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जब राम भक्ति पर होती थी जेल, लखनऊ में चलाया था अभियान 

 

 

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई।।

डेस्क। Ram Mandir: रामचरितमानस की इस चौपाई का वाचन देते हुए लखनऊ के लाटूश रोड स्थित आयुर्वेदिक दवाओं की अपनी दुकान चलाने वाले हैं। उन्होंने एक पुराने से एक थैले से अनूप अवस्थी प्रमाणपत्र निकालकर दिखाते हैं।

उनके चेहरे पर एक साथ कई भाव भी उभर आते हैं। वह ये कहते हैं, एक वो भी दौर था, जब राम का नाम लेने पर अपराधी बना दिया जाता था। एक दौर ये भी है, जब सब राममय हो गया है। यह सब राम की कृपा का ही नतीजा है।

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अनूप अवस्थी उन स्मृतियों को दिखाने को बेताब रहे, जिसे उन्होंने बरसों से संदूक में बंद कर रखा था। वहीं स्मृतियों का खजाना खुलते ही आंदोलन में उनके साथ संघर्ष करने वाले होटल कारोबारी सुरेंद्र शर्मा भी अतीत में खो जाते हैं।

पूर्व पार्षद अतुल अवस्थी और चौक निवासी रिद्धि गौड़ भी इस चर्चा में शामिल हैं। अनूप अवस्थी कहते हैं, आंदोलन से जुड़ी लखनऊ से पहली टीम हमारी थी।

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सुरेंद्र शर्मा ये बताते हैं 89-90 में जब कारसेवकों का हुजूम अयोध्या पहुंचने लगा तो प्रतिबंध बढ़ने लगे थे। कारसेवकों के लखनऊ में रुकने, उनकी सुरक्षा, खानपान का प्रबंध चारबाग स्थित जैन व शाह गया प्रसाद धर्मशाला में हुआ था। अतुल अवस्थी बताते हैं कि हम लोग छोटे थे। हाईस्कूल में पढ़ रहे थे, पर गेरुआ रंग बनाकर रात में दीवारों पर लगाकर अलग-अलग नारे लिखने की जिम्मेदारी हमारी ही थी।

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रिद्धि गौड़ 1988 का एक किस्सा सुनाते हुए बताते हैं। कहते हैं, हम लोगों ने चौपटिया में मंदिर निर्माण के लिए यज्ञ शुरू किया। इसी के साथ पांच कार्ड छपे थे और एक बैनर बना था। तभी हुजूम जुट गया। साथ ही फोर्स भी आ गई थी। हम लोगों ने खुद को बचाते हुए यज्ञ किया। साथ ही इसके बाद किसी को जोड़ने के लिए बुलाना नहीं पड़ा।

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