Supreme Court : किराएदार बाहर, 63 साल बाद मालिक को मिला अपना घर

Published On: June 6, 2025
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Supreme Court : किराएदार बाहर, 63 साल बाद मालिक को मिला अपना घर
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Supreme Court :  देश की सर्वोच्च अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव डालने वाला फैसला सुनाया है। यह मामला एक शहर के सबसे पॉश और महंगे इलाके में स्थित एक बेशकीमती प्रॉपर्टी (valuable property) से जुड़ा हुआ है, जिस पर एक किरायेदार परिवार ने पिछले 63 वर्षों से अनधिकृत रूप से कब्जा (illegal possession) कर रखा था। संपत्ति के मूल मालिक, पहले पिता और उनकी मृत्यु के उपरांत उनके बेटों ने, इस संपत्ति को वापस पाने के लिए एक बहुत लंबी, कठिन और थका देने वाली कानूनी लड़ाई (prolonged legal battle) लड़ी है। परंतु, इतने दशकों के संघर्ष के बावजूद, वे अब तक अपनी ही पैतृक संपत्ति (ancestral property) को वापस पाने में सफल नहीं हो पाए थे।

यह मामला शहर के एक प्रमुख और विकसित इलाके की एक महंगी संपत्ति (expensive property) का है, जिस पर एक किरायेदार पिछले छह दशकों से भी अधिक समय से काबिज था। मकान मालिक, पहले स्वयं पिता और फिर उनके बाद उनके बेटों ने, इस जटिल कानूनी जंग (complex legal dispute) को पीढ़ी दर पीढ़ी लड़ा, परंतु वे अपनी ही संपत्ति का सुख भोगने से वंचित रहे। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि भारत में संपत्ति विवादों (property disputes in India) को सुलझाने की प्रक्रिया कितनी लंबी, जटिल और parfois निराशाजनक हो सकती है, और न्याय पाने में कितना अधिक समय लग सकता है।

एक ही परिवार की दो पीढ़ियाँ (two generations) अपने हक और अधिकार की इस लड़ाई में अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय और संसाधन लगाती रहीं, सिर्फ अपने घर को वापस पाने की उम्मीद में। दूसरी ओर, किरायेदार ने इतने लंबे समय तक, बिना किसी विशेष परेशानी या लागत के, शहर के एक पॉश इलाके में स्थित उस आलीशान घर में आराम से अपना जीवन व्यतीत किया। यह मामला भी कुछ ऐसा ही है जो 63 वर्षों तक विभिन्न अदालतों (various courts) के चक्कर काटता रहा और आखिरकार, 24 अप्रैल 2025 को (जैसा कि मूल स्रोत में उल्लेखित है, हालांकि यह भविष्य की तारीख है, हम इसे दिए गए तथ्य के रूप में ले रहे हैं), देश की सर्वोच्च न्यायपालिका, यानी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने संपत्ति के मूल मालिक के बच्चों, जो अब उनके कानूनी उत्तराधिकारी (legal heirs) हैं, के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें उनकी बहुप्रतीक्षित प्रॉपर्टी (long-awaited property) वापस दिलाने का मार्ग प्रशस्त किया।

आखिर यह लंबी कानूनी लड़ाई कब और कैसे शुरू हुई?

इस पेचीदा संपत्ति विवाद (complicated property dispute) की कहानी वर्ष 1952 में शुरू हुई थी, जब एक व्यक्ति (जिन्हें हम सांकेतिक रूप से ‘A’ कह सकते हैं) ने अपनी बहुमूल्य संपत्ति को 10 वर्षों की एक निश्चित अवधि के लिए कुछ व्यक्तियों (जिन्हें ‘B’ कहा जा सकता है) को किराए पर दिया था। अनुबंध की शर्तों के अनुसार यह एक सीमित अवधि की किरायेदारी थी।

वर्ष 1962 में, यह संपत्ति किसी तीसरे व्यक्ति (जिन्हें हम ‘C’ मान लेते हैं) को कानूनी रूप से बेच दी गई, और इस प्रकार संपत्ति का मालिकाना हक (ownership rights) ‘C’ के पास चला गया।

इसके उपरांत, वर्ष 1965 में, नए मालिक (C) ने यह पाया कि मूल किरायेदार, जिनकी किरायेदारी की अवधि समाप्त हो चुकी थी, बिना किसी वैध अनुमति या नए अनुबंध के उनकी जमीन पर अनधिकृत रूप से कब्जा (unauthorized land possession / land grab) किए हुए हैं और संपत्ति खाली करने को तैयार नहीं हैं। यह स्थिति देखते हुए, उन्होंने किरायेदारों को संपत्ति से बेदखल (eviction of tenants) करने के लिए स्थानीय अदालत में एक मुकदमा दायर किया।

हालांकि, दुर्भाग्यवश, वर्ष 1974 में वे यह मामला सुप्रीम कोर्ट में किसी तकनीकी या कानूनी पहलू पर हार गए।

हार के बाद भी मकान मालिक ने हिम्मत नहीं हारी और संघर्ष जारी रखा-

इस शुरुआती झटके और हार के बावजूद, संपत्ति के मालिक (C) ने हार नहीं मानी। वर्ष 1975 में, मालिक (C) ने एक बार फिर से नए सिरे से जिला अदालत (District Court) में किरायेदारों के खिलाफ बेदखली का नया मुकदमा दायर किया। यह मामला विभिन्न कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरते हुए वर्ष 1999 में राज्य के हाई कोर्ट (State High Court) तक पहुंचा, लेकिन वर्ष 2013 में उन्हें वहां से भी निराशा हाथ लगी और वे यह केस भी हार गए।

इस लंबी और थकाऊ कानूनी प्रक्रिया (exhausting legal process) के दौरान ही संपत्ति के मूल मालिक (C) की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के पश्चात, उनके बच्चों, जो उनके कानूनी उत्तराधिकारी (rightful legal heirs) थे, ने अपने पिता द्वारा शुरू की गई इस न्याय की लड़ाई को जारी रखने का संकल्प लिया और मामले को आगे बढ़ाया।

और आखिरकार, दशकों के अथक संघर्ष और धैर्य की पराकाष्ठा के बाद, 24 अप्रैल 2025 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने एक ऐतिहासिक और युगांतकारी फैसला सुनाते हुए संपत्ति के मालिक के बच्चों के पक्ष में निर्णय दिया, जिससे उन्हें अपनी पैतृक संपत्ति वापस मिलने का रास्ता साफ हो गया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं?

किरायेदारों की ओर से पेश हुए वकील ने यह दलील दी कि चूंकि मूल मुकदमा मकान मालिक ने अपनी ‘वास्तविक आवश्यकता’ (bona fide need) के आधार पर दायर किया था, इसलिए उनकी मृत्यु के बाद उनके बच्चे उसी आधार पर इस केस को आगे नहीं बढ़ा सकते क्योंकि ‘आवश्यकता’ व्यक्तिगत होती है।

इस महत्वपूर्ण कानूनी तर्क के जवाब में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने विस्तृत निर्णय (Supreme Court Judgement) में यह स्पष्ट किया कि ‘वास्तविक आवश्यकता’ (bona fide requirement) की अवधारणा को एक व्यापक और उदार दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता है। अदालत ने कहा कि इसमें न केवल मकान मालिक की व्यक्तिगत जरूरतें, बल्कि उनके परिवार के अन्य सदस्यों की जरूरतें भी स्वाभाविक रूप से शामिल होती हैं।

अदालत ने आगे यह भी रेखांकित किया कि उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किरायेदारी, किराया और बेदखली का विनियमन) अधिनियम, 1972 (Uttar Pradesh Urban Buildings (Regulation of Letting, Rent and Eviction) Act, 1972) की धारा 21(7) के प्रावधानों के अनुसार, मकान मालिक की मृत्यु हो जाने की स्थिति में भी, उनके वैध कानूनी उत्तराधिकारी (valid legal successors), यानी उनके बच्चे, इस प्रकार के बेदखली के मुकदमे को जारी रख सकते हैं और उन्हें इसके लिए कानूनी अधिकार प्राप्त है।

किरायेदारों के अड़ियल रवैये पर सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई सख्ती-

सुप्रीम कोर्ट (Apex Court) ने अपनी टिप्पणी में इस बात पर गंभीर चिंता व्यक्त की कि ये किरायेदार पिछले 73 वर्षों से इस बेशकीमती कमर्शियल या रिहायशी प्रॉपर्टी (valuable commercial or residential property) में बिना किसी वैध अधिकार के रह रहे हैं, जिसमें से 63 वर्ष उन्होंने बिना किसी कानूनी अधिकार या औचित्य के, केवल मुकदमेबाजी के सहारे बिताए हैं।

अदालत ने यह भी पाया कि इतने लंबे समय (decades of litigation) के दौरान, किरायेदारों ने अपने लिए किसी भी वैकल्पिक आवास (alternative accommodation) या स्थान की व्यवस्था करने का कोई भी ठोस या ईमानदार प्रयास नहीं किया।

इससे यह बिल्कुल स्पष्ट होता है कि उनकी मंशा केवल जानबूझकर और हठपूर्वक तरीके से संपत्ति पर अपना अवैध कब्जा (deliberate illegal possession) बनाए रखने की थी, और वे कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहे थे।

इस ऐतिहासिक फैसले के बाद अब आगे क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतिम आदेश में किरायेदारों को स्पष्ट और कड़े निर्देश दिए हैं कि वे 31 दिसंबर 2025 तक संपत्ति (disputed property) को पूरी तरह से खाली कर दें और उसका शांतिपूर्ण कब्जा मूल मालिकों के उत्तराधिकारियों को सौंप दें। इसके साथ ही, अदालत ने उन्हें इतने वर्षों के अनधिकृत कब्जे के एवज में, यदि कोई हो, तो बकाया किराए (pending rent arrears) या क्षतिपूर्ति का भुगतान करने का भी निर्देश दिया है।

यह ऐतिहासिक फैसला न केवल इस विशेष मामले में न्याय सुनिश्चित करता है, बल्कि सामान्य रूप से संपत्ति मालिकों (property owners in India) और उनके वैध उत्तराधिकारियों (legal heirs and successors) के संपत्ति अधिकारों (property rights) को और अधिक मजबूती प्रदान करता है। इससे भविष्य में उन्हें अपनी संपत्ति से संबंधित विवादों में अदालतों से समय पर और प्रभावी न्याय (timely and effective justice) मिलने की उम्मीद काफी बढ़ जाएगी।

यह निर्णय किरायेदारों और मकान मालिकों के बीच उत्पन्न होने वाले जटिल संपत्ति विवादों (complex property disputes between tenants and owners) को निपटाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मिसाल (significant legal precedent) कायम करता है और भारतीय न्याय व्यवस्था (Indian judicial system) में आम आदमी के विश्वास को और सुदृढ़ करता है, विशेषकर उन मामलों में जहां कानूनी प्रक्रियाएं दशकों तक खिंच जाती हैं। यह दिखाता है कि अंततः सत्य और न्याय की ही जीत होती है, भले ही उसमें समय क्यों न लगे।

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