रोचक– ब्रहमांड को किसने बनाया इस बारे में आप कुछ भी सोचते हों, कोई फर्क नहीं पड़ता किसी ने अचानक एक दिन कहा प्रकाश होने दो (लेट देयर बी लाइट) या एक बड़े विस्फोट (Big bang) के जरिए या किसी भगवान ने लापरवाही में इसे अपनी नाभी से पैदा कर दिया मगर एक बात जिस पर आप सहमत होंगे वो यह है कि यह संसार काफी बड़ा है और उससे कहीं अधिक जटिल है, जो मौजूदा मानव मन की समझ के परे है.
एक गणना के मुताबिक गोलाकार, आंखों से साफ दिखने वाले ब्रह्मांड के एक छोर से दूसरे छोर तक यात्रा करने में 92 अरब प्रकाश वर्ष लगेंगे. हम जानते हैं कि प्रकाश 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से यात्रा करता है. इससे आप दूरी का अनुमान खुद लगा सकते हैं.
पृथ्वी से लगभग 1 मिलियन मील दूर लैग्रेंज पॉइंट (L2) पर मौजूद जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ब्रह्मांड का बगैर किसी अवरोध के दृश्य प्रदान करता है. ब्रह्मांड को लेकर मौजूदा जानकारी में यह कई मान्यताओं और सिद्धांतों में लगातार सुधार करवा रहा है.
उदाहरण के लिए बिग बैंग सिद्धांत को ही लें. अब, ऐसा लगता है कि शून्य में से एक विशाल विस्फोट पूरे ब्रह्मांड को पैदा नहीं कर सकता. इसमें कोई संदेह नहीं है कि जैसे-जैसे जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप हमें अंतहीन खगोलीय क्षितिज में और अधिक डेटा भेजता है, हम अपने ब्रह्मांड के बारे में और भी बहुत कुछ जानेंगे.
लेट देयर बी मेटावर्स-
अब अरबों-खरबों मील दूर से पृथ्वी की ली गई नीली गोल तस्वीर पर वापस लौटते हैं. यह मनुष्य का अक्खड़पन ही है जो वह एक आभासी ब्रह्मांड के बारे में बोलता है. यह एक तीन डायमेंशन वाले किसी कंप्यूटर गेम से ज्यादा कुछ नहीं है जहां प्रतिभागी एक आभासी अवतार या एक आभासी हेडसेट वाला वास्तविक मानव है.
मगर सवाल है कि मनुष्य को मेटावर्स क्यों बनाना चाहिए? ‘क्यों नहीं? एक बंधा-बंधाया उत्तर मिलता है. आखिर धर्म और दर्शन यही बताते है कि मनुष्य खुद भगवान की तरह ही बनाया गया है. या शायद वह खुद भगवान ही है. “अहम् ब्रह्मास्मि” हिन्दुओं के उपनिषद ने तो उसे भगवान घोषित कर भी दिया है. इसलिए माना जा सकता है कि मनुष्य भगवान की भूमिका निभा सकता है और निभाएगा भी.
हालांकि इसमें एक समस्या है. अपने स्वयं के प्रजनन को छोड़कर मनुष्य के किसी भी निर्माण के सभी प्रयास केवल ‘कृत्रिम’ और अकार्बनिक परिणाम रहे हैं. यहां भी वह भगवान की ही दी हुई चीजों का इस्तेमाल कर ही निर्माण कर रहा होता है.
सर्दी की सुबह में सूरज की उमस भरी गर्मी, पहाड़ों पर बह रही ठंडी हवा, झरने का ताज़ा पानी, बारिश के बाद गीली धरती की सोंधी सुगंध, अपने नवजात शिशु को पहली बार अपने हाथ में पकड़ने का अहसास… क्या मनुष्य आभासी दुनिया में भी वैसा ही महसूस करेगा जिसमें मस्तिष्क को तकनीक थोड़ी देर के लिए चकमा दे दे? उत्तर है नहीं.
वेब 2.0 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हावी-
इसलिए, मनुष्य का मेटावर्स उस वास्तविक दुनिया से कहीं अधिक खराब होगा, जिसमें वह रहता है. वास्तविक दुनिया के प्रभावों से महरूम, आभासी व्यक्ति के स्वयं के एक बदतर संस्करण होने की आशंका है.
इसमें धमकाना, हमला करना और धोखाधड़ी करना सब कुछ बहुत आसान हो जाएगा. पहले से ही मेटावर्स के माध्यम से दुर्व्यवहार की खबरें आ रही हैं जिसमें सीधे-सीधे छेड़छाड़ से लेकर हमले से लेकर उत्पीड़न तक शामिल हैं. वेब 2.0 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हावी है.
पहले से ही यहां कई लोग इस तरह से व्यवहार करते हैं जैसा वह सामान्य रूप से वास्तविक दुनिया में नहीं करते. छद्म, नकली पहचान बनाकर आभासी दुनिया में आसानी से आया जा सकता है. अपने वर्चुअल अवतार और ब्लॉकचेन तकनीक के साथ वेब 3.0 में आघात को और भी वास्तविक बना देने की क्षमता है.
एक महिला के आभासी अवतार को भद्दे नाम से हम पुकार सकते हैं या उसके साथ छेड़छाड़ भी की जा सकती है जो उसके वास्तविक जीवन से भी ज्यादा दर्दनाक हो सकता है. 3-डी गेम पहले से ही कई लोगों के लिए ड्रग्स की तरह नशे की लत साबित हो चुके हैं. मानसिक स्वास्थ्य जो आज एक मौन, वैश्विक महामारी है कल और भी बड़ी समस्या बन सकती है.
मेटावर्स के लिए बेहतर केवाईसी-
यदि मेटावर (या मेटावर्स क्योंकि ऐसे कई होंगे) को सभी के लिए सुरक्षित होना है तो इसका आधार वेब 2.0 की तुलना में और बेहतर और मजबूत केवाईसी ( नो योर कस्टमर) होनी चाहिए. इसके बाद समाज में स्वीकार्य व्यवहार और अपराध करने वालों के लिए उचित दंड पर बहस की जरूरत है. (वास्तविक जीवन में जो चीजें पूरी तरह से अवैध हैं कई वीडियो गेम्स में अंक अर्जित करने का एकमात्र तरीका वही है).
इस मुद्दे पर बहस आसान नहीं होगी. उदाहरण के लिए यदि मेरा अवतार एक आभासी अपराध करता है जैसे सड़क के चौराहे पर रेड लाइट जंप करना, तो उसे किस तरह से दंडित किया जाना चाहिए? अधिकांश लोग यही कहेंगे कि आभासी दुनिया में जुर्माने के साथ और वह सही भी होंगे. लेकिन तब क्या होगा जब कोई वर्चुअल अवतार किसी बच्चे या महिला से ऑनलाइन छेड़छाड़ करता है?
क्या उस शख्स को असल जिंदगी में सजा मिलनी चाहिए? अधिकांश फिर कहेंगे, हां. लेकिन इसमें कई चीजें फिलहाल साफ नहीं हैः नस्लीय दुर्व्यवहार, दादागीरी, डिजिटल संपत्ति की चोरी (नाइके के विशेष संस्करण की एक जोड़ी की चोरी के बारे में सोच सकते हैं), मनुष्यों के विवाहित आभासी अवतारों के बीच तलाक या एक ‘आभासी’ वित्तीय धोखाधड़ी से कैसे निपटा जाय?
क्या अदालतें तैयार हैं?
वास्तविक जीवन के रीति-रिवाजों, मानदंडों, परंपराओं और नियमों को आभासी दुनिया में किस स्तर तक स्थानांतरित किया जा सकता है? धीरे-धीरे आभासी यथार्थवाद की आवधारणा मूर्त रूप लेने लगी है. कुछ परिदृष्यों में आभासी वास्तविकता असलियत जैसी लगती है.
लेकिन क्या हमारी अदालतें और मौजूदा कानून ऐसे मुद्दों से निपटने के लिए तैयार हैं? अब तक का जवाब है, नहीं. इसका मतलब है कि हमें मेटावर्स के लिए विशेष रूप से बने कानूनों की एक पूरी नई सेट की आवश्यकता होगी.
इस लेख की शुरुआत में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देने के लिए (“मनुष्य को मेटावर्स में अधिक सुख मिलेगा या दुःख?”), मुझे लगता है कि हम अब तक के मानवता के ट्रैक रिकॉर्ड से एक संकेत ले सकते हैं. क्या मनुष्य ने प्रगति हासिल की है और सामान्य रूप से जीवन में खुशियों के पल में बढ़ोतरी की है? इसका उत्तर सीधे-सीधे हां है.
मगर इसके साथ ही एक और प्रश्न खड़ा होता है कि क्या मनुष्य ने दुनिया को बदतर बनाने का कोई भी अवसर खोया है? क्या वह विनाशकारी युद्ध नहीं लड़ता, जंगलों को नहीं काटना, पृथ्वी के संसाधनों को नहीं लूटना, दूसरे जानवरों को नहीं मारता? दुर्भाग्य से उसने इन्हें रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया.
इसलिए, जबकि मेटावर्स के अपने लाभ हो सकते हैं, हममें से कुछ ऐसे भी होंगे जो विकृत कारणों से इसका फायदा उठाना चाहेंगे, न कि अच्छे के लिए. तब यह हमें अपने बारे में क्या बताता है? यही कि मनुष्य को जो मूर्त रूप देता है वह उसकी नीयति और आवेग है. चाहे वह भगवान का महान ब्रह्मांड हो या मनुष्य का मेटवर्स.
Note – यह खबर टीवी9 भारतवर्ष से ली गई है। बोल बिंदास टीम ने इस खबर में हेडलाइन के अलावा कुछ नही लिखा है।