Supreme Court: पति का खर्च का हिसाब मांगना ‘क्रूरता’ या अनुशासन?

Published On: December 20, 2025
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Supreme Court: पति का खर्च का हिसाब मांगना 'क्रूरता' या अनुशासन?

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Supreme Court: आज के आधुनिक दौर में पति-पत्नी के रिश्तों में कड़वाहट का सबसे बड़ा कारण पैसा और व्यवहार बनते जा रहे हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि अगर पति अपनी पत्नी से रोजमर्रा के खर्चों का हिसाब मांगता है या उन्हें रिकॉर्ड रखने के लिए कहता है, तो क्या यह अपराध की श्रेणी में आता है? हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने इसी मुद्दे पर एक बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील फैसला सुनाया है, जो देशभर में वैवाहिक विवादों (Matrimonial Disputes) की दिशा बदल सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यदि कोई पति अपनी पत्नी से घर के खर्च का हिसाब एक्सेल शीट (Excel Sheet) में रखने के लिए कहता है, तो इसे ‘क्रूरता’ (Cruelty) की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इस ऐतिहासिक फैसले के साथ ही अदालत ने पत्नी द्वारा पति के खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी (FIR) को भी रद्द कर दिया है।

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जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस महादेवन की बेंच ने क्या कहा?

इस मामले की सुनवाई जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की दो जजों वाली बेंच कर रही थी। अदालत ने टिप्पणी की कि वैवाहिक मामलों में अदालतों को अत्यंत सावधानी बरतने की आवश्यकता है। जजों ने कहा, “यह भारतीय समाज की एक झलक हो सकती है, जहां अक्सर घर के पुरुष वित्तीय नियंत्रण अपने हाथों में रखना चाहते हैं। भले ही यह व्यवहार महिलाओं को असहज लग सकता है, लेकिन इसे आईपीसी (IPC) की धारा के तहत आपराधिक क्रूरता नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने साफ किया कि वैवाहिक जीवन में रोजमर्रा के छोटे-मोटे झगड़े, मतभेद या व्यवहारिक खामियों को कानूनी केस का आधार बनाना कानून का दुरुपयोग है।

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क्या थे पत्नी के आरोप?

इस मामले में पत्नी ने अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ गंभीर शिकायत दर्ज कराई थी। आरोपों की लिस्ट काफी लंबी थी:

  1. पति घर के हर पैसे का हिसाब एक्सेल शीट में मांगता था।

  2. पति अपने माता-पिता को अपनी कमाई से पैसे भेजता था।

  3. बच्चे के जन्म के बाद शारीरिक परिवर्तन (वजन) को लेकर ताने मारता था।

  4. गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त ध्यान न देने का आरोप।

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सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी आरोपों को गहराई से सुना और एक महत्वपूर्ण कानूनी स्पष्टीकरण दिया। अदालत ने कहा कि अगर इन आरोपों को सच मान भी लिया जाए, तो ये किसी व्यक्ति के ‘बुरे व्यवहार’ या ‘चरित्र’ को तो दर्शा सकते हैं, लेकिन ये किसी भी हाल में मानसिक या शारीरिक ‘क्रूरता’ (Sec 498A) की कानूनी परिभाषा में फिट नहीं बैठते।

अदालत ने जोर देकर कहा कि पति का अपने माता-पिता को पैसे भेजना किसी भी नजरिए से गलत या आपराधिक नहीं है। समाज का आईना दिखाते हुए कोर्ट ने माना कि रिश्तों में नियंत्रण और संवाद की कमी हो सकती है, लेकिन अदालतों को “सबक सिखाने” या “बदले की भावना” के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

FIR रद्द करते हुए दी गई बड़ी सीख

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, पत्नी के आरोप बहुत सामान्य और अस्पष्ट (Vague and Omniscient) थे। शिकायत में किसी भी ऐसी ठोस घटना का जिक्र नहीं था जिसे गंभीर उत्पीड़न या यातना कहा जा सके। पति के वकील प्रभाजीत जौहर की दलीलों को स्वीकार करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि FIR को पढ़ने से ही पता चलता है कि यह केवल केस थोपने जैसा मामला है।

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वैवाहिक रिश्तों में कानून का प्रवेश तभी होना चाहिए जब वहां वाकई कोई बड़ा शारीरिक या मानसिक अपराध हो रहा हो। रोजमर्रा के घर खर्च का ब्यौरा मांगना क्रूरता नहीं, बल्कि वित्तीय अनुशासन का हिस्सा भी हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन लोगों के लिए एक बड़ी राहत है जो छोटी-मोटी पारिवारिक बहसों के कारण अदालती कानूनी मुकदमों में फंस जाते हैं। यह आदेश न केवल ‘एक्सेल शीट’ के विवाद पर विराम लगाता है, बल्कि रिश्तों में पारदर्शिता और कानून के संतुलित उपयोग की वकालत भी करता है।

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