Join WhatsApp
Join NowCJI: क्या आप जानते हैं कि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ के सरकारी बंगला खाली करने में देरी के पीछे क्या वजहें हैं? एक विवाद के बीच, खुद न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने उन मुश्किलों का खुलासा किया है, जिनका वे सामना कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनकी दो बेटियाँ एक दुर्लभ बीमारी (rare disorder) से पीड़ित हैं, जिसके कारण उन्होंने घर में ही एक ICU का सेटअप तैयार किया है। ऐसे में, किसी नए घर में शिफ्ट होने के लिए उनकी स्वास्थ्य संबंधी विशेष जरूरतों का ख्याल रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। फिलहाल, दिल्ली के 5 कृष्णा मेनन मार्ग पर स्थित सरकारी बंगले में रह रहे पूर्व सीजेआई जल्द ही इसे खाली कर देंगे।
‘सामान पैक है, बस बेटियों की खातिर चाहिए थोड़ा वक़्त’: चंद्रचूड़ की अपील!
जस्टिस चंद्रचूड़ ने बार एंड बेंच से बातचीत में बताया कि उन्होंने अपना सारा सामान और फर्नीचर पैक कर लिया है। सिर्फ रोजाना इस्तेमाल होने वाले कुछ सामान को बाहर रखा है, जिसे वे आसानी से ट्रक में लोड करके नए आवंटित आवास तक ले जाएंगे। इस पूरी प्रक्रिया में करीब 10 दिन से लेकर अधिकतम दो हफ्ते का समय लग सकता है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि अतीत में भी कई न्यायाधीशों (judges) को बंगले में रहने के लिए समय विस्तार (time extension) दिया गया है, ऐसे में उनके मामले को भी समझा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की दखलअंदाजी: बंगले खाली कराने के लिए सरकार को चिट्ठी!
दरअसल, जस्टिस चंद्रचूड़ नवंबर 2024 में सीजेआई पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उन्हें दिल्ली में टाइप 8 बंगला रहने के लिए आवंटित किया गया था और उन्हें इसे खाली किए हुए आठ महीने बीत चुके हैं। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय को एक चिट्ठी लिखकर उन्हें आवास खाली कराने के लिए कहा है। चिट्ठी में बताया गया है कि उन्हें अस्थायी निवास के तौर पर टाइप 7 बंगला आवंटित किया गया था, लेकिन उन्होंने सुप्रीम कोर्ट प्रशासन से अनुरोध करके पुराने बंगले में 30 अप्रैल, 2025 तक रहने की अनुमति मांगी थी।
किराए पर घर की तलाश में भी आई मुश्किलें: ‘कोई मालिक कम समय के लिए तैयार नहीं’!
पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा कि उन्हें तीन मूर्ति मार्ग पर जो नया बंगला आवंटित किया गया है, उसमें अभी काम चल रहा था और ठेकेदार ने जून तक काम पूरा करने का वादा किया था। यह बंगला दो साल से खाली पड़ा था क्योंकि कोई भी जज इसे रहने के लिए स्वीकार नहीं कर रहा था, इसलिए उसमें काफी नवीनीकरण की आवश्यकता थी। जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी साझा किया कि उन्होंने तीन महीने के लिए किराए पर घर लेने का भी विचार किया, लेकिन कोई भी घर का मालिक इतने कम समय के लिए घर देने को तैयार नहीं था। यह बताता है कि कैसे एक शीर्ष न्यायाधीश को भी सामान्य आवास की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
** बेटियों का दुर्लभ रोग ‘नेमालाइन मायोपैथी’: ICU की व्यवस्था, गरिमा और निजता की गुहार!**
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी बेटियों की स्वास्थ्य स्थिति का उल्लेख करते हुए बताया कि वे अब छोटी बच्ची नहीं, बल्कि 16 और 14 साल की हैं। उनकी अपनी गरिमा, निजता और खास जरूरतें हैं। उन्होंने कहा कि छोटी-छोटी चीजें भी मायने रखती हैं, जैसे बाथरूम के दरवाजे का साइज इतना बड़ा हो कि उनकी व्हीलचेयर आसानी से अंदर जा सके। जस्टिस चंद्रचूड़ की दो गोद ली हुई बेटियां, प्रियंका और माही, दोनों नेमालाइन मायोपैथी (Nemaline Myopathy) नामक दुर्लभ विकार से पीड़ित हैं। जब वे शिमला में थे तब उनकी एक बेटी की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी, जिसे सांस लेने में दिक्कत होने लगी और उसे चंडीगढ़ के ICU में 44 दिन तक भर्ती रहना पड़ा। उन्होंने यह भी बताया कि उनकी बेटी अभी भी ट्रेकियोस्टॉमी ट्यूब (tracheostomy tube) पर है, जिसकी देखभाल और समय-समय पर बदलने की जरूरत होती है।
तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना और मौजूदा सीजेआई बी. आर. गवई से भी की थी गुजारिश!
जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी बताया कि उन्होंने कुछ घर किराए के लिए शॉर्टलिस्ट किए थे, लेकिन किसी एक को फाइनल करने के लिए उन्हें दो महीने और चाहिए थे। इसी कारण उन्होंने तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना से 28 अप्रैल तक उसी बंगले में रहने का अनुरोध किया था। जस्टिस खन्ना ने तब कहा था कि वे खुद कृष्णा मेनन मार्ग वाले बंगले में शिफ्ट नहीं हो रहे हैं, इसलिए चंद्रचूड़ वहां रह सकते हैं। जब जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई (Justice Bhushan Ramakrishna Gavai) सीजेआई बने, तो उन्होंने उनसे भी कुछ समय और रहने की मोहलत मांगी और कहा कि यदि यह संभव न हो तो वे नियमों के अनुसार मार्केट रेट पर बंगले का किराया देने के लिए भी तैयार हैं।
‘घर में ICU सेटअप है’: देरी का असली कारण और सरकारी नियमों का संतुलन!
जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि उनका बंगला खाली करने में देरी का कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा नहीं था। उन्होंने बताया कि उनके घर में एक छोटा ICU सेटअप है, जो उनकी बेटियों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करता है। उन्होंने शिमला के उस भयावह अनुभव को भी साझा किया जब उनकी बेटी की अचानक बिगड़ी तबीयत और उसे चंडीगढ़ के ICU में रखना पड़ा। यह सब बातें उनकी परिवार के प्रति जिम्मेदारी और स्वास्थ्य की नाजुक स्थिति को उजागर करती हैं, जो सरकारी आवास खाली करने के नियमों के बीच एक मानवीय दृष्टिकोण की मांग करती हैं।
यह पूरा मामला न्यायिक सेवा में कार्यरत उच्च अधिकारियों के व्यक्तिगत जीवन की चुनौतियों को भी सामने लाता है, जहाँ व्यक्तिगत स्वास्थ्य, पारिवारिक जिम्मेदारी और सरकारी नियम के बीच संतुलन बिठाना एक मुश्किल काम हो सकता है।