डेस्क। इलेक्टोरल बॉन्ड: स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने बीते दिन सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से बोलै है कि राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए ख़रीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को देने के लिए 30 जून तक का समय दिया गया है.
एसबीआई ने इस प्रक्रिया को ‘काफ़ी समय दे लेने’ वाला काम बताते हुए समय की मांग करी है. 30 जून तक देश में लोकसभा चुनाव पूरे होने भी तय हैं.
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बीते कुछ महीनो से सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द कर दिया था और स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया जो इलेक्टोरल बॉन्ड बेचने वाला अकेला अधिकृत बैंक है, उसे निर्देश दिया गया था कि वह छह मार्च 2024 तक 12 अप्रैल, 2019 से लेकर के अब तक ख़रीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को सौंपे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन करता है.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने बोला था कि राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद के बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा दिया जा सके है.
चुनाव आयोग को ये जानकारी 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर जारी करनी थी.
बता दें इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है.
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यह एक वचन पत्र की तरह है, जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से आराम से ख़रीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीक़े से दान दे सकता है.
मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में करी थी. इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को क़ानूनन लागू भी कर दिया था.
SC नें एसबीआई ने क्या बोला?
सोमवार को एसबीआई ने इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका भी दायर करी है.
एसबीआई ने कहा कि वह अदालत के निर्देशों का “पूरी तरह से पालन करना चाहता है पर , डेटा को डिकोड करना और इसके लिए तय की गई समय सीमा के साथ कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां आ रही हैं… इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदने वालों की पहचान छुपाने के लिए कड़े उपायों का पालन भी किया गया है. अब इसके डोनर और उन्होंने कितने का इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदा है, इस जानकारी का मिलान कर पाना काफी कठिन हो गिया है.”
बैंक ने ये भी बोला है कि दो जनवरी, 2018 को इसे लेकर “अधिसूचना जारी की गई थी.” यह अधिसूचना केंद्र सरकार की ओर से साल 2018 में तैयार की गई इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना पर आधारित थी.
इसके क्लॉज़ 7 (4) में यह स्पष्ट रूप से बोला गया था कि अधिकृत बैंक हर सूरत में इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदार की जानकारी को गोपनीय बनाए रखे.
अगर कोई अदालत इसकी जानकारी की मांग करती है या जांच एजेंसियां किसी आपराधिक मामले में इस जानकारी को मांगती है, तभी ख़रीदार की पहचान को साझा किया जा सकता है.
बैंक ने अपनी याचिका में कहा है, ”इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदारों की पहचान को गोपनीय रखने के लिए बैंक ने बॉन्ड कि बिक्री और इसे भुनाने के लिए एक विस्तृत प्रकिया तैयार की है जो बैंक की देशभर में फैली 29 अधिकृत शाखाओं में फॉलो भी करी जाती है.”