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Join NowBihar Assembly Election : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण का शंखनाद हो चुका है और नामांकन की प्रक्रिया भी पूरी हो गई है, लेकिन विपक्षी महागठबंधन के घर में अभी भी शांति नहीं है। सीटों के बंटवारे को लेकर मचा घमासान अब सतह पर आ गया है, और आरजेडी, कांग्रेस, वामदल और वीआईपी जैसी सहयोगी पार्टियों के बीच की खींचतान खुलकर सामने आ गई है।
भले ही महागठबंधन के नेता कैमरे के सामने बार-बार यह दोहराते रहें कि “हम सब एक हैं और मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं,” लेकिन चुनावी मैदान की हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। आपसी तालमेल की भारी कमी के चलते कई महत्वपूर्ण सीटों पर सहयोगी दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ ही अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। एक तरफ जहाँ NDA ने अपनी रणनीति स्पष्ट करते हुए सभी सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है, वहीं विपक्षी गठबंधन की यह अव्यवस्था उसे चुनावी दौड़ में पीछे धकेलती दिख रही है।
7 सीटों पर ‘फ्रेंडली फाइट’ या असली बगावत?
अब तक मिली जानकारी के अनुसार, बिहार की कम से कम सात विधानसभा सीटों पर महागठबंधन के भीतर ही “फ्रेंडली फाइट” का मंच सज चुका है। लालगंज, वैशाली, राजापाकर, बछवाड़ा, रोसड़ा, बिहार शरीफ, और गौड़ाबौराम जैसी सीटों पर गठबंधन के साथी ही एक-दूसरे को चुनौती दे रहे हैं।
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गौड़ाबौराम सीट पर तो स्थिति और भी दिलचस्प है, जहाँ आरजेडी और कांग्रेस, दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं। आरजेडी ने पहले यह सीट वीआईपी के खाते में डालने की बात कही थी, लेकिन अब आरजेडी के अफजल अली खान और वीआईपी के संतोष सहनी, दोनों का नामांकन चुनाव आयोग ने स्वीकार कर लिया है। अगर आरजेडी उम्मीदवार नाम वापस नहीं लेते, तो यहाँ मुकाबला त्रिकोणीय होने के बजाय महागठबंधन के भीतर ही सीधा टकराव बन जाएगा।
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वैशाली में आरजेडी ने जेडीयू से आए अजय कुशवाहा पर दांव लगाया है, तो वहीं कांग्रेस ने संजीव सिंह को मैदान में उतारकर लड़ाई को रोचक बना दिया है।
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लालगंज सीट पर भी कांग्रेस की आदित्य कुमार और आरजेडी की शिवानी शुक्ला (पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला की बेटी) के बीच सीधी टक्कर देखने को मिल रही है।
वाम दलों के साथ भी नहीं बन रही बात
महागठबंधन का सिरदर्द सिर्फ कांग्रेस और आरजेडी तक ही सीमित नहीं है, वाम दलों के साथ भी कई सीटों पर पेंच फंसा हुआ है। राजापाकर और बछवाड़ा सीट पर कांग्रेस और सीपीआई आमने-सामने हैं। बछवाड़ा में कांग्रेस ने प्रकाश दास को टिकट दिया, तो सीपीआई ने अपने पुराने दिग्गज और पूर्व विधायक अवधेश राय पर भरोसा जताया है। इसी तरह, रोसड़ा सीट पर कांग्रेस ने पूर्व आईपीएस अधिकारी बीके रवि को उतारा है, जबकि सीपीआई ने लक्ष्मण पासवान को अपना उम्मीदवार बनाया है।
क्यों बिगड़ा सीटों का समीकरण?
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, इस पूरे विवाद की जड़ सीट बंटवारे की प्रक्रिया में हुई अत्यधिक देरी और पार्टियों के बीच आपसी अविश्वास है। कांग्रेस ने नामांकन की अंतिम तारीख से ठीक पहले 48 उम्मीदवारों की सूची जारी की, जबकि आरजेडी 46 उम्मीदवारों का ऐलान पहले ही कर चुकी थी। इस बीच भाकपा-माले ने 20 और वीआईपी ने 15 सीटों पर अपनी दावेदारी ठोक दी, जिससे कई क्षेत्रों में एक ही गठबंधन के दो-दो उम्मीदवार मैदान में आ गए।
मुकेश सहनी और JMM ने बढ़ाई तेजस्वी की मुश्किलें
विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी की महत्वाकांक्षाओं ने भी महागठबंधन में एक नई आग लगा दी है। सहनी न सिर्फ 15 सीटों की मांग पर अड़े हैं, बल्कि उपमुख्यमंत्री पद की उनकी मांग ने आरजेडी नेतृत्व और तेजस्वी यादव को असहज कर दिया है।
इसी बीच, हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने महागठबंधन को एक और बड़ा झटका दिया है। JMM ने बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए छह सीटों—चकाई, धमदाहा, कटोरिया, पिरपैंती, मनीहारी और जमुई—पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है। इस फैसले को महागठबंधन की कमजोर होती एकता के एक और सबूत के तौर पर देखा जा रहा है।
विपक्ष उलझा, NDA को बढ़त
एक तरफ जहाँ महागठबंधन अपने ही घर की लड़ाई में उलझा हुआ है, वहीं दूसरी ओर NDA ने सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार तय करके एक स्पष्ट मनोवैज्ञानिक बढ़त बना ली है। भाजपा, जदयू, लोजपा (रामविलास) और हम के बीच सीटों का बंटवारा साफ हो चुका है। विश्लेषकों का मानना है कि विपक्ष के भीतर की यह कलह सीधे तौर पर NDA को फायदा पहुंचा रही है, और इसका असर 6 नवंबर को होने वाले पहले चरण के मतदान पर साफ दिख सकता है।