डेस्क। कुछ महीने पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने शास्त्रों का हवाला देते हुए समलैंगिकता को भारतीय संस्कृति का हिस्सा कहा था। लेकिन अब संघ के ही एक वरिष्ठ नेता ने समलैंगिक संबंधों को राक्षसों से जोड़ते हुए इसे अप्राकृतिक भी बताया है। उनका यह कहना है कि समलैंगिक संबंध भारतीय शास्त्रों में अपराध हैं और यह राक्षसों वाली प्रथा है। इतना ही नहीं समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले ऐतिहासिक 2018 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों की भी आरएसएस नेता ने आलोचना करी है। और उन्होंने समलैंगिकता को अप्राकृतिक कहा है।
द ऑर्गेनाइजर के एकआर्टिकल में किया गया बड़ा दावा
आरएसएस से संबंधित मैगजीन द ऑर्गेनाइजर में छपे एक लेख में संघ की श्रमिक शाखा, भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के पूर्व अध्यक्ष सीके साजी नारायणन ने यह दावा किया कि भारत के धर्मशास्त्र इस तरह के यौन व्यवहार को अपराध भी मानते हैं। नारायणन ने अपने आर्टिकल में बोला गया है कि रामायण में समलैंगिकता का उल्लेख एक प्रथा के रूप में किया गया है, जिसे हनुमान ने लंका में देखा था। साथ ही उन्होंने कहा कि धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र में समलैंगिकता को दंडित भी किया गया है।
रामायण का जिक्र करते हुए किया गया यह दावा
उन्होंने यह कहा है कि, “…समलैंगिकता का उल्लेख रामायण में राक्षस महिलाओं के बीच एक प्रथा के रूप में किया गया था, जिसे हनुमान ने लंका में देखा भी था। धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र समलैंगिकता को दंडित करते हैं।”
इसके साथ ही उन्होंने साल 2018 के सुप्रीम कोर्ट के तीन बड़े फैसलों का जिक्र करते हुए उन्होंने बोला है कि इन मामलों में फैसला सुनाते समय संवैधानिक नैतिकता के नाम पर अमेरिकी और पश्चिमी सिद्धांतों को लागू भी किया गया है। उन्होंने जिन तीन फैसलों का जिक्र किया उसमें सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति, व्यभिचार के साथ-साथ समलैंगिकता को भी अपराध की श्रेणी से बाहर करना भी शामिल है।