राजनीति– आज की राजनीति का परिदृश्य बिल्कुल बदल गया है। आज राजनीति में धर्म सर्वोपरि हो गया है। अगर हम इस सवाल पर गौर करे की आखिर ऐसा क्या हुआ कि देश धर्म की राजनीति करने लगा और धर्म राजनीति के लिए सबसे उपयोगी तमगा बन गया। राजनीति में अगर अब कोई राजनेता कदम रखता है तो उसके लिए पहला मुद्दा धर्म बन जाता है और राजनेता अपने धर्म के आधार पर अपनी लोकप्रियता बढ़ाने लगते हैं।
जाने कब परवान चढ़ी धर्म की राजनीति-
साल 2014 जब देश मे धर्म की राजनीति ने धीरे से अपने कदम पसारने शुरू किये। उस समय किसी को इस बात की अनुभूति नही थी कि ऐसा कुछ हो जायेगा कि देश मे अगर कोई मुद्दा बचेगा तो वह धर्म बचेगा। बीजेपी की सरकार बनी उस समय का स्लोगन था अच्छे दिन आने वाले हैं हम मोदी जी को लाने वाले हैं। हर घर मे यह स्लोगन लोगो की जुबान पर रट गया। हर किसी को इससे प्रेम हो गया और इसका नतीजा यह निकला की केंद्र की बागडोर बीजेपी के हाथ मे आ गई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के मुखिया बन गए।
यह वह दौर था जब बड़ी बड़ी बाते किनारे हो गई और धर्म के नाम पर लोग जुड़ने लगे। बीजेपी ने अपना चेहरा हिंदुत्व का चेहरा बनाया। बीजेपी ने हिंदुत्व के नाम पर लोगो को एक गांठ में बांध लिया था। उसे यह समझ आ चुका था कि धर्म एक अपीम है जिसका नशा अगर जनता पर चढ़ जाए तो उसे उतारना काफी मुश्किल काम है। उसने ऐसा ही किया लोगो को धर्म की अपीम धीरे धीरे चटाई और लोग धर्म हितैषी हो गए।
ऐसा नही है कि बीजेपी से पहले जाति धर्म के नाम पर राजनीति नही होती थी। उस समय भी राजनेताओ का केंद्र जातिय वोट बैंक रहा है। अगर हम बसपा की बात करे तो वह हमेशा से दलित दांव खेलती रही। सपा मुस्लिम दांव कांग्रेस ने सभी को बांधने की कोशिश की। लेकिन बीजेपी ने हिन्दू दांव खेला। बीजेपी का हिन्दू दांव इतना मजबूत था कि इसने हिन्दू धर्म के सभी जातिगत लोगो को एक सूत्र में बांध कर विपक्ष को तोड़ने की कवायद शुरू की।
साल 2017 में हिन्दू चेहरे से यूपी हुआ रंगीन-
साल 2017 उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव इसने हिंदुत्व की राजनीति को जगजाहिर कर दिया। राम मंदिर के नाम पर बीजेपी में यूपी में अपनी फतेह का परचम लहरा दिया। किसी ने कभी सपने में नही सोचा था कि यूपी की बागडोर योगी आदित्यनाथ के हाथों में जाएंगे। क्योंकि योगी का चेहरा एक कट्टर हिन्दू के नाम से विख्यात था। यह हमेशा हिंदुओं के लिए प्रखर खड़े रहे हैं।
लेकिन 19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ ने उत्तरप्रदेश के मुखिया के रूप में शपथ ग्रहण की। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने हमेशा यही प्रयास किया की वह सभी को साथ लेकर चल सके। लेकिन उनका भगवा रंग कही न कही उनका हिन्दू प्रेम जगजाहिर कर देता था। लोग योगी को हिंदुत्व हितैषी कहते हैं। आज भी योगी की लोकप्रियता हिन्दू प्रिय के नाम से है।
नवम्बर 2019-
9 नवंबर 2019 की तारीख ने इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया है। अयोध्या मामले पर केस खत्म हो गया है और देश की शीर्ष अदालत ने रामलला को कानूनी मान्यता देते हुए राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया है। केंद्र सरकार को मंदिर निर्माण के निर्देश दिए गए हैं। इसके लिए ट्रस्ट बनाने को कहा गया है, जबकि मुस्लिम पक्ष को अलग से 5 एकड़ जमीन दी जाएगी।
इस फैसले के बाद मुस्लिम समाज को यह लगा की बीजेपी सिर्फ हिन्दू की पार्टी है। विपक्ष के नेताओ ने इस फैसले का फायदा उठाया और जनता को धर्म के नाम पर बांट दिया। यूपी में मुस्लिम समाज सपा के पक्ष में हो गया। वही अगर हम बात हिन्दू की करे तो उसने बीजेपी का समर्थन करना ठीक समझा। बीजेपी के हिन्दू कार्ड ने बसपा के कोर वोट पर डाका डाल दिया और बसपा की रीढ़ बीजेपी के सत्ता में आने के बाद चटक गई।
योगी आदित्यनाथ ने उत्तरप्रदेश के कई शहरों के नाम बदले जिसने उन्हें हिन्दू पक्षधर बना दिया। मुस्लिम समाज की नजर में योगी एक ऐसे राजनेता बन गए जिन्हें अगर कुछ दिखाई देता है। तो वह हिंदुओ का हित।
2022 का चुनाव और हिंदुत्व का शंखनाद-
साल 2022 के चुनाव में उत्तरप्रदेश में बीजेपी ने भले ही यह दिखाने की कोशिश की है कि वह सभी को साथ लेकर चलती है। योगी आदित्यनाथ ने प्रत्येक समाज को साधा लेकिन कुछ गाने इस तरह से सामने आए जिन्होंने योगी की छवि को हिंदुत्व की छवि बनाया और यह साबित कर दिया की बीजेपी अगर सत्ता में है तो वह हिन्दू के बलबूते पर।
कभी भगवा प्रचार में हिन्दू जगाने आया हूँ मैं हिन्दू जगाकर जाऊंगा सुनाई दिया। तो कभी जो राम को लाये हैं हम उनको लाएंगे यूपी में हम फिर से भगवा लहरायेंगे। यह सभी गाने बीजेपी के हिन्दू होने का परिचय दे रहे हैं। वही बीजेपी को 2022 के चुनाव में हिन्दू का जमकर समर्थन प्राप्त हुआ और पुनः यूपी की बागडोर बीजेपी के हाथ मे आई।