इतिहास– भारतीय इतिहास में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को संविधान का रचयिता और दलित हितैषी कहा जाता है। भीम राव अंबेडकर ने अपना पूरा जीवन समाज के कल्याण में लगा दिया। उनका उद्देश्य एक ऐसे सामाज का निर्माण करना था जहां जाति प्रथा न हो और मनुष्य को जाति से नही मानवता की नजर से देखा जाए।
बाबा साहेब ने सदैव समानता की बात की उन्होंने सभी के लिए समान अधिकारों का जिक्र संविधान में किया। महिलाओ को उनके अधिकार दिलाये और शोषित के हक की लड़ाई लड़ी। लेकिन बाबा साहेब को कई विचारक हिन्दू विरोधी भी कहते हैं। कई लोगो का मानना था कि वह बौद्ध धर्म को सभी पर थोपना चाहते थे और हिन्दू धर्म के अस्तित्व को मिटाना चाहते थे।
कही न कही यह बात सच भी है कि बाबा साहब हिन्दू धर्म की नीतियों के खिलाफ थे और उन्हें हिन्दू धर्म से समस्या थी। लेकिन इसको इससे जोड़कर देखना की वह बौद्ध धर्म को सभी पर थोपना चाहते थे यह कहना शायद उचित नही है। क्योंकि भीमराव अंबेडकर ने सदैव स्वतंत्रता की बात की है और उनका उद्देश्य यही था कि प्रत्येक व्यक्ति के पास इतना अधिकार होना चाहिए कि वह अपने लिए खुद निर्णय ले सके।
लेकिन अंबेडकर हमेशा हिन्दू धर्म को बीमार बताते थे। यह पहले भारतीय व्यक्ति थे जिन्होंने विदेशी यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी की थी। अंबेडकर काफी पढ़े लिखे व्यक्ति थे। इनका उद्देश्य देश को भारत रखने का था न की भारत को धार्मिक देश बनाने का। 1913 में उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। 1916 में लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में पीएचडी की. वह देश के पहले क़ानून मंत्री बने. वे संविधान समिति के अध्यक्ष भी थे।
अंबेडकर ने साल 1951 में हिंदू कोड बिल को लेकर हुए सवाल पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। अंबेडकर कभी भी भारत को हिन्दू राष्ट्र नही बनने देना चाहते थे। उन्होंने हिन्दू को भारत का बीमार बताया था। उनका कहना था कि अगर भारत हिन्दू राष्ट्र बन गया तो भारत कभी विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ पायेगा।
मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद 1952 में वे राज्यसभा के सदस्य बनाए गए. 14 अक्टूबर 1956 को आंबेडकर धर्म परिवर्तन करके बौद्ध बन गए थे।