इतिहास– मुगलों ने भारत पर कई प्रकार से अत्याचार किये। हिंदुओ को अपना गुलाम बनाया। राजपूतों के खून से खेले और महिलाओं के साथ अभद्रता की सभी हदे पार कर दी। मुगलों के अत्याचारों से ऐसा कोई नहीं है जो परिचित न हो वही जब देश मे मुगल साम्राज्य का अंत होने वाला था तभी देश में अंग्रेजों का आगमन हुआ। भारत मे अंग्रेजों का आना एक नए संकट की दस्तक था।
जब विदेशी भरभराकर भारत आ रहे थे तो अफगानों ने इस मौके का फायदा उठाया और भारत को लूटना शुरू किया। अफगान दिल्ली पहुंचते और लूटपाट करते। इसकी शुरुआत 1736 में नादिरशाह के आक्रमण के साथ हुई थी। नादिरशाह एक निरंकुश व्यक्ति था उसके मन मे दया नाम की कोई चीज नही थी। उसने न तो मुगलों को छोड़ा और न ही भारत के लोगो को। उसकी नजर में सब उसके दुश्मन थे और उसने सभी के साथ निरंकुश व्यवहार किया।
नादिरशाह इतना निष्ठुर था की उसे लोगो को प्रताड़ित करने में आनंद की अनुभूति होती थी। नादिरशाह के इतिहास खून की स्याही का इतिहास कहा जाता है। कहते हैं इसने हर किसी को अपनी क्रूरता का शिकार बनाया और इसके लिए ईश्वर भी यही था और यम भी। तो आइये जानते हैं आखिर कौन था यह क्रूर नादिरशाह जिसका इतिहास खून से लिखा गया है…….
जाने नादिरशाह की क्रूरता की कहानी….
1736 में फारस के शाह तहमास्प की मौत के बाद नादिरशाह ने सत्ता संभाली और अफगानों से विरोध शुरू कर दिया। 12 मार्च 1738 को नादिरशाह ने कंधार पर अपनी जीत का परचम लहराया। कंधार जीतने के बाद नादिरशाह की नजर भारत पर थी। इसका एकमात्र उद्देश्य भारत फतेह करना था।
नादिरशाह ने रणनीति तैयार की और मुगलों से मित्रता दिखाई। मुगलों को बताया की वह उनका हितैषी है और उसकी मित्रता सच्ची है वह महज अफगान के लोगो को दंड देने के लिए यहां आया है। इसी बीच उसने अपनी ताकत का परिचय देते हुए काबुल, गजनी, जलालाबाद, पेशावर पर अधिकार कर लिया था। लेकिन अभी तक वह भारत पर अपनी क्रूरता नही दिखा रहा था।
नादिरशाह का व्यवहार मुगलों की प्रजा के साथ सामान्य था। लेकिन जब जलालाबाद के पास एक बार उसके एक दूत की हत्या कर दी गई। तो वह तिलमिला उठा उसने मौत का आदेश पारित किया। नादिरशाह की क्रूरता यही से स्थापित होने लगी कोई ऐसी गर्दन नही बच रही थी जो नादिरशाह की तलवार से न कटी हो।
नादिरशाह ने धीरे धीरे भारत मे अपने पैर पसारने शुरू किए। पहले उसने पंजाब में कदम रखे। उसकी क्रूरता को देखकर राजाओं ने उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया। पंजाब के बाद वह दिल्ली की ओर चला। साल 13 फरवरी 1739 की है, जब दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह ने उसे रोकने की कोशिश की तो दोनो के मध्य युद्द हुआ। जब शाह को लगा वह हार जायेगे तो उन्होंने नादिरशाह के साथ संधि कर ली।
9 मार्च से उसने दिल्ली में अपनी क्रूरता शुरू कर दी। नादिरशाह ने सरेआम कत्लेआम का आदेश पारित कर दिया। उसके आदेश से सैनिकों ने तलवारें उठा ली और खून की नदियां बहने लगी। देखते ही देखते 20 हजार से ज्यादा लोगो की मौत हो गई। लूट पाट शुरू हो गई और हर ओर तबाही मच गई। महिलाओं को बंदी बनाया गया। लोगो की आंखों के सामने उनके अपनो को जिंदा जला दिया गया। कहा जाता है उस समय नादिरशाह ने भारत मे करीब 3 करोड़ रुपये की लूटपाट की थी और वह वो अपने साथ कोहिनूर, मयूर सिंहासन, बहुमूल्य आभूषण और काफी पैसा ले गया।