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प्रतिशोध की अग्नि में जल रहा मणिपुर, कई घरों में लगाई आग

 

 

डेस्क। मणिपुर में एक बार फिर हिंसा भड़क गई है। फिर से वहां सेना को तैनात करना पड़ा है। पांच दिनों के लिए इंटरनेट सेवाएं भी बंद करनी पड़ीं और करीब एक पखवाड़ा पहले जब हिंसा भड़की थी, तब अनेक घरों में आग लगा दी गई और कई लोग मारे गए थे। 

तब करीब दस हजार लोगों को हिंसाग्रस्त इलाकों से बाहर निकालना पड़ा था और उस वक्त सरकार ने उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने का आदेश भी दिया था। उसके बाद करीब दस दिनों तक कोई उपद्रव नहीं हुआ, मगर अब एक बार फिर से इंफल इलाके में हिंसा भड़क उठी। यह बताया भी जा रहा है कि वहां मैतेई समुदाय के लोगों से जबरन दुकानें बंद कराई जाने लगीं, जिसे लेकर हिंसा भड़की हुई है।

इस बार गनीमत ये है कि किसी के हताहत होने की खबर नहीं है और कुछ घरों को इस बार भी आग के हवाले कर दिया गया। ऐसे में सवाल ये है कि मणिपुर की यह आग कब तक शांत होगी। 

विवाद दरअसल वहां के उच्च न्यायालय के इस आदेश पर शुरू हुआ है कि उसने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की दस साल पुरानी मांग पर विचार करने को बोला है। इससे वहां के मान्यता प्राप्त जनजातीय समुदायों में ऐसी आशंका पैदा हुई है कि सरकार मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दे सकती है और वे उनके संरक्षित भूभाग पर कब्जा करना भी शुरू कर सकते हैं।

मणिपुर में मुख्य रूप से तीन समुदाय के लोग रहते हैं और उनमें से नगा और कुकी मान्यता प्राप्त जनजातीय समुदाय हैं और उनका वहां के लगभग नब्बे फीसद संरक्षित पहाड़ी भूभाग पर कब्जा किया है। मैतेई समुदाय आबादी के लिहाज से इन दोनों जनजातियों से करीब दोगुना है, पर भूभाग का केवल दस फीसद हिस्सा ही उनके लिए मुक्त है। इस तरह वे मुख्य रूप से इंफल इलाके तक सीमित हैं। मगर मैतेई समुदाय हर दृष्टि से प्रभावशाली भी है। राजनीति में इसी समुदाय के विधायक अधिक हैं।

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