इतिहास– हमारे देश से अंगेजो का शासन तो चला गया लेकिन हमें अंग्रेजो ने अपनी सभ्यता से जोड़ने में अच्छी सफलता हासिल कर ली। हमारे देश मे खाने की आदतों से लेकर आज हमारे कपड़े पहनने का ढंग तक अंग्रेजी सभ्यता से घिरा हुआ है। अंगेजो में हमारी सभ्यता पर ऐसा प्रहार किया है कि आज हम अपनी मूल संस्कृति से विचलित होकर एक नए मार्ग पर चल पड़े हैं। आज के समय मे जो ट्रेड से नही जुड़ता उसे पिछड़ा माना जा रहा है और समाज मे उसको कम तबज्जूब मिल रहा है।
अगर हम इस नए ट्रेड को गौर से देखे तो इसमे सबसे ज्यादा शामिल हैं अश्लीलता। अंग्रेजों ने हमारे देश मे अश्लीलता को जमकर बढाया है और उसका हर जगह विस्तार किया है। आज हम कही भी नजर डाले हम देख सकते हैं कि किस प्रकार आज शरीर के प्रदर्शन का ट्रेंड चला है। आज कोई भी स्त्री साधारण वस्त्र धारण करना नही चाहता है। क्योंकि साधारण वस्त्र आपको पुराने ट्रेड से जोड़ते हैं और छोटे वस्त्र जिनमे आपके अंग का प्रदर्शन हो वह आपको ट्रेड से जोड़ते हैं।
अंग्रेजों ने समाज मे अंग प्रदर्शन की ऐसी आदत डाली है कि अब हमें हर जगह इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। अंग्रेजों का आरंभ से यही उद्देश्य रहा है कि वह किसी भी तरीके से भारत की मूल परंपरा को नष्ट करे। वही आज उनकी यह सोच काफी हद तक सफल हुई और अब पूरा भारत अंग्रेजी संस्कृति का गुलाम है। आज हम भले प्रत्यक्ष रूप से आजाद है लेकिन हमारे चरित्र पर अंग्रेजों की संस्कृति की छाप दिखाई देती है।
अंग्रेजों ने अपनी संस्कृति का प्रचार देश मे जुआ की परंपरा से किया। हमारे देश मे कभी भी लोग सट्टेबाजी नही करते थे। लेकिन अंग्रेजों ने हमे सट्टेबाजी करना सिखाया और आज भारत मे यह ट्रेड सबसे ज्यादा तेजी से चल रहा है। वही अगर हम इस छोटे कपड़ो के ट्रेड की बात करे तो यह भी हमे अंग्रेजों से प्राप्त हुई है और भारत मे इसका प्रचार प्रसार करने में सिनेमा ने अहम भूमिका निभाई है।
भारतीय सिनेमा ने अंग्रेजी सम्भयता का खुब प्रदर्शन किया और नग्नता को बढ़ावा दिया। सिनेमा ने छोटे कपड़ो को ट्रेड बना दिया। सिनेमा के हमारे उठने बैठने और हमारे कपड़ो को धारण करने का पूरा तरीका बदल दिया। आज हम जो भी पहनते हैं वह सब सिनेमा में देखकर पहनते हैं। आज सिनेमा के द्वारा अश्लीलता को इतना बढ़ावा दिया गया है कि कुछ भी अब पर्दे के पीछे नही रह गया है। आज सिनेमा की अश्लीलता समाज पर हावी हो रही है और अब रिश्तों में सिनेमा का प्रभाव खूब दिख रहा है।
भारत देश में 1992 के पहले कोई विदेशी पत्र-पत्रिकाएं नहीं आती थीं। उन पर प्रतिबन्ध लगा हुआ था – सरकार द्वारा कानून बना कर। 1992 में एक नीति बनी सरकार की – ग्लोबलाइज़ेशन, लिबरलायिज़ेशन, प्राइवेटाइजेशन, उदारीकरण, वैश्वीकरण, भूमंडलीकरण। इस नीति में सारे दरवाज़े खोले गए – विदेशी पत्रिकाओं के लिए, विदेशी अखबारों के लिए और विदेशी फिल्मों के लिए।
अब, विदेशी फिल्में, विदेशी पत्रिकाएं और विदेशी अखबार आने शुरू हो गए, और उन्होंने इस देश में एक बाढ़ सी ला दी है। ग्लोबलाइजेशन ने भारत को विदेश से सींधे तौर पर जोड़ दिया एक तरह जहां ग्लोबलाइजेशन ने भारत को आर्थिक विस्तार दिया वही दूसरी ओर इसके जरिए भारत की सभ्यता पर प्रहार हुआ और विदेशी संस्कृति भारत पर हावी हो गई।