अकबर-जोधाबाई के विवाह का असल सच
आज़ादी के बाद की भारतीय शिक्षा व्यवस्था में जिस तरह तोड़-मरोड़कर विदेशी बर्बर लुटेरों और आक्रान्ताओं का महिमामंडन किया गया है वो विश्व इतिहास में दुर्लभतम घटना है क्योंकि विश्व इतिहास में किसी भी देश ने आजाद होने के बाद सबसे पहले अपने गुलामी के निशानों को खत्म किया जिससे उनकी आने वाली पीढियां गुलामी की मानसिकता से बाहर निकल सकें और उनके मन-मस्तिष्क में कभी भी अपराध बोध न रहे किन्तु भारत विश्व में एकमात्र ऐसा देश है जिसने भारतीय हिन्दुओं की हत्या करने वाले,उनके मंदिरों,औरतों को लूटने वाले मुगल आक्रान्ताओं के बर्बर इतिहास को अपनी शिक्षा व्यवस्था में सर्वोत्तम स्थान दिया है और यहाँ के मूल निवासियों को डरपोंक और कायर सिद्ध करने का भरसक कुत्सित प्रयास किया I इसी प्रयास में एक कड़ी है मुग़ल आक्रान्ता अकबर और राजपूत क्षत्राणी जोधाबाई का विवाह जिसे भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है यहाँ तक कि इस विषय पर फिल्में और टीवी धारावाहिक भी बनते रहते हैं I इस तरह की कपोलकल्पित घटनायें भारतीय हिन्दू समाज को सदैव नीचा दिखाने का प्रयास करती रहती हैं और राजपूतों के साथ ही सभी हिन्दुओं के मन मस्तिस्क में भी जहर घोलती रहती है ऐसी मनगढ़ंत कल्पनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है और उसका सबसे बड़ा कारण हैं भारत की शिक्षा व्यवस्था,जिसने सदा ही भारतवर्ष के मूल निवासियों के मन में कुंठा का विष बोया है आपको जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि ऐसा हुआ क्यों ? तो उसका मूल कारण है स्वतंत्र भारत के इतिहास में कई हिन्दू समाज द्रोही शिक्षा मंत्री का होना I ध्यान दीजिये कि देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद थे जिनका असली नाम अब्दुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था I वो मौलाना आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आए थे । उनकी माँ अरबी मूल की थीं और उनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन एक फारसी (ईरानी) थे ।
मोहम्मद खैरुद्दीन और उनका परिवार भारतीय स्वतंत्रता के पहले आन्दोलन के समय 1857 में कलकत्ता छोड़ कर मक्का चला गया I मक्का में ही मोहम्मद खॅरूद्दीन की मुलाकात अपनी होने वाली बेगम से हुई फिर 1888 में मौलाना आजाद का जन्म हुआ उसके बाद मोहम्मद खैरूद्दीन 33 सालों के बाद 1890 में फिर भारत लौट आये यहाँ मौहम्मद खैरूद्दीन को कलकत्ता में एक मुस्लिम विद्वान के रूप में ख्याति मिली । जब आज़ाद मात्र 11 साल के थे, तब उनकी माता का देहांत हो गया। उनकी आरंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों से हुई। घर पर या मस्ज़िद में उन्हें उनके पिता तथा बाद में अन्य मुस्लिम विद्वानों ने पढ़ाया। आज़ाद ने उर्दू, फ़ारसी, अरबी तथा अंग्रेजी़ भाषाओं में महारथ हासिल की। तेरह साल की आयु में उनका विवाह ज़ुलैखा बेग़म से हो गया। वे सलाफी (देवबन्दी) विचारधारा के करीब थे और उन्होंने क़ुरान के अन्य भावरूपों पर लेख भी लिखे। आज़ाद ने अंग्रेज़ी खुद सीखी और पाश्चात्य दर्शन को बहुत पढ़ा। यहाँ एक बात और जरुरी है कि मौलाना आजाद अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खाँ के विचारों से पूरी तरह सहमत थे,वही अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय जिसका भारत के बंटवारे में महत्वपूर्ण योगदान था I उनकी मृत्यु के बाद भारत में तीन और मुस्लिम शिक्षा मंत्री रहे जिनके नाम हुमायूं कबीर,फखरुद्दीन अली अहमद और प्रो एस नूरुल हसन (राज्य मंत्री) थे I यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि अकबर कालीन किसी भी इतिहासकार ने जोधा और अकबर की इस तथाकथित प्रेम कहानी का कहीं भी कोई वर्णन नही किया I सभी इतिहासकारों ने अकबर की सिर्फ मुख्य 5 बेगम बताई है I 1.सलीमा सुल्तान 2.मरियम उद ज़मानी 3.रज़िया बेगम 4.कासिम बानू बेगम 5.बीबी दौलत शाद I
यहाँ ये नहीं भूलना चाहिये कि अकबर के समय तत्कालीन समाज में वेश्यावृति को अकबर का खुला संरक्षण प्राप्त था । उसकी एक बहुत बड़ी हरम थी जिसमे हजारों हिन्दू स्त्रियाँ थीं । इनमें अधिकांश स्त्रियों को बलपूर्वक अपहृत करवा कर वहां रखा हुआ था । उस समय में सती प्रथा भी जोरों पर थी। तब कहा जाता है कि अकबर के कुछ लोग जिस सुन्दर स्त्री को सती होते देखते थे, बलपूर्वक जाकर सती होने से रोक देते व उसे सम्राट की आज्ञा बताते तथा उस स्त्री को हरम में डाल दिया जाता था। हालांकि इस प्रकरण को अकबर के दरबारी इतिहासकारों ने कुछ इस ढंग से कहा है कि इस प्रकार बादशाह सलामत ने सती प्रथा का विरोध किया व उन अबला स्त्रियों को संरक्षण दिया। अपनी जीवनी में अकबर ने स्वयं लिखा है– यदि मुझे पहले ही यह बुधिमत्ता जागृत हो जाती तो मैं अपनी सल्तनत की किसी भी स्त्री का अपहरण कर अपने हरम में नहीं लाता। इस बात से यह तो स्पष्ट ही हो जाता है कि वह सुन्दरियों का अपहरण करवाता था। इसके अलावा अपहरण न करवाने वाली बात की निरर्थकता भी इस तथ्य से ज्ञात होती है कि न तो अकबर के समय में और न ही उसके उतराधिकारियो के समय में हरम बंद हुई थी बल्कि औरतों-लड़कियों का शोषण और उनसे जबरन सम्बन्ध बनाना आम बात थी ।
आईने अकबरी के अनुसार अब्दुल कादिर बदायूंनी कहते हैं कि बेगमें, कुलीन, दरबारियो की पत्नियां अथवा अन्य स्त्रियां जब कभी बादशाह की सेवा में पेश होने की इच्छा करती हैं तो उन्हें पहले अपनी इच्छा की सूचना देकर उत्तर की प्रतीक्षा करनी पड़ती है, जिन्हें यदि योग्य समझा जाता है तो हरम में प्रवेश की अनुमति दी जाती है। अकबर अपनी प्रजा को बाध्य किया करता था की वह अपने घर की स्त्रियों का नग्न प्रदर्शन करने के लिए सामूहिक रूप से आयोजित कार्यक्रमों में पेश करे जिसे अकबर ने खुदारोज (प्रमोद दिवस) नाम दिया हुआ था। इस उत्सव के पीछे अकबर का एकमात्र उदेश्य सुन्दरियों को अपने हरम के लिए चुनना था । गोंडवाना की रानी दुर्गावती पर भी अकबर की कुदृष्टि थी । उसने रानी को प्राप्त करने के लिए उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया। युद्ध के दौरान वीरांगना ने अनुभव किया कि उसे मारने की नहीं वरन बंदी बनाने का प्रयास किया जा रहा है, तो उसने वहीं आत्महत्या कर ली, तब अकबर ने उसकी बहन और पुत्रवधू को बलपूर्वक अपने हरम में डाल दिया। अकबर ने यह प्रथा भी चलाई थी कि उसके पराजित शत्रु अपने परिवार एवं परिचारिका वर्ग में से चुनी हुई महिलायें उसके हरम में भेजेगें ।
इस तरह की नीच और कामुक मानसिकता का शिकार अकबर खुद अपनी आत्मकथा अकबरनामा में भी किसी हिन्दू रानी से विवाह का कोई जिक्र नहीं करता है,परन्तु हिन्दू राजपूतों को नीचा दिखने के लिए कुछ इतिहासकारों ने अकबर की मृत्यु के करीब 300 साल बाद 18 वीं सदी में “मरियम उद ज़मानी”, को जोधाबाई बता कर एक झूठी अफवाह फैलाई! और इसी अफवाह के आधार पर अकबर और जोधा की प्रेम कहानी के झूठे किस्से शुरू किये गए I जबकि खुद अकबरनामा और जहांगीर नामा के अनुसार ऐसा कभी हुआ ही नही था I 18वीं सदी में मरियम को हरखा बाई का नाम देकर हिन्दू बता कर उसके मान सिंह की बेटी होने का झूँठा प्रचार शुरू किया गया I फिर 18वीं सदी के अंत में एक ब्रिटिश लेखक जेम्स टॉड ने अपनी किताब “एनालिसिस एंड एंटटीक्स ऑफ़ राजस्थान” में मरियम से हरखा बाई बनी इसी रानी को जोधा बाई बताना शुरू कर दिया और इस तरह ये झूठ आगे जाकर इतना प्रबल हो गया की आज यही झूठ भारत के स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया है और जन-जन की जुबान पर ये झूठ सत्य की तरह आ चुका है और इसी झूठ का सहारा लेकर राजपूतों और हिन्दू समाज को नीचा दिखाने की कोशिश जारी है I जब भी आप जोधाबाई और अकबर के विवाह प्रसंग को सुनते होंगे तो मन में कुछ अनुत्तरित सवाल अवश्य कौंधने लगते होंगे कि अपनी आन-बान और शान के लिए मर मिटने वाले शूरवीरता के लिए पूरे विश्व मे प्रसिद्ध भारतीय क्षत्रिय अपनी अस्मिता से क्या कभी इस तरह का तुच्छ समझौता कर सकते थे ? क्या हजारों की संख्या में एक साथ अग्निकुंड में जौहर करने वाली क्षत्राणियों में से कोई स्वेच्छा से किसी मुगल से विवाह कर सकती थीं ? जोधा और अकबर की प्रेम कहानी पर केंद्रित अनेक फिल्में और टीवी धारावाहिक हमारे मन की टीस को और ज्यादा बढ़ा देते हैं I जबकि मुग़ल इतिहासकारों ने भी कभी इस विवाह का कहीं वर्णन नहीं किया और न ही जोधाबाई का कहीं कोई उल्लेख ही मिला I ‘तुजुक-ए-जहांगिरी’ जो जहांगीर की आत्मकथा है उसमे भी आश्चर्यजनक रूप से जहांगीर ने अपनी मां जोधाबाई का एक भी बार जिक्र नही किया, हां कुछ स्थानों पर हीर कुँवर और हरका बाई का जिक्र जरूर मिलता है I यहाँ तक की इन्टरनेट पर अकबर की विकिपीडिया में भी इस विवाह का कोई वर्णन नहीं है I
इतिहास में दर्ज कुछ तथ्यों के आधार पर पता चलता है कि आमेर के राजा भारमल को दहेज में ‘रुकमा’ नाम की एक पर्सियन दासी भेंट की गई थी जिसकी एक छोटी पुत्री भी थी, रुकमा की बेटी होने के कारण उस लड़की को ‘रुकमा-बिट्टी’ नाम से बुलाते थे आमेर की महारानी ने रुकमा बिट्टी को ‘हीर कुँवर’ नाम दिया चूँकि हीर कुँवर का लालन पालन राजपूताना में हुआ इसलिए वह राजपूतों के रीति-रिवाजों से भली भांति परिचित थी राजा भारमल उसे कभी हीर कुँवरनी तो कभी हरका कह कर बुलाते थे I उत्तराधिकार के विवाद को लेकर जब पड़ोसी राजाओं ने राजा भारमल की सहायता करने से इनकार कर दिया तो उन्हें मजबूरन अकबर की सहायता लेनी पड़ी इस सहायता के बदले में अकबर ने राजा भारमल की पुत्री से विवाह की शर्त रख दी तो राजा भारमल ने क्रोधित होकर प्रस्ताव ठुकरा दिया था, प्रस्ताव अस्वीकृत होने से नाराज होकर अकबर ने राजा भारमल को युद्ध की चुनौती दे दी, आपसी फूट के कारण आसपास के राजाओं ने राजा भारमल की सहायता करने से मना कर दिया I इस अप्रत्याशित स्थिति से राजा भारमल घबरा गए क्योंकि वे जानते थे कि अकबर की सेना उनकी सेना से बहुत बड़ी है सो युद्ध मे अकबर से जीतना संभव नही है, चूंकि राजा भारमल अकबर की नीचता से भली-भांति परिचित थे इसलिये उन्होंने कूटनीति का सहारा लेते हुए अकबर के समक्ष संधि प्रस्ताव भेजा कि उन्हें अकबर का प्रस्ताव स्वीकार है वे मुगलो के साथ रिश्ता बनाने तैयार हैं I अकबर ने जैसे ही यह संधि प्रस्ताव सुना तो विवाह हेतु तुरंत आमेर पहुँच गया राजा भारमल ने अकबर को बेवकूफ बनाकर अपनी परसियन दासी रुकमा की पुत्री हरका बाई यानि हीर कुँवर का विवाह अकबर से करा दिया जिसे बाद में अकबर ने मरियम-उज़-जमानी नाम दिया चूँकि राजा भारमल ने उसका कन्यादान किया था इसलिये ऐतिहासिक किताबों में हीर कुँवरनी को राजा भारमल की पुत्री बता दिया गया जबकि वास्तव में वह कच्छवाह राजकुमारी नही बल्कि दासी-पुत्री थी I राजा भारमल ने यह विवाह एक समझौते की तरह या राजपूती भाषा में कहें तो हल्दी-चन्दन किया था I इस विवाह के विषय मे अरब में बहुत सी किताबों में लिखा गया है, इसी तरह ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड लाइब्रेरी में रखी किताबों में एक भारतीय मुगल शासक अकबर का विवाह एक परसियन दासी की पुत्री से करवाए जाने की बात लिखी है I ‘अकबर-ए-महुरियत’ में यह साफ-साफ लिखा है कि हमें इस हिन्दू निकाह पर संदेह है क्योंकि निकाह के वक्त राजभवन में किसी की आखों में आँसू नही थे और ना ही हिन्दू गोद भराई की रस्म हुई थी I
सिक्ख धर्म गुरू अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंह ने इस विवाह के विषय मे कहा था कि क्षत्रियों ने अब तलवारों और बुद्धि दोनो का इस्तेमाल करना सीख लिया है, मतलब राजपूताना अब तलवारों के साथ-साथ बुद्धि का भी प्रयोग करने लगा है I 17वी सदी में जब ‘पारसी’ भारत भ्रमण के लिये आये तब उन्होंने अपनी रचना ”परसी तित्ता” में लिखा “यह भारतीय राजा एक परसियन वैश्या को मुग़ल हरम में भेज रहा है अत: हमारे देव(अहुरा मझदा) इस राजा को स्वर्ग दें” I भारतीय राजाओं के दरबारों में राव और भाटों का विशेष स्थान होता था वे राजा के इतिहास को लिखते थे और विरदावली गाते थे उन्होंने साफ साफ लिखा है-
गढ़ आमेर आयी तुरकान फौज ले ग्याली पसवान कुमारी ,
राण राज्या राजपूता ले ली इतिहासा पहली बार ले बिन लड़िया जीत
मतलब कि आमेर किले में मुगल फौज आती है और एक दासी की पुत्री को ब्याह कर ले जाती है I ये ऐसे कुछ तथ्य हैं जिनसे एक बात पूरी तरह साफ़ हो जाती है कि इस देश के बिकाऊ इतिहासकारों ने जानबूझकर गौरवशाली क्षत्रिय समाज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की और यह कुप्रयास अभी भी जारी है I अकबर के हिन्दू सामंत भी उसकी अनुमति के बगैर मंदिर निर्माण तक नहीं करा सकते थे। बंगाल में राजा मानसिंह ने एक मंदिर का निर्माण बिना अनुमति के आरंभ किया, तो अकबर ने पता चलने पर उसे रुकवा दिया और 1595 में उसे मस्जिद में बदलने के आदेश दिए। इस कुत्सित मानसिकता के अकबर के साथ क्षत्राणी जोधा का विवाह एक नीच कल्पना से अधिक कुछ नहीं है किन्तु अब ऐसे कुत्सित मानसिकता वाले हिन्दू विरोधी इतिहासकारों के फैलाये इस षड़यंत्र को हिन्दू समाज पूरी तरह समझ चुका है इसलिए अब यह षड़यन्त्र अधिक दिन नही चलेगा,साथ ही आज का हिन्दू समाज लगभग हर स्थान पर इन गढ़ी गयी इन झूँठी और हिन्दुओं को नीचा दिखाने वाली बातों का खुलकर विरोध करना सीख चुका है,क्योंकि सत्य परेशान तो हो सकता है किन्तु पराजित नहीं, इसीलिए सनातन धर्म कहता है कि ‘सत्यमेव जयते’ अर्थात चाहे जितना भी समय लगे किन्तु अंत में जीत सदैव सत्य की ही होती है यही सनातन सत्य है I
लेखक
पं. अनुराग मिश्र “अनु”
स्वतंत्र पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक