डेस्क। बिहार के मुजफ़्फ़रपुर ज़िले में स्थित चतुर्भुज स्थान को बिहार का सबसे ऐतिहासिक रेड लाइट एरिया बताया जाता हैं।
यह कहा जाता है कि कभी इस क्षेत्र के बड़े लोग अपने बच्चों को तहजीब और कला की बारीकियां सीखने के लिए चतुर्भुज स्थान पर भेजा करते थे।
वक़्त के साथ ये जगह और यहां की गलियां रेड लाइट शब्द के अंधेरे में डूबती ही चलीं गयीं।
लेकिन अब इन्हीं अंधेरी गलियों में से रोशनी एक नयी किरण भी उभरती दिख रही है।
ये चतुर्भुज स्थान में रहने वाली सेक्स वर्कर्स के बच्चों की ओर से चलाई जाने वाली पत्रिका जुगनू की कहानी है और जिसका मकसद सेक्स वर्कर्स और उनके परिवार के बारे में फैली भ्रांतियों को तोड़ने का है।
जैसे-जैसे आप इसके पन्ने पलटते हैं, ज़ेहन में ये बात गहराती जाती है कि ये उपेक्षित पड़े रेड लाइट एरिया के समाज का एक ज़रूरी दस्तावेज़ भी है।
जैसा कि जुगनू से जुड़ी और दसवीं में पढ़ने वाली नंदिनी कहती हैं, ” जुगनू हमारा आई-कार्ड है।”
जुगनू का सफ़र
इस पत्रिका की शुरुआत साल 2004 के जुलाई महीने में चतुर्भुज स्थान से हुई थी जहां तक़रीबन 600 परिवार यहीं रहते हैं।
चतुर्भुज स्थान में साल 2002 में सेक्स वर्कर्स के बच्चों का ‘परचम’ नामक संगठन की शुरुआत नसीमा ख़ातून नाम की एक नौजवान लड़की ने करी थी।
वो ख़ुद भी एक सेक्स वर्कर की ही बेटी हैं।
वर्तमान में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एडवाइज़री बोर्ड की सदस्य नसीमा ये बताती हैं, “परचम शिक्षा, स्वास्थ्य और नुक्कड़ नाटकों पर काम कर रहा था पर हम लोगों ने महसूस किया कि हमारे लोग मीडिया से ख़ौफ़ खाते थे साथ ही पत्रकार अक्सर हमें ठीक तरह से परिभाषित भी नहीं कर पाते थे।”