डेस्क। बसपा सुप्रीमो मायावती 2007 से पहले नारा देती थीं कि तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार पर 2007 के चुनाव में उन्होंने सभी को भौचक कर दिया था। मायावती ने ब्राह्मण और दलितों का ऐसा गठजोड़ तैयार किया कि वो अपने दम पर यूपी असेंबली की 403 में से 206 सीटें जीतकर सूबे की चीफ मिनिस्टर भी बन गईं। उनको पता था कि केवल दलित वोटों के सहारे सीएम बनना एकदम नामुमकिन है।
अब यूपी निकाय चुनाव से पहले अखिलेश यादव का सियासी पैंतरा देखा जाए तो लग रहा है कि वो भी मायावती के 2007 वाले नक्शे कदम पर ही हैं। अखिलेश को भी दिख रहा है कि M-Y मुस्लिम-यादव वोट बैंक के सहारे सपा की फिर से सत्ता में वापसी अब संभव नहीं हो सकती। इस लिहाज से उन्होंने भी 2024 के चुनाव को देखते हुए सोशल इंजीनियरिंग की तैयारी शुरू कर दी है।
यूपी के निकाय चुनावों में मेयर की सीट बेहद अहम मानी जाती है और नेता मेयर बनने के लिए एड़ी चोटी का जोर भी लगाते दिखते हैं। लेकिन अखिलेश ने इस बार किसी भी यादव को मेयर का टिकट न देकर साफ कर दिया है कि वो अपनी मुस्लिम-यादव वाली छवि से बाहर निकलने का प्रयास कर रही हैं। उनकी कोशिश है कि दूसरे ओबीसी तबकों के साथ ब्राह्मण भी सपा से जुड़ें और आगे के लिए भी पार्टी की छवि में सुधार हो।