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Join NowMLA : महाराष्ट्र की राजनीति में उस समय हड़कंप मच गया जब शिवसेना MLA संजय गायकवाड़ (Sanjay Gaikwad), जो बुलढाणा (Buldhana) से विधायक हैं, एक विवादित वीडियो में एक कैंटीन कर्मचारी को पीटते हुए नज़र आए। यह घटना मुंबई के MLA कैंटीन में हुई, जहां विधायक कथित तौर पर परोसे गए भोजन की घटिया गुणवत्ता (Poor Quality of Food) से नाराज थे। इस वीडियो के वायरल होते ही जनता में শাসক वर्ग के इस तरह के ‘अधिकार भाव’ (Sense of Entitlement) को लेकर भारी रोष और आक्रोश (Outrage) फैल गया। हालांकि, अपने इस हिंसक कृत्य पर किसी भी तरह का पछतावा (No Regrets) जताने के बजाय, गायकवाड़ ने अपने आचरण का बचाव किया और खुद को कई खेलों का चैंपियन भी बताया।
‘शतरंज के शहंशाह’ नहीं, बल्कि ‘मार्शल आर्ट्स के धुरंधर’ हैं गायकवाड़!
विधायक संजय गायकवाड़ ने न केवल मारपीट की घटना पर खेद व्यक्त करने से इनकार कर दिया, बल्कि उन्होंने यह भी दावा किया कि वह मार्शल आर्ट्स (Martial Arts) के विभिन्न रूपों में चैंपियन हैं। उन्होंने कहा कि वे जूडो (Judo), जिम्नास्टिक (Gymnastics), कराटे (Karate), और कुश्ती (Wrestling) के चैंपियन रह चुके हैं, और यह सब एक जन प्रतिनिधि (Public Representative) होने के साथ-साथ उनका अतिरिक्त कौशल है। उनकी इस प्रतिक्रिया ने आग में घी का काम किया, क्योंकि इससे उनकी दादागिरी और पावर का एहसास होता है, जिसने लोगों में गुस्से को और बढ़ाया।
विधायक का दर्द: “मेरा हाल था खराब, शिकायतें अनसुनी!”
अपनी हरकतों का बचाव करते हुए, विधायक संजय गायकवाड़ ने एनडीटीवी (NDTV) को बताया कि वे कैंटीन में खाने के लिए गए थे जहाँ उन्हें दाल, चावल और दो चपाती परोसी गई। कुछ कौर खाते ही उन्हें उल्टी (Vomited) होने लगी और वे अस्वस्थ महसूस करने लगे। जब उन्होंने कैंटीन कर्मचारियों को भोजन सूंघने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा कि खाना खाने लायक नहीं था। विधायक ने दावा किया कि उन्होंने मैनेजर (Manager) को बुलाया और बताया कि कैंटीन के ताज़े खाने के बजाय उन्हें पिछले कई दिनों से बासी चिकन (Old Chicken Stocks) और अंडे (Old Egg Stocks) परोसे जा रहे थे, जो रोज हजारों लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे थे। जब लोग शिकायत करते हैं, तो उनकी कोई सुनवाई नहीं होती है। उन्होंने कहा कि बार-बार गुणवत्ता की जांच के बार-बार के प्रयासों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके बाद उन्हें यह कदम उठाना पड़ा। उन्होंने कहा कि यह वह “भाषा” थी जो उन्होंने “बालसाहेब ठाकरे (Balasaheb Thackeray) से सीखी है”, जो लोगों के हितों की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाने की प्रेरणा देते थे।
‘कानूनी कार्रवाई’ बनाम ‘जनता का सेवक’ – विधायक का रवैया विवादों में!
यह घटना राजनीतिक गलियारों में और आम जनता के बीच इस बात पर बहस छेड़ती है कि क्या विधायकों को इस तरह की暴力 (Violence) का सहारा लेना चाहिए, भले ही उन्हें लगे कि वे जनता की समस्याओं को उजागर कर रहे हैं। जहाँ एक ओर उनके समर्थकों का मानना है कि वे अपनी बात रखने का एक अनूठा तरीका अपना रहे थे, वहीं दूसरी ओर यह घटना सार्वजनिक स्थानों पर संयम (Restraint) और कानून का पालन करने की अपेक्षाओं पर भी सवाल उठाती है। महाराष्ट्र की राजनीति में इस तरह की घटनाएँ अक्सर सुर्खियों में रहती हैं, लेकिन इस बार जिस तरह से विधायक ने न केवल अपनी गलती मानी, बल्कि उस पर गर्व भी किया, वह निश्चित रूप से चर्चा का विषय बना हुआ है। यह घटना ‘जनता का सेवक’ होने और暴力 के बीच की रेखा को धुंधला करती है। यह समझना भी ज़रूरी है कि भारत, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में जहां कानून का शासन होता है, ऐसे सार्वजनिक व्यवहार को आमतौर पर कैसे देखा जाता है।