डेस्क। Arba’een Pilgrimage: दुनियाभर के मुस्लिमों के बीच अरबाईन तीर्थयात्रा काफी अहमियत रखने वाली यात्राओं में शुमार है। इस तीर्थयात्रा को दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक जमावड़ा भी बोला जाता है। हर साल अरबाईन तीर्थयात्रा में हज यात्रा से भी ज्यादा मुसलमान इसमें हिस्सा लेते हैं।
आंकड़ों के अनुसार, साल 2017 में अरबाईन तीर्थयात्रा या कर्बला वॉक या कर्बला तीर्थयात्रा में 2.5 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया था और ये तीर्थयात्रा आशूरा के बाद 40 दिनों की शोक की अवधि के आखिर में इराक के कर्बला में आयोजित भी किया जाता है। ये तीर्थयात्रा 61 हिजरी यानी साल 680 में पैगंबर मुहम्मद के पोते और तीसरे शिया मुस्लिम इमाम हुसैन इब्न अली की शहादत की याद में करी जाती है।
यह माना जाता है कि हुसैन इब्न अली सभी सांस्कृतिक सीमाओं से परे हैं और उन्हें हर तरह की आजादी, करुणा और सामाजिक न्याय का प्रतीक भी माना जाता है। तीर्थयात्री अरबाईन या शहादत के 40वें दिन की आशा करते हुए पैदल कर्बला की ओर चल पड़ते हैं, जहां हुसैन और उनके साथियों को उन्हीं लोगों ने धोखा दे दिया था, जिन्होंने उन्हें इराक के कुफा में आमंत्रित किया था और बाद में कर्बला की लड़ाई में उबैद अल्लाह इब्न जियाद की सेना ने सिर काटकर हुसैन को शहीद दे दी थी।
पैदल यात्रियों को मिलती हैं खास सुविधाएं
कर्बला की पैदल यात्रा के रास्तों पर स्वयंसेवक तीर्थयात्रियों के लिए भोजन, आवास समेत कई दूसरी सेवाएं मुफ्त उपलब्ध भी कराते हैं। कुछ तीर्थयात्री करीब 500 किलोमीटर दूर इराक के बसरा या करीब 2,600 किलोमीटर दूर ईरान के मशहद और दूसरे शहरों से सड़क के रास्ते यात्रा पूरी भी करते हैं। इस पैदल यात्रा को शिया विश्वास और एकजुटता का प्रदर्शन माना जाता है वहीं जाबिर इब्न अब्द अल्लाह, अतियाह इब्न साद के साथ 61 हिजरी की अरबाईन में हुसैन इब्न अली के पहले तीर्थयात्री भी थे।
प्रतिबंध के बाद फिर शुरू हुई तीर्थयात्रा
मुर्तजा अंसारी के बाद काफी समय के लिए पैदल तीर्थयात्रा की प्रथा को भुला दिया गया था और इसे ईद अल-अधा में मिर्जा हुसैन नूरी तबरसी ने फिर से शुरू किया। उन्होंने हर साल इस तीर्थयात्रा को पूरा किया और आखिरी बार 1319 हिजरी में उन्होंने कर्बला की पैदल यात्रा की थी।
सद्दाम के समय में इस तीर्थयात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था पर फिर भी कुछ विद्वानों और मार्जा ने अरबाईन को जारी रखा। हालांकि इस दौरान बहुत कम संख्या में लोग इसे गुप्त रूप से करते थे और सद्दाम के 2003 में तख्तापलट के बाद इसे फिर शुरू किया गया।
तीर्थयात्रियों को मिलती हैं ये मुफ्त सुविधाएं
अरबाईन वॉक में नजफ या बसरा से कर्बला तक की लंबी पैदल यात्रा की जाती है और हर साल मार्च में शुरू होने वाली इस यात्रा में करोड़ों लोग क्षेत्र, जाति और संप्रदाय को भूलकर हिस्सा लेते हैं। इस यात्रा में बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल होते हैं वहीं पैदल यात्रा के दौरान तीर्थयात्रियों के लिए भोजन की आपूर्ति, छोटे क्लीनिक और कि दंत चिकित्सक भी उपलब्ध होते हैं।
ये सभी सुविधाएं मुफ्त में मिलती है। कर्बला की सड़कों के किनारे तंबू लगाकर आवास, भोजन, पानी और चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं वहीं तीर्थयात्री अलग-अलग रंग के झंडे लेकर चलते हैं। इनमें इमाम हुसैन के शोक का काला झंडा सबसे आम होते है।
सुन्नी कट्टरपंथी पर आरोप लगाया जाता रहा है कि वे कर्बला की यात्रा के दौरान पैदल तीर्थयात्रियों पर कार बम या रॉकेट से नियमित हमले करते हैं। ऐसे में बख्तरबंद वाहनों और सैन्य हेलीकॉप्टरों के जरिये हजारों इराकी पुलिस कर्मी व सैनिक तीर्थयात्रियों को कड़ी सुरक्षा मुहैया भी कराते हैं। ईरानी सलाहकार एक संयुक्त संचालन कक्ष के जरिये आने वाले लोगों की सुरक्षा में भी मदद करते हैं और इराक के बगदाद में हुसैनिया में 20 नवंबर 2015 को एक बड़े बम धमाके की साजिश को इराकी पुलिस ने नाकाम कर दिया था। बता दें जहां सुरक्षा बलों ने 18 गुड़िया जब्त की थीं वहीं साजिश के तहत अरबाईन वॉक के दौरान बमों से भरी इन गुड़ियों को कर्बला की ओर जाने वाली सड़कों पर बिखेरना भी था।