डेस्क। Chanakya Niti । आचार्य चाणक्य ने जीवन दर्शन को विस्तार से समझाया है और आचार्य चाणक्य ने बताया है कि एक व्यक्ति को अपने जीवन में किस प्रकार का पुत्र बनना चाहिए और पुत्र में किन-किन गुणों का होना बेहद जरूरी है।
यहां इन श्लोकों में आचार्य चाणक्य ने विस्तार से किया जिक्र –
वरमेको गुणी पुत्रो निर्गुणैश्च शतैरपि।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च ताराः सहस्रशः ।।
आचार्य चाणक्य ने बोला है कि सैकड़ों गुणरहित और मूर्ख पुत्रों के बजाय एक गुणवान और विद्वान पुत्र का होना काफी अच्छा है क्योंकि हजारों तारों की अपेक्षा एक चंद्रमा से ही रात्रि प्रकाशित भी होती है। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि सैकड़ों मूर्ख पुत्रों की अपेक्षा एक विद्वान और गुणों से युक्त पुत्र से ही पूरे परिवार का कल्याण संभव होता है। रात के समय जिस प्रकार आकाश में हजारों तारे दिखाई देते हैं लेकिन उससे अंधकार दूर होने में सहायता नहीं मिलती, पर एक चंद्रमा की रोशनी ही काफी शीतलता प्रदान करती है। आचार्य की दृष्टि में संख्या नहीं गुण का विशेष स्थान था। इसलिए माता-पिता को अपने पुत्र में गुण को विकसित करना चाहिए।
मूर्खश्चिरायुर्जातोऽपि तस्माज्जातमृतो वरः।
मृतः स चाऽल्पदुःखाय यावज्जीवं जडो दहेत् ॥
आचार्य चाणक्य ने एक अन्य श्लोक में पुत्र के बारे में बोला है कि दीर्घ आयु वाले मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पैदा होते ही मर जाने वाला पुत्र ज्यादा श्रेष्ठ है क्योंकि पैदा होते ही मर जाने वाला पुत्र सिर्फ कुछ ही समय के लिए दुख का कारण बनता है, लेकिन लंबी आयु वाला मूर्ख पुत्र जीवन भर के लिए दुख का कारण बन जाता है।
आचार्य चाणक्य ने बताया है कि जन्म लेते ही यदि संतान की मृत्यु हो जाती है, तो माता-पिता निराशा के अंधकार में डूब जाते हैं और भविष्य में इस मृत संतान को लेकर कोई सुख-दुख की उम्मीद भी नहीं रहती है, लेकिन यदि पुत्र मूर्ख हो तो माता-पिता की आशा के टुकड़े-टुकड़े करता देता है। और इस दुख से पहला दुख ज्यादा ठीक माना जा सकता है।