डेस्क। दुनिया में 8 अरब लोग रहते है वहीं इसके ठीक दुगुने यानी 16 अरब मोबाइल फोन है। हो सकता है कि आप यह संख्या सुनकर चौंक गए हों पर ये सौ फीसदी सच है। 16 अरब मोबाइल फोन मतलब तकरीबन 30 करोड़ टन ई कचरा या ई वेस्ट। हम इसको ई-वेस्ट क्यों बोल रहे हैं क्योंकि ये फोन सदा के लिए नहीं रहने वाले। इसमें कुछ खराब हो जाएंगे और कुछ बिना खराब हुए भी रीप्लेस कर दिए जाने हैं। कुछ फेंक दिए जाएंगे और सारे रीसाइकल भी नहीं होंगे। इसलिए कुल मिलाकर यह एक बड़े से कूड़े के अंबार में बदलकर धरती, हवा, पानी को काफी प्रदूषित करेंगे।
वेस्ट इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट (WEEE) की रिपोर्ट की माने तो इस साल दुनिया भर में कुल 5.3 अरब मोबाइल फोन फेंक दिए जाएंगे। आपको बता दें कि WEEE ई-कचरे के निवारण और सस्टेनेबिलिटी पर काम करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जिसकी रिपोर्ट ने यह चेताया गया है कि अपने घरों में रोज झाडू लगाकर घर को साफ-सुथरा रखने वाला मनुष्य अकल्पनीय गति से धरती को प्रदूषित भी कर रहा है। वहीं 5.3 अरब का यह आंकड़ा वैश्विक व्यापार के आंकड़ों पर पूर्ण रूप से आधारित है।
आपको बता दें इस रिेपोर्ट में यह दावा किया गया है कि पूरी दुनिया में ई-कचरा बहुत तेजी के साथ बढ़ रहा है और रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुत सारे लोगों के पुराने मोबाइल फोन रीसाइकल की प्रक्रिया में नहीं जाते क्योंकि या तो वे उसे लंबे समय तक संभालकर इसे रखे रहते हैं या फिर कचरे में डायरेक्ट फेंक देते हैं।
मोबाइल में 62 किस्म की अलग-अलग धातुओं का इस्तेमाल होता है जो रीसाइकल न होने की स्थिति में पर्यावरण के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकती हैं। ये धातुएं बायोडिग्रेडेबल नहीं होतीं और जमीन में सालों साल पड़ी रह सकती हैं और ऐसे रासायनिक बदलावों से गुजरती हैं जिससे हवा, पानी और मिट्टी तीनों जहरीले हो जाते हैं।
ई- कचरे में भारत का क्या है योगदान
जब ई-कचरे की बात आती है तो भारत भी इसमें पीछे नहीं है। ई कचरा पैदा करने के मामले में भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश बन चुका है। यहां पर हर साल 10 लाख टन ई-कचरा पैदा भी होता है और इस कचरे को पैदा करने में सबसे बड़ा योगदान आधुनिक शहरों का रहता है।
एक रिपोर्ट की माने तो भारत में पैदा होने वाले इस लाखों टन ई-कचरे का सिर्फ 3 से 10 प्रतिशत ही इकट्ठा करके रीसाइक्लिंग की प्रकिया में जा पाता है। वहीं नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल की दिसंबर, 2020 की रिपोर्ट के आंकड़े काफी चौंकाने वाले भी हैं, जिसमें यह कहा गया है कि वर्ष 2017-18 में 35,422 टन ई-कचरा इकट्ठा किए जाने का लक्ष्य था पर हुआ सिर्फ 25,325 टन। इसके बाद 2018-19 में भी 1,54,242 टन का लक्ष्य रखा गया था, पर जमा सिर्फ 78,281 टन हुआ। 2019-20 में भारत ने 10,14,961 टन ई-कचरा भी पैदा किया था।