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Join NowDhanteras story in Hindi: 18 अक्टूबर को पूरे भारत में धनतेरस का पावन पर्व मनाया जाएगा। यह दिन केवल सोना-चांदी खरीदने का ही नहीं, बल्कि धन और समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर, और आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की उपासना का भी है। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाने वाला यह त्योहार जीवन में सुख, समृद्धि और आरोग्य लेकर आता है।
हम सब इस दिन धन के देवता कुबेर की पूजा तो करते हैं, पर क्या आप उस पौराणिक कथा के बारे में जानते हैं जब भगवान गणेश ने स्वयं कुबेर देव का सारा अहंकार तोड़कर उन्हें एक अमूल्य पाठ सिखाया था? चलिए जानते हैं धनतेरस से जुड़ी वह अद्भुत कहानी, जिसने हमेशा के लिए बदल दिया धन का सही अर्थ।
जब गणेश जी ने तोड़ दिया था कुबेर देवता का अहंकार
स्कंद और पद्म पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले की बात है। धन के देवता कुबेर अपने वैभव और ऐश्वर्य के घमंड में चूर थे। उनके स्वर्ण महल की चमक त्रिलोक में प्रसिद्ध थी, लेकिन इस समृद्धि ने उनके भीतर एक गहरे अहंकार को जन्म दे दिया था। उन्हें लगता था कि उनसे बड़ा और धनवान कोई नहीं है।
एक दिन, अपने इसी घमंड का प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने भगवान शिव को अपने महल में भोजन पर आमंत्रित करने का विचार किया। वह चाहते थे कि महादेव उनकी अपार संपत्ति और वैभव को देखें और उसकी प्रशंसा करें। इसी इच्छा के साथ वे कैलाश पर्वत पहुँचे और भगवान शिव को अपने घर भोजन का निमंत्रण दिया।
भगवान शिव, जो त्रिकालदर्शी हैं, कुबेर के मन की बात तुरंत समझ गए। उन्होंने विनम्रता से मुस्कुराते हुए कहा, “हे कुबेर, मैं तो कैलाश छोड़कर कहीं नहीं जा सकता, पर मेरा पुत्र गणेश तुम्हारे निमंत्रण को अवश्य स्वीकार करेगा।” यह सुनकर कुबेर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा, ‘चलो, पिता नहीं तो पुत्र ही सही, किसी के सामने तो अपने वैभव का प्रदर्शन किया जा सकेगा।’
एक अतिथि और खाली होता महल
अगले दिन, भगवान गणेश अपने प्रिय वाहन मूषक पर सवार होकर कुबेर के स्वर्ण महल पहुँचे। कुबेर ने बड़े आडंबर के साथ उनका स्वागत किया और उन्हें अपने पूरे महल का भ्रमण कराने की इच्छा जताई। इस पर बाल गणेश ने मुस्कुराते हुए कहा, “देव, मैं आपके स्वर्ण महल की चमक देखने नहीं, अपनी भूख शांत करने आया हूँ। कृपा करके शीघ्र भोजन परोसें, क्योंकि मुझे बहुत तेज भूख लगी है।”
कुबेर ने तुरंत सोने-चांदी के बर्तनों में अनेकों प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन परोस दिए। गणेश जी भोजन करने बैठे और देखते ही देखते उन्होंने सारा भोजन समाप्त कर दिया। उन्होंने और भोजन लाने को कहा। कुबेर के सेवक और भोजन लाते रहे, और गणेश जी उसे खाते रहे। धीरे-धीरे महल की रसोई खाली हो गई, फिर अन्न के भंडार खाली हो गए, पर गणेश जी की भूख शांत होने का नाम ही नहीं ले रही थी।
जब कुबेर के हाथ जुड़े और घमंड टूटा
अंत में, जब महल में अन्न का एक दाना भी नहीं बचा, तो कुबेर देव घबराकर गणेश जी के चरणों में गिर पड़े। उन्होंने हाथ जोड़कर कांपती हुई आवाज़ में कहा, “हे प्रभु! मुझे क्षमा करें। मैं अपने अहंकार में अंधा हो गया था। अब मेरे महल में आपको खिलाने के लिए कुछ भी शेष नहीं है।”
तब गणेश जी ने मुस्कुराते हुए उन्हें उठाया और कहा, “हे कुबेर, जिस धन से तुम एक अतिथि की भूख भी नहीं मिटा सके, उस पर इतना घमंड क्यों? याद रखना, धन सेवा और तृप्ति के लिए होता है, अहंकार के प्रदर्शन के लिए नहीं। यही अहंकार एक दिन विनाश का कारण बनता है।”
यह सुनकर कुबेर देवता की आँखों से आंसू बहने लगे। उन्हें अपनी गलती का गहरा एहसास हुआ और उन्होंने वचन दिया कि वे कभी धन का अहंकार नहीं करेंगे। तब भगवान गणेश ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनकी भूख भी शांत हो गई। यह कथा हमें सिखाती है कि धनतेरस पर सच्ची पूजा धन का अहंकार त्यागकर विनम्रता और सेवा भाव अपनाने में है।