Shashi Tharoor : शशि थरूर ने फिर छेड़ी बहस, क्या अब बदलेंगे बेडरूम के कानून?

Published On: December 12, 2025
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Shashi Tharoor : क्या शादी का मतलब पति को पत्नी के शरीर पर असीमित अधिकार मिल जाना है? क्या ‘पत्नी’ बन जाने के बाद एक महिला ‘ना’ कहने का हक खो देती है? यह सवाल हम नहीं, बल्कि कांग्रेस सांसद और देश के जाने-माने बुद्धिजीवी शशि थरूर (Shashi Tharoor) पूछ रहे हैं।

शशि थरूर ने एक बार फिर ‘मैरिटल रेप’ (Marital Rape) यानी वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर एक गंभीर बहस छेड़ दी है। उनका कहना है कि “शादी के बाद जबरदस्ती संबंध बनाना प्यार नहीं, बल्कि शुद्ध हिंसा है।” आइए इस मुद्दे की गहराई में जाते हैं और समझते हैं कि भारत में इसे लेकर इतना हंगामा क्यों बरपा है।

“आखिर पतियों को यह छूट क्यों?” : थरूर का तीखा सवाल

हाल ही में कोलकाता में एक कार्यक्रम के दौरान शशि थरूर ने भारत की कानूनी व्यवस्था पर उंगली उठाई। उन्होंने हैरानी जताई कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में आज भी पत्नी की मर्जी के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाने को गंभीरता से नहीं लिया जाता।

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थरूर ने कहा, “मुझे इस बात पर हैरानी होती है कि हम उन कुछ देशों में शामिल हैं, जहां पति द्वारा पत्नी की इच्छा के विरुद्ध रेप करने को अपराध नहीं माना जाता। अगर कोई पुरुष किसी अनजान महिला के साथ जबरदस्ती करे तो वह रेपिस्ट है, लेकिन वही काम अगर वह अपनी पत्नी के साथ करे तो उसे ‘पति का अधिकार’ मान लिया जाता है? आखिर उन्हें (पतियों को) क्यों छोड़ दिया जाना चाहिए?”

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उनके बयान ने सोशल मीडिया से लेकर संसद के गलियारों तक हलचल मचा दी है। उन्होंने साफ कहा कि, “यह वैवाहिक प्रेम का हिस्सा नहीं, यह एक हिंसा है, यह कानून का उल्लंघन है।” तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उन्होंने महिला मंत्रियों की चुप्पी पर भी दुख जताया, जो शक्तिशाली पदों पर होने के बावजूद इस मुद्दे पर चुप हैं।

मैरिटल रेप (Marital Rape) आखिर है क्या?

सरल भाषा में कहें तो, मैरिटल रेप का मतलब है—शादीशुदा जोड़े में पति द्वारा पत्नी की सहमति के बिना उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना या यौन हिंसा करना।

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चौंकने वाली बात यह है कि दुनिया के करीब 77 देशों में पति द्वारा ऐसा करना एक दंडनीय अपराध है और इसके लिए उसे जेल हो सकती है। लेकिन भारत समेत 34 ऐसे देश हैं, जहां पतियों को ‘इम्युनिटी’ (प्रतिरक्षा) मिली हुई है। यानी भारत में अगर पति अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती करता है, तो इसे कानूनी तौर पर ‘रेप’ नहीं माना जाता।

भारत में कानून की डरावनी स्थिति (Legal Status in India)

क्या आप जानते हैं कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) और पुराने कानूनों के तहत भी एक पति को मैरिटल रेप के मामले में विशेष छूट प्राप्त है?
कानूनी स्थिति को ऐसे समझें:

  1. साथ रह रहे पति-पत्नी: अगर आप साथ रह रहे हैं, तो पत्नी की मर्जी के बिना संबंध बनाने पर पति पर ‘रेप’ का केस दर्ज नहीं हो सकता।

  2. अलग रह रहे पति-पत्नी: अगर कानूनी रूप से अलग (Separated) रह रहे हैं और तब पति जबरदस्ती करता है, तो उसे आरोपी माना जा सकता है।

  3. उम्र सीमा: हाल ही में एक बदलाव यह हुआ है कि पत्नी की सहमति की उम्र सीमा 15 से बढ़ाकर 18 कर दी गई है। यानी 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ संबंध बनाना अपराध है।

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हालांकि, पीड़ित महिलाएं घरेलू हिंसा कानून, 2005 (Domestic Violence Act) का सहारा ले सकती हैं। वे यौन उत्पीड़न और गरिमा के हनन का आरोप लगा सकती हैं, लेकिन यह आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।

सरकार और समाज का डर क्या है? (Arguments Against Criminalizing)

अब सवाल उठता है कि जब दुनिया बदल रही है, तो भारत क्यों पीछे है? इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि भारत में विवाह एक पवित्र संस्कार है।

कई लोग और यहां तक कि कोर्ट में दी गई कुछ दलीलों में यह कहा गया है कि:

  • अगर इसे अपराध बना दिया गया तो ‘विवाह’ नामक संस्था अस्थिर हो सकती है।

  • पत्नियां पतियों से बदला लेने या तलाक में मोटी रकम वसूलने के लिए इसका दुरुपयोग कर सकती हैं।

  • बेडरूम के अंदर ‘सहमति’ (Consent) को साबित करना बहुत मुश्किल है।

  • एक मामले में सरकार ने तर्क दिया था कि पति को अपनी पत्नी की मर्जी का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, लेकिन इसे सीधे तौर पर ‘रेप’ कहना भारतीय सामाजिक परिवेश में बहुत कठोर शब्द होगा।

बदलाव की जरूरत या परंपरा की रक्षा?

शशि थरूर ने स्पष्ट कहा है कि, “हमें महिलाओं के अधिकारों के लिए खड़ा होना होगा, जिसे कई तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है। हमें बोलना पड़ेगा।”
यह बहस अब दो हिस्सों में बंट गई है। एक तरफ वो लोग हैं जो मानते हैं कि पत्नी की ‘बॉडी’ पर उसका ही हक है, चाहे वो शादीशुदा हो या नहीं। दूसरी तरफ वो लोग हैं जो मानते हैं कि इससे झूठे मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी और भारतीय परिवार टूट जाएंगे। फैसला चाहे जो भी हो, लेकिन शशि थरूर के बयान ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम 21वीं सदी में भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने से डर रहे हैं?

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