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Join NowDevark Sun Temple: जब हम प्रकृति, आस्था और सूर्य की उपासना के संगम की बात करते हैं, तो छठ महापर्व का नाम सबसे पहले आता है। यह पर्व केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि सदियों पुरानी लोकमान्यताओं और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक है। बिहार की भूमि हमेशा से ही सूर्य पूजा का केंद्र रही है, और इसका सबसे बड़ा प्रमाण यहां मौजूद वे प्राचीन सूर्य मंदिर हैं, जो आज भी अपने गौरवशाली इतिहास की कहानी कहते हैं।
इन्हीं दिव्य मंदिरों में से एक है बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देवार्क सूर्य मंदिर। यह मंदिर केवल पत्थर की संरचना नहीं, बल्कि आस्था, रहस्य और अनूठी वास्तुकला का एक ऐसा अद्भुत नमूना है, जो हर किसी को हैरान कर देता है। भगवान सूर्य के वैदिक नाम ‘अर्क’ को समर्पित यह स्थान ‘देवार्क’ (देव + अर्क) के नाम से प्रसिद्ध है, जिसका अर्थ है- ‘देवताओं के सूर्य’।
जब महादेव के त्रिशूल से सूर्य के हुए तीन टुकड़े: एक पौराणिक कथा
इस मंदिर का अस्तित्व पौराणिक कथाओं में गहराई तक समाया हुआ है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, रावण के नाना, माली-सुमाली, जो शिव के परम गण थे, कठोर तपस्या में लीन थे। उनकी तपस्या से देवराज इंद्र भयभीत हो गए। उन्होंने सूर्य देव से अपना ताप बढ़ाने का आग्रह किया ताकि राक्षसों की तपस्या भंग हो सके। जब सूर्य देव ने अपना तेज बढ़ाया तो इससे भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से सूर्य देव पर प्रहार कर दिया।
इस प्रहार से सूर्य के तीन टुकड़े पृथ्वी पर आ गिरे। मान्यता है कि पहला टुकड़ा देवार्क (बिहार) में गिरा, दूसरा टुकड़ा लोलार्क (काशी, उत्तर प्रदेश) में और तीसरा कोणार्क (ओडिशा) में गिरा। इन तीनों स्थानों पर आज भी भव्य सूर्य मंदिर स्थित हैं, जो सूर्य की दिव्यता का प्रमाण देते हैं।
देव माता अदिति की तपस्या और छठ मैया का वरदान
इस मंदिर से जुड़ी एक और कहानी देव-असुर संग्राम से संबंधित है। जब पहले देवासुर संग्राम में देवता असुरों से हारने लगे, तो देव माता अदिति ने एक तेजस्वी और सर्वगुण संपन्न पुत्र की प्राप्ति के लिए इसी देवारण्य (देवार्क) में छठी मैया की कठोर आराधना की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें एक अजेय पुत्र का वरदान दिया। इसी वरदान के फलस्वरूप त्रिदेव स्वरूप आदित्य भगवान का जन्म हुआ, जिन्होंने असुरों को पराजित कर देवताओं को विजय दिलाई। माना जाता है कि तभी से इस स्थान पर छठ पूजा की नींव पड़ी।
पश्चिम की ओर मुख वाला भारत का एकमात्र सूर्य मंदिर
देवार्क सूर्य मंदिर की सबसे रहस्यमयी और अनोखी बात इसकी वास्तुकला है। आमतौर पर सभी सूर्य मंदिरों का मुख पूरब दिशा की ओर होता है ताकि उगते हुए सूर्य की पहली किरण सीधे भगवान की मूर्ति पर पड़े। लेकिन देवार्क मंदिर पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। इसका मुख्य द्वार पश्चिम की ओर है, जो इसे भारत का सबसे अनोखा सूर्य मंदिर बनाता है।
पत्थरों को तराशकर बनाया गया यह मंदिर नागर शैली की उत्कृष्ट शिल्पकला का बेहतरीन उदाहरण है। इतिहासकार इसका निर्माण काल छठी से आठवीं सदी के बीच का मानते हैं, जबकि पौराणिक मान्यताएं इसे त्रेता या द्वापर युग का बताती हैं।
छठ महापर्व और देवार्क मंदिर का अटूट संबंध
यह वही पवित्र भूमि है, जहाँ देव माता अदिति की तपस्या से षष्ठी देवी (छठी मैया) का प्राकट्य हुआ। यही कारण है कि छठ की आराध्या देवी के रूप में छठी मैया की पूजा होती है। छठ महापर्व के दौरान देवार्क सूर्य मंदिर की दिव्यता चरम पर होती है। यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु और छठ व्रती आते हैं, जो पवित्र सूर्य कुंड में स्नान कर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यह मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मनोकामना अवश्य पूरी होती है। यह मंदिर सिर्फ एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और खगोलीय विज्ञान का एक ऐसा केंद्र है, जो सदियों से दुनिया को अपनी दिव्यता से चकित कर रहा है।














