मीडिया– लोकतंत्र का अभिभाज्य अंग कहे जाने वाले मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के लिये सरकार या उच्च पदाधिकरी कोई न कोई न कोई उपाय खोज ही लेते हैं। मीडिया जिसका काम प्रखरता से खबरों का प्रसारण करना और जनता को जागरूक बनाना होता है। वही आज हम बात करने जा रहे हैं सेंसरशिप के बारे में जिसका जिक्र हमने मीडिया के परिपेक्ष्य में खूब सुना होगा।
जाने क्या है सेंसरशिप-
जब हम बात सेंसरशिप की करते हैं तो इसका सीधा मतलब होता है प्रसारण पर निगरानी रखना। अर्थात हम कह सकते हैं यह इस बात की देखरेख करता है कि मीडिया क्या प्रसारित कर रहे हैं और उनके द्वारा जो कुछ भी प्रसारित किया जा रहा है वह समाज के लिए किस प्रकार उपयोगी साबित होगा या समाज पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा।
भारतीय कानून में सेंसरशिप-
जब भारतीय कानून से सेंसरशिप शब्द का उपयोग किया गया। तो इसने मीडिया के बीच एक नई धारा प्रवाहित की ओर जन्म हुआ राजनेताओं के भाषण , आम लोगो की बात, विचारको के बीच बहस का। सेंसरशिप ने बहस को मुख्य धारा में लाकर खड़ा कर दिया और यह मीडिया का नया आधार बन गया।
विज्ञापन, थिएटर, फिल्में, श्रृंखला, संगीत, भाषण, रिपोर्ट, बहस, पत्रिकाएंँ, समाचार पत्र, नाटक, कला, नृत्य, साहित्य, लिखित, वृत्तचित्र या मौखिक कार्यों के कोई भी रूप सेंसरशिप के अंतर्गत आता है।
अगर हम उदाहरण के तौर पर समझे तो जब कोई विचार समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालता है या कोई आपत्तिजनक समाज के लिए खतरा बनती है। तो सेंसरशिप के माध्यम से उसे मुख्य डोमेन से हटा दिया जाता है। क्योंकि यह निगरानी रखने का काम करता है कि मुख्य डोमेन जो भी जानकारी दे रहा है उसका समाज पर।कैसा प्रभाव पड़ता है।
जानकारी के लिए बता दें सेंसरशिप का प्रयोग भारत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न कानूनों और प्राधिकरणों के माध्यम से यथा भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड, भारतीय प्रेस परिषद, सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952, केबल टेलीविजन अधिनियम आदि जैसे विभिन्न डोमेन में किया जाता है।