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Join Nowयूक्रेन: तियानजिन (चीन) में हाल ही में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन का समापन 20 पन्नों के एक घोषणा पत्र के साथ हुआ। इस घोषणा पत्र में वैश्विक सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, और बहुपक्षीय सहयोग से जुड़े कई अहम बिंदु शामिल किए गए। लेकिन सबसे बड़ा विवाद इस बात को लेकर खड़ा हो गया कि इसमें रूस-यूक्रेन युद्ध का कोई उल्लेख नहीं किया गया।
यूक्रेन ने इस चुप्पी को “गंभीर कूटनीतिक भूल” और “नकारात्मक संकेत” बताया है। यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि यह यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा आक्रमण है और इसके बावजूद घोषणा पत्र में इसका उल्लेख न होना चौंकाने वाला है।
SCO तियानजिन सम्मेलन और घोषणा पत्र की अहमियत
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक अंतरराष्ट्रीय बहुपक्षीय मंच है जिसमें चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, कजाखस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और ईरान जैसे देश शामिल हैं। यह संगठन एशिया की राजनीति और सुरक्षा पर गहरा असर डालता है।
इस बार तियानजिन में हुए सम्मेलन का महत्व इसलिए भी अधिक था क्योंकि दुनिया इस समय कई संकटों का सामना कर रही है – जैसे ऊर्जा संकट, वैश्विक मंदी की आशंका, जलवायु परिवर्तन और यूक्रेन युद्ध।
घोषणा पत्र में आतंकवाद और चरमपंथ की निंदा की गई, साथ ही आर्थिक साझेदारी बढ़ाने और बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत करने पर जोर दिया गया। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध पर चुप्पी ने इसे विवादों के घेरे में ला दिया।
यूक्रेन की नाराज़गी: क्यों हैरान है कीव?
यूक्रेन ने कहा कि घोषणा पत्र में रूस-यूक्रेन युद्ध का उल्लेख न होना इस बात का संकेत है कि रूस अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी आक्रामकता को छिपाने में जुटा है।
- यूक्रेन का मानना है कि बिना इस युद्ध के जिक्र के अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की बात अधूरी है।
- यूक्रेन ने कहा कि SCO के दस्तावेज में अफ्रीका और एशिया के संघर्षों का जिक्र है, लेकिन यूरोप में चल रहे सबसे बड़े युद्ध को नजरअंदाज करना “कूटनीतिक असफलता” है।
- कीव ने कहा कि यह रूस की असफल कूटनीतिक चाल है, क्योंकि वह चाहता था कि इस मंच पर भी युद्ध को नज़रअंदाज किया जाए और एकतरफा समर्थन हासिल हो।
रूस क्यों रहा असफल?
विश्लेषकों का कहना है कि रूस की कोशिश थी कि SCO सदस्य देश इस युद्ध का ज़िक्र ही न करें ताकि यह दिखाया जा सके कि यूरोप और अमेरिका के बाहर दुनिया रूस की कार्रवाइयों को गंभीरता से नहीं ले रही।
लेकिन यूक्रेन का कहना है कि रूस इसमें पूरी तरह असफल रहा। कारण:
- सदस्य देशों की विविधता – SCO में भारत और चीन जैसे देश हैं जिनकी अपनी स्वतंत्र विदेश नीति है। वे रूस का अंधा समर्थन नहीं कर सकते।
- वैश्विक दबाव – अंतरराष्ट्रीय मंचों पर युद्ध को नजरअंदाज करना आसान नहीं है।
- आर्थिक हित – कई सदस्य देश यूरोपीय संघ और पश्चिमी देशों के साथ भी मजबूत आर्थिक रिश्ते रखते हैं।
चीन की भूमिका: बीजिंग से उम्मीदें
यूक्रेन ने चीन की भूमिका को बेहद अहम बताया है। उसका कहना है कि बीजिंग अगर चाहे तो रूस पर दबाव डाल सकता है ताकि युद्ध का शांतिपूर्ण समाधान निकले।
- चीन ने अब तक तटस्थ रुख अपनाया है, लेकिन उसने कई बार कहा है कि वह युद्धविराम और वार्ता का समर्थन करता है।
- यूक्रेन ने चीन से आग्रह किया है कि वह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों का सम्मान करते हुए अधिक सक्रिय भूमिका निभाए।
रूस-यूक्रेन युद्ध
- फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने पर आक्रमण किया।
- लाखों लोग विस्थापित हुए और हजारों की जान गई।
- यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था हिल गई।
- नाटो और पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक मदद दी।
यह युद्ध अब तीसरे साल में प्रवेश कर चुका है और इसका कोई स्पष्ट समाधान नज़र नहीं आ रहा।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर असर
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर सिर्फ यूरोप तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वैश्विक राजनीति, ऊर्जा बाज़ार और खाद्य आपूर्ति पर भी पड़ा। SCO जैसे मंचों का रवैया इस युद्ध के भविष्य को प्रभावित कर सकता है।
- अगर बड़े मंच इस युद्ध पर चुप्पी साधते हैं तो यह रूस को मजबूत संदेश देता है।
- लेकिन अगर युद्ध का ज़िक्र किया जाता, तो यह यूक्रेन के पक्ष में एक अंतरराष्ट्रीय सहमति का संकेत होता।
SCO तियानजिन घोषणा पत्र से रूस-यूक्रेन युद्ध का गायब होना निश्चित रूप से विवादों को जन्म दे रहा है। यूक्रेन इसे रूस की असफल कूटनीतिक चाल मान रहा है और चीन सहित सभी सदस्य देशों से निष्पक्ष रुख अपनाने की अपील कर रहा है।
यह मामला सिर्फ एक घोषणा पत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शक्ति संतुलन किस तरह बदल रहा है। रूस युद्ध को सामान्य बनाने की कोशिश कर रहा है, जब