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Ambedkar के खिलाफ अनशन पर बैठ गए थे गांधी 

 

 

डेस्क। Ambedkar jyanti Special: महात्मा गांधी और डॉ. अंबेडकर का भारत की विकास यात्रा में एक अहम योगदान है, हालांकि कई बार ऐसा हुआ जब डॉ. अंबेडकर और गांधी जी के विचारों में भिन्नता देखी गई है, एक बार तो मामला इतना बिगड़ गया था कि महात्मा गांधी ने डॉ. अंबेडकर के खिलाफ पुणे की येरवडा जेल में अनशन शुरू कर दी थी। इस अनशन की समाप्ति पूना संधि के साथ में हुई थी।

मोहन दास करमचंद गांधी और डॉ भीमराव अंबेडकर. दोनों ही एक महान व्यक्तित्व के तौर पर जाने जाते थे। मौजूदा भारत की विकास यात्रा में दोनों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता और देश की आजादी और उसके बाद के दिनों में दोनों की अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएं रही थीं। अंबेडकर ने जहां भारत का संविधान लिखा तो गांधी के अहिंसक आंदोलनों के आगे अंग्रेजी सरकार और अफसर भी पनाह मांगते थे।

 गांधी ने एक, नहीं अनेक बार अपने शांतिपूर्ण आंदोलनों से अंग्रेज सरकार को झुकने पर विवश किया था लेकिन क्या आपको पता है कि गांधी जी की कई मुद्दों पर डॉ. अंबेडकर से असहमति थी? एक बार तो उन्होंने डॉ अंबेडकर के खिलाफ पुणे की यरवडा जेल में आमरण अनशन भी शुरू कर दी थी। उसके प्रतिफल के रूप में निकल कर आया पूना संधि, जिसकी छाया आज भी किसी न किसी रूप में देखने के लिए मिलती है।

अगर यह संधि नहीं हुई होती तो देश का मौजूदा स्वरूप भी नहीं देखने को मिलता। शायद हालत खराब हो गए होते या कुछ अच्छा भी देखने को मिल सकता था वहीं महात्मा गांधी को आशंका थी कि इससे देश में आपसी वैमनस्यता बढ़ेगी। समाज के लोग खुद को अलग-अलग महसूस करेंगे और उन्हें यह भी आशंका थी कि अगर डॉ अंबेडकर की मांग पर बनाई गई अंग्रेजों की व्यवस्था को नहीं बदला गया तो भारत आजाद भले हो जाए वहीं कोई और तरीके का संघर्ष देश के अंदर देखने को मिल सकता है। बस इन्हीं आशंकाओं को लेकर गांधी के मन में विरोध के सुर उठ गए।

इसका इतिहास कुछ यूं है कि साल 1930 से 1932 के बीच लंदन में तीन गोलमेज सम्मेलन हुए। वहीं इन तीनों में ही भारत के एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में डॉ भीमराव अंबेडकर शामिल हुए। साथ ही दूसरे सम्मलेन के दौरान विचार-विमर्श के दौरान डॉ अंबेडकर के सुझावों पर अमल करते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री रेम्मजे मैक्डॉनल्ड सांप्रदायिक पुरस्कार की घोषणा कर दी। वहीं इस फैसले के बाद दलितों सहित 11 समुदायों के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र मिलना था। पर इसमें दलित वर्ग को दो वोट देने का अधिकार था. पहले वोट से उन्हें अपना प्रतिनिधि चुनना था तथा दूसरे से सामान्य प्रतिनिधि चुनना था। इस तरह तय हुआ कि दलितों का चुनाव केवल दलित वोटों से ही होगा।

गांधी जी हुए थे आहत

इस फैसले की जानकारी होते ही गांधी जी बहुत आहत हुए और वे उस समय पुणे की यरवडा जेल में निरुद्ध थे। उन्होंने ब्रिटिश पीएम को इस फैसले को बदलने को पत्र लिखा लेकिन उस पर कोई सुगबुगाहट न होते देख उन्होंने जेल में ही 20 सितंबर 1932 को आमरण अनशन भी शुरू कर दी थी। जैसे ही यह सूचना आम हुई अंग्रेज अफसरों समेत आजादी के दीवानों में भी काफी बेचैनी हो गई। सब गांधी की कुशलता को लेकर चिंतित थे. उस जमाने में वे तमाम असहमतियों के बावजूद आजादी आंदोलन के अगुवा थे।

कई लोगों ने डॉ अंबेडकर से इस मसले पर बात की और वे मानने को तैयार नहीं थे. फिर मशहूर वकील तेज बहादुर सप्रू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद और मदन मोहन मालवीय सक्रिय हुए और लगातार चार दिन के अनशन के बाद डॉ अम्बेडकर कुछ शर्तों के साथ माने और 24 सितंबर 1932 को पूना संधि के रूप में दलित समुदाय के लिए एक नई व्यवस्था ने जन्म ले लिया।

 जिसमें ब्रिटिश सरकार की ओर से घोषित व्यवस्था को बदलते हुए नई व्यवस्था को लागू करने पर सहमति बनी। इस समझौते पर डॉ अंबेडकर और मदन मोहन मालवीय ने दस्तखत किए. तय हुआ कि संयुक्त निर्वाचन व्यवस्था में ही दलितों के लिए स्थान आरक्षित किया जाएगा वहीं कहा यह भी जाता है कि इस समझौते को अंग्रेज सरकार की मंजूरी भी देनी चाहिए थी, जो दो दिन बाद मिली और फिर गांधी जी ने अपना आमरण अनशन समाप्त कर दिया था।

सफल रहा ये आंदोलन

इस तरह अंग्रेजों की बनाई एक व्यवस्था वापस हुई और गांधी का आंदोलन सफल हुआ। इसका दलित समुदाय को लाभ भी मिला। पहले उनके पास 71 आरक्षित सीटें थीं, पूना संधि के बाद इनकी संख्या 148 कर दी गई थी। दलितों की शिक्षा के लिए अनुदान की व्यवस्था की गई और सरकारी नौकरियों में बिना किसी भेदभाव दलित वर्ग की भर्ती पर सहमति बनी। समझौते पर दस्तखत करने के बावजूद डॉ अंबेडकर इससे पूरी तरह सहमत नहीं थे और उन्होंने इसे दलित समुदाय को राजनीतिक अधिकारों से वंचित करने और उन्हें उनकी अपनी ही मांग से पीछे हटने को रचा गया गांधी का नाटक बोला। साल 1942 में डॉ अंबेडकर ने इस समझौते को मानने से साफ इनकार कर दिया और उन्होंने पूना समझौते को लेकर अपनी किताब स्टेट ऑफ मायनारिटी में खुलकर लिखा भी है।

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