Indian National Anthem: टैगोर ने लिखा, पर पहली बार किसने गाया था? नाम जानकर चौंक जाएंगे आप

Published On: August 15, 2025
Follow Us
Indian National Anthem: टैगोर ने लिखा, पर पहली बार किसने गाया था? नाम जानकर चौंक जाएंगे आप

Join WhatsApp

Join Now

Indian National Anthem: आज पूरा भारत 79वें स्वतंत्रता दिवस के जश्न में डूबा है. हर गली, हर चौराहे पर तिरंगा शान से लहरा रहा है और हवाओं में देशभक्ति के तराने गूंज रहे हैं. 15 अगस्त 2025 का यह दिन हमें उन अनगिनत कुर्बानियों की याद दिलाता है जिनके बाद हमें आज़ादी की यह सुबह नसीब हुई. कुछ ही पलों में, जब तिरंगा फहराया जाएगा, तो करोड़ों कंठ एक साथ मिलकर राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ गाएंगे. बचपन से हम इसे गाते आए हैं, हर बार इसे गाते हुए हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं और दिल गर्व से भर जाता है.

हम सब जानते हैं कि राष्ट्रगान को हमेशा सावधान मुद्रा में खड़े होकर गाना चाहिए और इसे विश्वकवि रबीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा था. लेकिन क्या आपके मन में कभी यह सवाल आया है कि जिस गीत को आज करोड़ों भारतीय अपनी पहचान मानते हैं, उसे पहली बार किसने, कब और कहाँ अपनी आवाज़ दी थी? इसका जवाब आपको हैरान कर देगा, क्योंकि यह कहानी सिर्फ़ एक गीत की नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की कहानी है.

पहली बार कब और कहाँ गूंजा ‘जन-गण-मन’?

आज जो ‘जन-गण-मन’ हमारी रगों में दौड़ता है, उसे संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को आधिकारिक तौर पर भारत के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया था. लेकिन इसकी पहली गूंज इससे दशकों पहले सुनाई दे चुकी थी.

इतिहास के पन्नों को पलटें तो तारीख थी 27 दिसंबर 1911. जगह थी कलकत्ता (अब कोलकाता) और मौका था भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन. यह वह ऐतिहासिक दिन था जब ‘जन-गण-मन’ पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया गया था. उस समय किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बंगाली में लिखा गया यह गीत एक दिन स्वतंत्र भारत की आवाज़ बन जाएगा.

READ ALSO  Allahabad University Jobs 2025: इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बंपर भर्ती! प्रोफेसर, एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफेसर बनने का सुनहरा मौका, ऐसे करें अप्लाई

किसने दी थी पहली बार अपनी आवाज़? रहस्य से पर्दा उठाइए!

यह सबसे दिलचस्प सवाल है. अधिकांश लोग सोचते हैं कि इसे स्वयं रबीन्द्रनाथ टैगोर ने गाया होगा. लेकिन यह सच नहीं है. जिस शख्सियत ने पहली बार इस पवित्र गान को अपनी आवाज़ दी, वह एक महिला थीं, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो सा गया है – सरला देवी चौधरानी.

यह नाम सुनकर आप चौंक गए होंगे. सरला देवी कोई और नहीं, बल्कि स्वयं गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर की भांजी (बहन की बेटी) थीं. वह सिर्फ़ टैगोर की रिश्तेदार ही नहीं, बल्कि अपने आप में एक विलक्षण प्रतिभा थीं – एक स्वतंत्रता सेनानी, एक संगीतज्ञ, और उस दौर की सबसे पढ़ी-लिखी और प्रगतिशील महिलाओं में से एक. उन्होंने कुछ छात्रों के साथ मिलकर इस गीत को सुरों में पिरोया और कांग्रेस के मंच से इसे अमर कर दिया.

एक भजन से राष्ट्रगान बनने तक का अद्भुत सफ़र

  • मूल रचना: गुरुदेव टैगोर ने ‘भारत भाग्य विधाता’ शीर्षक से एक पाँच पदों का बंगाली भजन लिखा था. हमारा राष्ट्रगान उसी भजन का पहला पद है.
  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस और INA का राष्ट्रगान: राष्ट्रगान का इतिहास नेताजी सुभाष चंद्र बोस के ज़िक्र के बिना अधूरा है. नेताजी ने अपने मित्र आबिद अली को इस गीत का उर्दू-हिंदी में रूपांतरण करने के लिए कहा. इसके बाद जो संस्करण “शुभ सुख चैन की बरखा बरसे” के रूप में सामने आया, वह आज़ाद हिंद फ़ौज (INA) का क़ौमी तराना बना.
  • आज़ादी की रात: जब भारत 14-15 अगस्त 1947 की आधी रात को आज़ाद हुआ, तो संविधान सभा के उस ऐतिहासिक सत्र का समापन भी ‘जन-गण-मन’ के साथ ही हुआ था.
  • अंतर्राष्ट्रीय मान्यता: आज़ादी के तुरंत बाद, न्यूयॉर्क में हुई संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रगान की एक रिकॉर्डिंग भी सुनाई, जिसे पूरी दुनिया ने सम्मान दिया.
READ ALSO  UP New Scheme For Women: यूपी में 'रेशम सखी' क्रांति! 50,000 ग्रामीण महिलाएं बनेंगी आत्मनिर्भर, घर बैठे रेशम कीट पालन से होगी बंपर कमाई

राष्ट्रगान से जुड़े नियम, जिन्हें हर भारतीय को जानना चाहिए

यह सिर्फ़ एक गीत नहीं, बल्कि देश का सम्मान है. इसलिए इसके कुछ नियम हैं:

  1. समय सीमा: इसे गाने की अवधि लगभग 52 सेकंड होनी चाहिए.
  2. सही उच्चारण: राष्ट्रगान के हर शब्द का उच्चारण बिल्कुल स्पष्ट और सही होना चाहिए.
  3. सावधान मुद्रा: जब भी राष्ट्रगान गाया या बजाया जाए, सभी को सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाना चाहिए.
  4. शांत वातावरण: राष्ट्रगान के समय आसपास पूर्ण शांति होनी चाहिए, किसी भी प्रकार का शोर-शराबा देश के सम्मान का अपमान है.

‘जन-गण-मन’ महज़ शब्दों का संग्रह नहीं, यह भारत की अनेकता में एकता का प्रतीक है. यह पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा से लेकर द्रविड़, उत्कल और बंग तक, पूरे भारत को एक ही धागे में पिरोता है. अगली बार जब आप इसे गाएं, तो सरला देवी चौधरानी को ज़रूर याद कीजिएगा, जिनकी आवाज़ ने इस गीत को पहली बार अमर बनाया था.

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now