सत्य है। गरुड़ पुराण, जिसे मृत्यु और उसके बाद के संस्कारों पर सबसे प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है, इस विषय पर स्पष्ट मार्गदर्शन देता है।

पंडित जी बताते हैं, “गरुड़ पुराण के अनुसार, जिस प्रकार एक पुरुष अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करता है, ठीक उसी विधि और अधिकार के साथ एक महिला भी यह सब कर सकती है। यदि पति की मृत्यु के बाद घर में पुत्र, पौत्र या कोई अन्य पुरुष सदस्य यह कर्म करने के लिए नहीं है, तो पत्नी स्वयं अपने पति का श्राद्ध कर सकती है।”

“विधि में भी कोई विशेष अंतर नहीं होता है,” वे आगे जोड़ते हैं, “एक गृहिणी भी अपने पितरों के लिए जल में तिल और कुश डालकर उनका आह्वान कर सकती है, विधि-विधान से पिंडदान कर सकती है और ब्राह्मणों को भोजन कराकर श्राद्ध कर्म को पूर्ण कर सकती है।”

पत्नी द्वारा किए गए श्राद्ध का क्या फल मिलता है?

श्राद्ध कर्म का मूल उद्देश्य कर्मकांडों को पूरा करना नहीं, बल्कि पितरों के प्रति श्रद्धा, प्रेम, सम्मान और कृतज्ञता को प्रकट करना है।

  • यदि एक पत्नी सच्चे मन, पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से अपने पति का श्राद्ध करती है, तो वह पितरों को उतनी ही तृप्ति और शांति प्रदान करता है, जितना किसी पुत्र या पुरुष सदस्य द्वारा किया गया श्राद्ध।

  • आत्मा का संबंध भावनाओं से होता है, लिंग से नहीं। जब परिवार में कोई पुरुष सदस्य न हो, तो पत्नी द्वारा विधिपूर्वक और सच्चे मन से किया गया श्राद्ध पूर्ण फलदायी होता है और इससे पितृगण अत्यंत संतुष्ट और तृप्त होते हैं।

READ ALSO  Mallikarjun Kharge on Rana Sanga:राणा सांगा पर विवादित बयान से संसद में हंगामा, खरगे बोले - "संविधान घर जलाने की इजाजत नहीं देता"

पंडित जी निष्कर्ष देते हुए कहते हैं, “हिंदू शास्त्रों में कर्म से ऊपर भावना और श्रद्धा को स्थान दिया गया है। श्राद्ध केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के साथ हमारे आत्मिक संबंध की एक पवित्र अभिव्यक्ति है। इसलिए, किसी भी संदेह के बिना, एक पत्नी अपने पति का श्राद्ध कर सकती है, और यह न केवल शास्त्रसम्मत है, बल्कि एक अत्यंत पुण्य और प्रशंसनीय कार्य भी है।”

अतः, यदि आप भी ऐसी किसी दुविधा में हैं, तो उसे मन से निकालकर पूरे विश्वास और श्रद्धा के साथ अपने पितरों के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करें।

Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now