Join WhatsApp
Join NowChhath Puja 2025: लोक आस्था, प्रकृति की उपासना और सूर्य आराधना का महापर्व छठ, 25 अक्टूबर से नहाय-खाय के साथ शुरू हो चुका है। आज इस चार दिवसीय कठिन व्रत का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण दिन है, जिसे ‘संध्या अर्घ्य’ कहा जाता है। आज शाम देशभर में लाखों व्रती महिलाएं और पुरुष डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर अपने परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की दीर्घायु और आरोग्यता की कामना करेंगे।
यह त्योहार मुख्य रूप से छठी मैय्या और उनके भाई सूर्यदेव को समर्पित है। लेकिन एक सवाल हमेशा लोगों के मन में उठता है कि जहाँ हर धर्म और संस्कृति में उगते हुए सूर्य की पूजा होती है, वहीं छठ एकमात्र ऐसा पर्व क्यों है जिसमें अस्त होते यानी डूबते हुए सूर्य को भी पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा जाता है? इसके पीछे सिर्फ पौराणिक ही नहीं, बल्कि गहरे दार्शनिक और वैज्ञानिक रहस्य भी छिपे हैं।
क्यों दिया जाता है डूबते सूर्य को अर्घ्य? जानिए इसका गहरा महत्व
छठ महापर्व में डूबते सूर्य को अर्घ्य देना सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन के एक पूरे चक्र को सम्मान देने का प्रतीक है। इसके पीछे कई मान्यताएं और गहरे अर्थ हैं:
-
कृतज्ञता और आभार का प्रतीक: डूबता हुआ सूर्य यह संदेश देता है कि जिसका उदय हुआ है, उसका अस्त होना भी निश्चित है। संध्या अर्घ्य के माध्यम से व्रती सूर्य देव को पूरे दिन पृथ्वी को अपनी ऊर्जा और प्रकाश देने के लिए धन्यवाद और कृतज्ञता अर्पित करते हैं। यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व है।
-
जीवन के उतार-चढ़ाव की स्वीकृति: यह अर्घ्य हमें सिखाता है कि जीवन में सुख (उदय) और दुःख (अस्त) दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। हमें दोनों ही परिस्थितियों को समान भाव से स्वीकार करना चाहिए। जो व्यक्ति अपने बुरे समय में भी धैर्य और संयम बनाए रखता है, वही अगले दिन नई ऊर्जा के साथ उदय होता है।
-
सूर्य की पत्नी ‘प्रत्यूषा’ को समर्पण: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शाम के समय सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। संध्या अर्घ्य सीधे तौर पर सूर्य की अंतिम किरण, यानी देवी प्रत्यूषा को समर्पित किया जाता है। प्रत्यूषा की पूजा करने से संपन्नता, समृद्धि और आरोग्यता का वरदान मिलता है। यह माना जाता है कि उनकी आराधना से हर मनोकामना पूरी होती है।
क्या है शाम को सूर्य को अर्घ्य देने की सही विधि?
छठ पूजा के तीसरे दिन शाम को सभी व्रती एक साथ नदी, तालाब या घर पर बनाए गए कुंड में एकत्रित होते हैं। शाम का अर्घ्य बेहद पवित्र और दिव्यता से भरा होता है।
-
तैयारी: सूर्यास्त से ठीक पहले, व्रती स्नान कर नए, स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं।
-
सूप की सजावट: बांस के सूप या टोकरी में मौसमी फल, ठेकुआ, नारियल, दीपक, ईख (गन्ना) और पूजा की अन्य सामग्री सजाई जाती है।
-
अर्घ्य की प्रक्रिया: व्रती पानी में खड़े होकर सूर्य देव की दिशा में मुख करते हैं। जब सूर्य अस्त हो रहा होता है और उसकी लालिमा आकाश में छाई होती है, तब ‘ऊं सूर्याय नमः’ और छठी मैया के मंत्रों का जाप करते हुए दूध और जल से सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
-
जागरण: इस दौरान छठी मैय्या के पारंपरिक गीत गाए जाते हैं और परिवार की खुशहाली की कामना की जाती है। अर्घ्य देने के बाद व्रती घर आकर कोसी भरते हैं और पूरी रात जागरण करते हैं, ताकि अगली सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दे सकें।
सूर्य को अर्घ्य देने के अचूक नियम (Surya Arghya Niyam)
-
तांबे का पात्र: सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तांबे का लोटा या पात्र सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। तांबा और सूर्य की किरणों के मिलन से एक ऐसी दिव्य ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है।
-
जल में मिलाएं ये चीजें: अर्घ्य देने वाले जल में थोड़ा सा लाल चंदन, सिंदूर (रोली) और लाल फूल मिलाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
-
सही समय: सूर्य को अर्घ्य हमेशा सूर्योदय के एक घंटे के भीतर या सूर्यास्त के समय ही देना चाहिए, जब किरणें कोमल हों, तेज न हों।
-
मंत्रों का जाप: अर्घ्य देते समय सूर्य मंत्र ‘ओम सूर्याय नमः’ का कम से कम 11 बार जाप करें। इस दौरान गायत्री मंत्र का जाप करना भी अनंत फल देता है।
-
परिक्रमा: अर्घ्य देने के बाद उसी स्थान पर खड़े होकर सूर्य की ओर मुख करके तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए। यह सूर्य के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है।














