डेस्क। वो 1999 के अगस्त महीने की 17 तारीख थी और उस दिन सुबह के तीन बजे थे। वहीं सभी लोग अभी गहरी नींद में थे कि अचानक धरती ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगी और रिक्टर स्केल पर उस भूकंप की तीव्रता 7.6 की मापी गई। इस लिहाज़ से उसे इस साल फ़रवरी में आए 7.8 की तीव्रता के भूकंप से थोड़ा कमज़ोर भी माना जा सकता है।
लेकिन कुछ दिनों पहले तक 24 साल पहले के उस भूकंप को तुर्की के इतिहास का सबसे भयंकर भूकंप भी माना जाता था। उस भूकंप का केंद्र घनी आबादी वाले इलाक़े इज़मित में था इसलिए नुक़सान भी बहुत ज़्यादा हुआ।
उस भूकंप में 17 हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए और 23 अरब डॉलर से ज़्यादा का नुक़सान भी हुआ था।
व्यापक तबाही के अलावा 17 अगस्त 1999 के उस भूकंप और इस साल 6 फरवरी को तुर्की और सीरिया में आए दोहरे भूकंप के बीच कई और भी समानताए गिनाई जाती हैं।
तुर्की के लोगों ने ऐसा सोचा भी नहीं होगा कि 24 साल बाद एक भूकंप ऐसा फिर आएगा, जिससे हुई तबाही के आगे 1999 की वो बर्बादी बौनी साबित होगी।
वहीं संयुक्त राष्ट्र के डिज़ास्टर रिस्क प्रिवेंशन ऑफ़िस के आंकड़ों के मुताबिक़, 17 अगस्त 1999 के उस भूकंप में 12 हज़ार इमारतें या तो ध्वस्त हो गई थीं या उन्हें गंभीर नुक़सान हुआ था और इसकी वजह थी- ख़राब निर्माण और इमारतों के निरीक्षण में कमी का होना।
उस आपदा में ख़राब प्रबंधन के लिए तत्कालीन तुर्की सरकार की कड़ी आलोचना भी हुई थी।
तब मौजूदा राष्ट्रपति रिचेप तैय्यप अर्दोआन की पार्टी जस्टिस एंड डेवेलपमेंट पार्टी (एकेपी) तुर्की में मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में हुआ करती थी और सरकार के ख़िलाफ़ उस जनमत को अर्दोआन और उनकी पार्टी ने बखूबी भुनाया और 2002 के चुनाव में भारी बहुमत से उन्हें जीत भी मिली थी।
अर्दोआन आज 20 साल बाद भी तुर्की की सत्ता में ही हैं। लेकिन उस आपदा ने जो सबक दिए थे, वो उसे भूल गए हैं।
17 अगस्त 1999 के दिन 37 सेकेंड तक धरती डोलती रही थी और भूकंप तुर्की के उत्तरी-पश्चिमी इलाक़े मे आया था। यह तुर्की के इस हिस्से में सबसे घनी आबादी वाली बस्तियां और औद्योगिक इलाक़े हैं वहीं ये पूरा इलाक़ा भूकंप से सबसे ज़्यादा प्रभावित भी हुआ।
भूकंप का केन्द्र कोसायेली इलाक़े में था, जिसकी राजधानी इज़मित है और इसका असर इस्तांबुल, गोलकुक, डारिका, साकार्या और डेरिंस तक महसूस किया गया।