धर्म

Chanakya Niti: परेशानी में व्यक्ति को क्या करना चाहिए 

 

डेस्क। Chanakya Niti। आचार्य चाणक्य की सीख आज सदियों बाद भी लोगों को राह दिखाती है। वहीं आचार्य चाणक्य ने जीवन में आने वाली हर परेशानी के निराकरण के लिए उचित मार्गदर्शन भी किया है।

आचार्य ने व्यक्ति के पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्र के प्रति व्यवहार के बारे में विस्तार से उल्लेख भी किया है। यदि किसी व्यक्ति को जीवन में रोजगार के संकट से बचना है या अपने कर्म के प्रति कैसा व्यवहार होना चाहिए। इस बारे में विस्तार से इन श्लोकों में उल्लेख भी किया गया है –

॥दूरस्थमपि चारचक्षुः पश्यति राजा।।

आचार्य चाणक्य के मुताबिक राजा गुप्तचरों द्वारा दूर की वस्तु को भी देख लेता है। वहीं एक राजा को अपने कर्तव्य के प्रति सदैव सजग रहना चाहिए। और उन्होंने कहा है कि गुप्तचर राजा की आंख होते हैं। वह देश तथा विदेश में अपने राज्य से संबंधित अनेक बातों को गुप्तचरों द्वारा जान भी लेता है।

।। गतानुगतिको लोकः ।।

आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक में कहा है कि साधारण मनुष्य परंपरा का अनुसरण करते हैं और इसे दूसरे शब्दों में भेड़-चाल भी कहा है। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि केवल बुद्धिमान मनुष्य ही सोच-विचार कर अपने लिए हितकारी मार्ग का चुनाव करके उसका अनुसरण भी करता है और बुराई के मार्ग को छोड़ देता है। वे किसी दूसरे को देखकर आचरण नहीं करते और वे अपनी बुद्धि से विचार कर कार्य भी करते हैं। ।

॥ यमनुजीवेत्तं नापवदेत् ॥

इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने ये भी कहा है कि जिसके द्वारा जीविकोपार्जन होता है, उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए। साथ ही मनुष्य को आजीविका देने वाले स्वामी की निंदा भी नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से जीविका समाप्त हो सकती है। यह समस्त संसार सन्मति, पुण्य कार्य, धर्म, जीविका आदि के कारण एक-दूसरे से बंधे भी हुए हैं। इसी कारण यह संसार निर्विघ्न चलता रहता है। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि आजीविका देने वाले स्वामी की निंदा न करके उसका सम्मान भी करना चाहिए।

॥ तपःसार इन्द्रियनिग्रहः ।।

इस श्लोक में आचार्य ने ये कहा है कि हर व्यक्ति को अपनी इंद्रियों के वश में रखना चाहिए। वहीं इंद्रियों को वश में रखना ही तप का सार है और विषय भोग से संबंध रखने वाले व्यक्ति एकांत वन में भी अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रख सकते। साथ ही जो व्यक्ति अपने घर में रहता हुआ भी इंद्रियों को वश में रखता हुआ अपना कार्य करता है, वह तप पूर्ण जीवन ही बिता भी रहा होता है।।

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