Mohan Bhagwat Statement: बांग्लादेश में हिंसा के बीच मोहन भागवत के इस बयान ने मचाया हड़कंप

Published On: December 22, 2025
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Mohan Bhagwat Statement: बांग्लादेश में हिंसा के बीच मोहन भागवत के इस बयान ने मचाया हड़कंप

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Mohan Bhagwat Statement: पूरी दुनिया की नजरें इस वक्त दक्षिण एशिया के घटनाक्रमों पर टिकी हैं। विशेष रूप से बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हुई हिंसा की हालिया घटनाओं ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर मानवाधिकारों और धार्मिक सुरक्षा पर एक बड़ी बहस छेड़ दी है। इस गरमाते माहौल के बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने एक ऐसा बयान दिया है, जो न केवल चर्चा का विषय बन गया है, बल्कि वैचारिक हलकों में भी तूफान ला चुका है।

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“हिंदू राष्ट्र को साबित करने के लिए संविधान की जरूरत नहीं”
मोहन भागवत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और यह एक सनातन सत्य है। उन्होंने एक बेहद सरल लेकिन प्रभावशाली उदाहरण देते हुए पूछा, “जैसे सूर्य पूर्व में उगता है, क्या इसके लिए भी किसी संवैधानिक प्रमाण की आवश्यकता है?” भागवत जी का तर्क है कि भारत की सांस्कृतिक पहचान और इसकी रगों में बसने वाली आत्मा आदिकाल से हिंदू ही रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदू राष्ट्र एक बहुत ही पुराना तथ्य है जिसे कागजों पर मुहर लगाकर प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है।

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कौन है असली हिंदू? भागवत ने दी नई परिभाषा
भारत के वर्तमान सामाजिक ताने-बाने को समझाते हुए आरएसएस चीफ ने कहा कि जो भी व्यक्ति भारत को अपनी मातृभूमि मानता है, भारतीय संस्कृति के प्रति अटूट श्रद्धा रखता है और यहाँ के पूर्वजों के गौरवपूर्ण इतिहास पर मान करता है, वह हिंदू है। उन्होंने विश्वास दिलाया कि जब तक भारत की पावन भूमि पर ऐसा एक भी व्यक्ति जीवित है, तब तक हिंदुस्तान हिंदू राष्ट्र बना रहेगा।

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भागवत ने यह भी कहा कि संसद के लिए ‘हिंदू राष्ट्र’ शब्द संविधान में जोड़ना या न जोड़ना केवल एक तकनीकी बात हो सकती है। उनके शब्दों में, “चाहे कहीं लिखा हो या न लिखा हो, लेकिन जो सच्चाई है, वह वही रहेगी।”

संघ और भाजपा के रिश्तों पर ‘दो टूक’ जवाब
पिछले कुछ समय से मीडिया में RSS और BJP (भारतीय जनता पार्टी) के बीच मतभेदों और दूरियों की खबरें प्रमुखता से चल रही थीं। इन अफवाहों पर विराम लगाते हुए मोहन भागवत ने अत्यंत चौंकाने वाला लेकिन स्पष्ट बयान दिया। उन्होंने कहा कि मीडिया जिसे दूरियां बताता है, वह असल में एक वैचारिक स्वतंत्रता है। उन्होंने बड़े गर्व से कहा कि “नरेंद्र भाई (नरेंद्र मोदी) और अमित भाई (अमित शाह) हमारे स्वयंसेवक हैं।”

भागवत ने स्पष्ट किया कि यद्यपि संघ हमेशा भाजपा के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व से एक संगठनात्मक दूरी बनाए रखता है, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर वे सभी संघ परिवार का हिस्सा हैं। यह निकटता किसी राजनीतिक फायदे के लिए नहीं, बल्कि देश सेवा और स्वयंसेवक भाव की डोर से बंधी है।

हिंदू समाज का संगठन: “मरते दम तक नहीं रुकेगा मिशन”
लेख के केंद्र में संघ की मूल विचारधारा यानी ‘हिंदू समाज का संगठन’ भी रही। मोहन भागवत ने कहा कि समाज को संगठित करना संघ का प्राथमिक उद्देश्य है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बाधाएं चाहे कितनी भी आएं, उनका लक्ष्य अविचल है। “अगर यह काम इस जन्म में पूरा नहीं हुआ, तो हम अगले जन्म में भी यही कार्य करेंगे,” उनके इस भावुक और दृढ़ संकल्प वाले बयान ने कार्यकर्ताओं में नया जोश भर दिया है। 

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मोहन भागवत का यह संबोधन केवल एक बयान नहीं, बल्कि आधुनिक भारत की सांस्कृतिक पहचान को फिर से परिभाषित करने का एक प्रयास है। बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार और घरेलू राजनीति के शोर के बीच, भागवत ने ‘राष्ट्रवाद’ और ‘स्वयंसेवक भाव’ को एक नए धरातल पर खड़ा कर दिया है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बयान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या संदेश भेजता है, खासकर USA और UK जैसे देशों में बसे प्रवासी भारतीयों के बीच, जो भारत की जड़ों से जुड़े हुए हैं।


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