लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडीया को कहा जाता है, भारत जैसे देश में जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां मीडीया को जनता की आवाज माना जाता हो, जिस देश में 100000 से भी ज्यादा पंजीकृत समाचार पत्र प्रकाशित होते हों और करीब 915 सैटलाइट चैनल दिखाए जाते हों, कैसा हो अगर उसी देश में न्यूज़ चैनल समाचार दिखाने से ज्यादा लोगों का मनोरंजन करने लग जाएं, हालांकी दोश पूरी तरह से उन्हे भी नहीं दीया जा सकता आखिर वे वही दिखा रहे हैं जो हम देखना चाहते हैं। पिछले तीन सालों में न्यूज़ चैनलों ने ये तो जान लिया है कि खाली खबरें दिखा कर उनका चैनल नहीं चलने वाला इसलीय वे अब धीरे-धीरे खबरों से हटकर मनोरंजन की ओर बड़ रहे हैं, फिर चाहे वह अखबार हो या न्यूज़ चैनल सबकी अपनी एक लक्षित औडियंस है, जिसे ध्यान में रखकर खबरें दिखाई जाती हैं। अगर खबरें दिखाकर ही कोई चैनल चल रहा होता तो डीडी न्यूज़ आज आसमान की बुलंदियां छू रहा होता।
पत्रकारिता
सही माइने में पत्रकारिता आज के समय में शायद ही कोई करता हो और आजकल के पत्रकार, पत्रकार कम बलकि दलाल बनके रह गए हैं। पेड न्यूज़ का चलन भी बड़ता जा रहा है पैसे मिलेंगे तो कवरेज के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य तक चले जाएंगे वरना देश में अनेको मुद्दे हैं बेरोजंगारी से लेकर गरीबी के क्राइम के लेकिन न्यूज़ चैनलों को तो सरकार की वाह-वाही करते हैं या फिर उन्हे पीओके पर कब्जा करने से फुरसत ही नहीं। वहीं अगर कोई पत्रकार ईमानदारी से अपनी मेहनत से काम करना भी चाहे तो वह आगे नहीं बड़ पाता और ना ही उसे बड़ने दीया जाता है। बाहर के देशों में सोशल मीडीया पर झूठ फैलाया जाता है और मेन सट्रीम मीडीया उसे क्लीयर करने का काम करता है, भारत में सोशल मीडीया और मेन सट्रीम मीडीया दोनों ही जगहों पर झूठ परोसा जाता है। कायदे से देखा जाए तो अगर कहीं कोई घटना घटित होती है तो मीडीया का काम उसकी जानकारी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचाना होना चाहिए, फिर लोगों पर छोड़ देना चाहिए की वे उस घटना के बारे में क्या सोचते हैं या उनकी क्या राय है, ना कि पहले से ही एक प्रोपोगेन्डा के तहत उन्हें खबर दिखाना, हालांकी यह भी बहुत ही सोच समझकर कीया जाता है, किसी राजनितिक पार्टी या सरकार को चुनावों में फायदा पहुचाने के लिए, और इसका फायदा भी होता है लोग ऐसी ही घटनाओं को आधार बनाकर वोट डालते हैं, देश में तमाम मुद्दे हैं जैस कि गरीबी, बेरोजगारी, किसानों की आत्महत्या का मुद्दा इनपर कोई बात ही नहीं करता, सेन्टर फौर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की एक रिपोर्ट के हिसाब से भारत की बेरोजगारी दर सित्मबर 2022 तक 6.50% है, जिसमें गौर करने वाली बात यह भी है कि शहरी बेरोजगार दर ग्रामीण छेत्र की तुलना में काफी ज्यादा है, लेकिन इस मुद्दे पर किसी ने भी गौर नहीं किया और ना ही यह चर्चा का विषय बना।
पिछले तीन सालों में कितने ही किसानों ने देश भर में आत्महत्या कर ली इसकी भी जानकारी शायद ही किसी को होगी और सरकार को भी इन बातों से कोई खास फर्क नहीं पड़ता उसे भी पता है चुनावों में वोट इन मुद्दों से तो नहीं मिलेगा क्योंकि जब मुफ्त में बिजली, लैपटॉप, टैबलैट देकर बात बन सकती है तो बेवजह मेहनत क्यों करना कुछ ने तो स्कूटी तक देने का वादा किया हुआ है। आखिर में हम बात साफ सी है हम सब को यह समझना होगा कि देश का भी विकास तभी होगा जब हम सुचारु ढंग से अपने मुद्दों को सरकार के सामने रखें।
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