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Join NowPitru Paksha 2024: हिंदू धर्म में 15 दिनों तक चलने वाला पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनका आशीर्वाद पाने का एक महापर्व है। इन दिनों में हम अपने मृत पूर्वजों (पितरों) को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इन 16 दिनों की अवधि में हमारे पितर सूक्ष्म रूप में पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा दिए गए भोग को ग्रहण करते हैं, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
श्राद्ध के दौरान तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोज जैसे कई महत्वपूर्ण अनुष्ठान किए जाते हैं, लेकिन इन्हीं में से एक ऐसा कर्म है जिसके बिना श्राद्ध को अधूरा माना जाता है – वह है पंचबलि कर्म। कई लोग इसके महत्व से अनजान हैं, लेकिन यह एक ऐसा शक्तिशाली कर्म है जो न केवल पितरों को तृप्त करता है, बल्कि घर को पितृ दोष से मुक्त कर सुख-समृद्धि के द्वार खोल देता है। आइए, ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानते हैं इस रहस्यमयी कर्म के बारे में विस्तार से।
क्या है यह रहस्यमयी ‘पंचबलि कर्म’?
‘पंचबलि’ शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘पंच’ जिसका अर्थ है पांच, और ‘बलि’ जिसका अर्थ है भेंट या भोग चढ़ाना। इस प्रकार, पंचबलि कर्म का अर्थ है पांच अलग-अलग स्थानों पर या पांच विशेष प्रकार के जीवों के लिए भोजन का अंश निकालना। यह सिर्फ एक कर्मकांड नहीं, बल्कि सृष्टि के उन पांच तत्वों और जीवों के प्रति आभार व्यक्त करने का एक वैदिक अनुष्ठान है जो हमारे जीवन और मृत्यु के चक्र से जुड़े हुए हैं। माना जाता है कि इन पांच जीवों के माध्यम से ही हमारे पितरों तक श्राद्ध का भोजन पहुंचता है।
कैसे किया जाता है पंचबलि कर्म और कौन हैं वो 5 भाग्यशाली?
श्राद्ध के दिन जब घर में शुद्ध सात्विक भोजन बन जाता है, तो ब्राह्मण को भोजन कराने से पहले पंचबलि निकाली जाती है। इसके लिए, बनाए गए सभी पकवानों में से थोड़ा-थोड़ा अंश पांच अलग-अलग पत्तलों या पत्तों पर निकाला जाता है। फिर हाथ में जल, अक्षत और पुष्प लेकर पितरों का ध्यान करते हुए पंचबलि दान का संकल्प लिया जाता है। यह बलि इन पांच को दी जाती है:
1. गोबलि (गाय के लिए भोग):
पहला भाग गाय के लिए निकाला जाता है। हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। मान्यता है कि पितरों को भूलोक से देवलोक तक की यात्रा कराने और वैतरणी नदी पार कराने में गौ माता ही मदद करती हैं। गाय को भोजन कराने से पितर तृप्त होते हैं।
2. काकबलि (कौवे के लिए भोग):
दूसरा भाग कौवे के लिए छत या किसी साफ स्थान पर रखा जाता है। कौवे को यमराज का दूत और पितरों का प्रतिनिधि माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि कौवे के माध्यम से दिया गया भोजन सीधे हमारे पूर्वजों को प्राप्त होता है।
3. श्वानबलि (कुत्ते के लिए भोग):
तीसरा भाग कुत्ते के लिए निकाला जाता है। कुत्ते को यम का पशु और भैरव का सेवक माना जाता है। यह रक्षक का प्रतीक है। श्राद्ध में कुत्ते को भोजन कराने से पितरों की आत्मा को सुरक्षा और शांति मिलती है।
4. देवबलि (देवताओं और जरूरतमंदों के लिए भोग):
चौथा भाग देवताओं के निमित्त माना जाता है, जिसे बाद में किसी भिक्षुक, जरूरतमंद व्यक्ति या अतिथि को दे दिया जाता है। ‘नर सेवा ही नारायण सेवा है’ के भाव से किया गया यह दान पितरों को परम शांति प्रदान करता है।
5. पिपीलिकादिबलि (चींटी-कीड़ों के लिए भोग):
पांचवां और अंतिम भाग चींटी, कीड़े-मकोड़ों जैसे सूक्ष्म जीवों के लिए निकाला जाता है। इसे चींटियों के बिल के पास या किसी ऐसे स्थान पर रखा जाता है, जहाँ छोटे-छोटे जीव भोजन कर सकें। यह कर्म दर्शाता है कि हम सृष्टि के छोटे से छोटे जीव के प्रति भी कृतज्ञ हैं।
यह सब भोजन निकालने के बाद ही परिवार और ब्राह्मण भोजन ग्रहण करते हैं।
‘पंचबलि कर्म’ का ज्योतिषीय महत्व: पितृ दोष का अचूक उपाय
ज्योतिष शास्त्र में ‘पंचबलि कर्म’ को पितृ दोष के निवारण का सबसे शक्तिशाली उपाय माना गया है। पितृ दोष कुंडली का एक ऐसा दोष है जो पूर्वजों की आत्मा के अशांत होने के कारण बनता है। इसके कारण व्यक्ति के जीवन में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, आर्थिक तंगी, संतान प्राप्ति में बाधा, विवाह में देरी और पारिवारिक कलह जैसी अनगिनत परेशानियां आती हैं।
जब हम श्रद्धापूर्वक पंचबलि कर्म करते हैं, तो हमारे पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है, और वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। उनके आशीर्वाद से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है और जीवन में आ रही सभी बाधाएं दूर होने लगती हैं। इसलिए, यदि आप भी इस पितृ पक्ष में अपने पितरों का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो तर्पण और श्राद्ध के साथ ‘पंचबलि कर्म’ करना बिल्कुल न भूलें।