UP News: पंचायत चुनाव से पहले पंचायती राज विभाग का अजीबोगरीब आदेश •

Published On: August 28, 2025
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UP News: पंचायत चुनाव से पहले पंचायती राज विभाग का अजीबोगरीब आदेश

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UP News:  उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव का माहौल बनना शुरू हो चुका है। ग्राम पंचायतों से लेकर जिला पंचायत तक की राजनीतिक हलचल न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि प्रदेश की राजनीति में भी बड़ा असर डालती है। ऐसे में पंचायती राज विभाग का हर कदम और हर आदेश सुर्खियों में रहता है। हाल ही में विभाग द्वारा जारी एक आदेश ने पूरे राजनीतिक गलियारों और प्रशासनिक तंत्र में खलबली मचा दी। यह आदेश इतना अजीबोगरीब था कि चौतरफा आलोचना होने लगी और अंततः इसे वापस लेना पड़ा।


क्या था आदेश?

पंचायती राज विभाग की ओर से जारी आदेश में कहा गया था कि ग्राम प्रधानों के खिलाफ शिकायत वही व्यक्ति कर सकता है जो संबंधित ग्राम पंचायत का निवासी हो। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि यदि ग्राम प्रधान किसी तरह की गड़बड़ी करता है तो बाहर का कोई भी व्यक्ति उसके खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं करा सकता।

यह आदेश न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ था बल्कि पंचायती राज विभाग जांच नियमावली 1997 के प्रावधानों के भी विपरीत था। आदेश की कॉपी सोशल मीडिया पर वायरल होते ही विपक्ष ने इसे “प्रधानों की ढाल” करार दिया।


आदेश क्यों हुआ विवादित?

  1. लोकतंत्र के मूल अधिकारों के खिलाफ – कोई भी नागरिक भ्रष्टाचार या अनियमितता की शिकायत करने का हक रखता है, उसे सिर्फ ग्राम पंचायत निवासी तक सीमित करना लोकतंत्र की भावना के खिलाफ माना गया।

  2. भ्रष्टाचार को बढ़ावा – विशेषज्ञों का मानना था कि इस आदेश से ग्राम प्रधानों को खुली छूट मिल जाएगी और उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराना लगभग नामुमकिन हो जाएगा।

  3. पारदर्शिता पर सवाल – पंचायत व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही खत्म होने का खतरा बढ़ गया था।

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आदेश की वापसी

जैसे ही यह आदेश वायरल हुआ, विपक्षी दलों ने सरकार पर तीखे हमले शुरू कर दिए। इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इसे गंभीरता से लिया। बताया जाता है कि सीएम ने सीधे नाराजगी जाहिर की और आदेश वापस लेने के निर्देश दिए।

इसके बाद विभाग की ओर से संशोधित आदेश जारी हुआ जिसमें साफ किया गया कि ग्राम प्रधानों के खिलाफ शिकायत कोई भी व्यक्ति कर सकता है, चाहे वह ग्राम पंचायत का निवासी हो या न हो।


पहले भी आदेशों पर उठ चुके हैं सवाल

यह पहली बार नहीं है जब पंचायती राज विभाग विवादित आदेशों को लेकर सुर्खियों में आया हो। हाल ही में यादव और मुस्लिम समुदाय के अवैध कब्जों की जांच को लेकर जारी आदेश की कॉपी वायरल हुई थी, जिस पर मुख्यमंत्री ने कड़ी नाराजगी जताई थी। इस मामले में अधिकारी एसएन सिंह को निलंबित कर दिया गया था।

इससे पहले भी कई बार विभाग के आदेश विपक्षी दलों के निशाने पर आए हैं।


ओम प्रकाश राजभर और विवादों का रिश्ता

पंचायती राज विभाग फिलहाल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के मुखिया ओम प्रकाश राजभर के पास है। वह योगी सरकार में मंत्री हैं और अपने विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं। आदेश के बाद विपक्ष ने सीधे राजभर पर ही निशाना साधा और कहा कि विभाग में पारदर्शिता खत्म हो रही है।

हालांकि राजभर ने सफाई देते हुए कहा कि “गलत आदेश जारी करने वाले जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई की जाएगी।”


पंचायत चुनाव में असर

यूपी में पंचायत चुनाव का राजनीतिक महत्व बेहद बड़ा है। यहां से निकलने वाले नतीजे विधानसभा और लोकसभा चुनावों पर सीधा असर डालते हैं। विपक्षी दलों ने इस आदेश को “लोकतंत्र की हत्या” बताते हुए भाजपा सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया।

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यदि आदेश वापस न होता तो निश्चित रूप से भाजपा को इसका राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता था।


विपक्ष का हमला

  • समाजवादी पार्टी ने कहा कि भाजपा ग्राम प्रधानों को बचाने की साजिश कर रही है।

  • कांग्रेस ने आरोप लगाया कि योगी सरकार पंचायत व्यवस्था में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना चाहती है।

  • बसपा ने इसे लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताया।


जनाक्रोश और सोशल मीडिया बहस

जैसे ही आदेश सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, लोगों ने जमकर विरोध किया। ट्विटर (X) पर हैशटैग #PanchayatOrder ट्रेंड करने लगा। लोगों ने सवाल उठाए कि यदि कोई व्यक्ति किसी पंचायत में गड़बड़ी देखता है तो वह क्यों शिकायत नहीं कर सकता?

यह विरोध ही था जिसने सरकार को बैकफुट पर आने को मजबूर कर दिया।


पंचायत चुनाव में पारदर्शिता की चुनौती

यूपी पंचायत चुनाव हमेशा से विवादों और हिंसा की घटनाओं के लिए सुर्खियों में रहते हैं। ऐसे में पारदर्शिता और निष्पक्षता सबसे बड़ी चुनौती है। यह आदेश पारदर्शिता के बजाय गोपनीयता और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला साबित हो सकता था।

पंचायती राज विभाग का यह अजीबोगरीब आदेश सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया था। विपक्ष के हमले और जनता के विरोध के चलते इसे वापस लेना पड़ा। हालांकि सवाल यह अब भी बना हुआ है कि आखिर बार-बार विभाग से ऐसे विवादित आदेश क्यों जारी हो जाते हैं?यूपी पंचायत चुनाव से पहले यह घटना न केवल भाजपा बल्कि पूरे राजनीतिक परिदृश्य के लिए एक बड़ा सबक है कि जनता की नजर हर आदेश और हर कदम पर है।

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