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Join NowPitru Paksha: हर साल आने वाला पितृ पक्ष हमारे लिए अपने पूर्वजों को याद करने, उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करने और उनका आशीर्वाद पाने का एक महापर्व होता है। इन 15 दिनों में हम पूरी निष्ठा से श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान करते हैं ताकि हमारे पितरों की आत्मा को शांति मिले और घर पर पितृ दोष का साया न पड़े। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसी भूल है, जिसके कारण आपका किया गया कोई भी कर्म पितरों तक पहुंचता ही नहीं है?
जी हां, यह बिल्कुल सच है! गरुड़ पुराण में स्पष्ट लिखा है कि पितृ पक्ष में आप चाहे कितने भी अनुष्ठान कर लें, लेकिन जब तक आप ‘पितरों के देवता’ की पूजा नहीं करते, तब तक आपके पूर्वज उस भोग या तर्पण को स्वीकार ही नहीं कर सकते। तो आखिर कौन हैं पितरों के यह देवता? क्यों है उनकी पूजा इतनी अनिवार्य? और क्या है उनकी पूजा का वह रहस्यमयी विधान? आइए, वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से इस गहरे रहस्य को जानते हैं।
कौन हैं पितरों के परम देवता?
यह सनातन धर्म का एक गहरा रहस्य है कि हमारे पितरों के भी आराध्य देव हैं, जिनके आदेश के बिना वे एक अंश भी ग्रहण नहीं कर सकते। गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण दोनों ही इस बात की पुष्टि करते हैं कि पितरों के एकमात्र देवता, उनके स्वामी, स्वयं भगवान श्रीहरि विष्णु हैं। ब्रह्मांड में जीवन और मृत्यु का संतुलन बनाने वाले यमराज भी उन्हीं के आधीन कार्य करते हैं। बिना भगवान विष्णु की कृपा के पितरों को मोक्ष मिलना असंभव है।
क्यों बने भगवान विष्णु पितरों के स्वामी? जानिए गयासुर की पौराणिक कथा
इस रहस्य के पीछे एक अद्भुत पौराणिक कथा छिपी है। प्राचीन काल में गयासुर नाम का एक परम शक्तिशाली राक्षस था। उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से एक अनोखा वरदान प्राप्त कर लिया था। वरदान यह था कि उसका शरीर इतना पवित्र हो जाएगा कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो, मात्र उसके शरीर को छू लेने से मोक्ष को प्राप्त कर लेगा।
इस वरदान के कारण धर्म-कर्म का संतुलन बिगड़ गया। पापी से पापी लोग भी गयासुर को छूकर सीधे स्वर्ग जाने लगे, जिससे यमलोक में हाहाकार मच गया और स्वर्ग की व्यवस्था भंग हो गई। इस संकट से मुक्ति पाने के लिए सभी देवी-देवता परेशान होकर भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे।
भगवान विष्णु ने गयासुर की महान तपस्या का सम्मान करते हुए उससे उसका शरीर एक महायज्ञ के लिए मांग लिया। गयासुर तुरंत यज्ञ की वेदी पर लेट गया। तब भगवान विष्णु ने अपना एक पैर उसके सिर पर रख दिया, जिससे उसका शीश धरती में धंसने लगा। उसी क्षण गयासुर ने अपने सामने खड़े भगवान विष्णु को पहचान लिया और उनसे अपने लिए मो-क्ष का वरदान मांगा।
भगवान विष्णु उसकी निस्वार्थता और भक्ति से प्रसन्न हुए और उसे यह परम वरदान दिया कि आज से उसका पूरा शरीर (जो गया क्षेत्र कहलाया) एक पवित्र तीर्थ बन जाएगा। इस स्थान पर जो भी व्यक्ति अपने पितरों के लिए श्राद्ध, पिंडदान या तर्पण करेगा, उन पितरों को सीधे मेरे द्वारा मोक्ष की प्राप्ति होगी।
यह स्थान आज बिहार में ‘गया’ तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। इसी कथा के कारण, गया में भगवान विष्णु की पूजा ‘पितरों के देवता’ के रूप में की जाती है, क्योंकि वे ही पितरों को मोक्ष प्रदान करने वाले अंतिम अधिकारी हैं।
पितृ पक्ष में भगवान विष्णु की गुप्त पूजा विधि
यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि पितृ पक्ष में भगवान विष्णु की पूजा सामान्य दिनों की तरह नहीं होती। इसका विधान बिल्कुल अलग और विशेष है:
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सामान्य पूजा में: हम भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला नैवेद्य और नारियल, पान, सुपारी जैसी मांगलिक वस्तुएं अर्पित करते हैं।
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पितृ पक्ष की विशेष पूजा में: भगवान विष्णु को सफेद वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। भोग में सफेद मिठाई (जैसे खीर या बर्फी) चढ़ाई जाती है। काले तिल अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। फूल भी सफेद ही चढ़ाए जाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात, इस पूजा में नारियल, पान, सुपारी जैसी कोई भी मांगलिक वस्तु अर्पित करना पूर्णतः वर्जित होता है।
इसलिए, इस पितृ पक्ष जब भी आप अपने पितरों के लिए तर्पण या श्राद्ध करें, तो सबसे पहले इस विशेष विधि से भगवान विष्णु का पूजन करना न भूलें, ताकि आपका कर्म सफल हो और आपके पितरों को श्रीहरि के चरणों में मोक्ष की प्राप्ति हो।