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सबसे ताकतवर होते हुए भी नेपाल पर शासन नहीं कर सके मुगल 

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सबसे ताकतवर होते हुए भी नेपाल पर शासन नहीं कर सके मुगल 

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डेस्क। मुगल साम्राज्य की स्थापना बाबर ने करी थी, लेकिन अकबर के शासनकाल में इसका काफी विस्तार हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप पर अकबर ने ही मुगल साम्राज्य का दबदबा भी बढ़ाया था। इसका सबसे ज्यादा विस्तार औरंगजेब के शासनकाल में हुआ था।

ये वो दौर था जब मुगल फौज जिस किले के सामने खड़ी हो जाती थी उस किले को या तो युद्ध में जीत लेती थी या फिर संबंधित राजा को संधि यानी समझौता कर मुगल आधीनता स्वीकार करनी पड़ जाती थी।

काबुल से लेकर कावेरी घाटी और गुजरात से लेकर बंगाल तक सिर्फ मुगलों का ही वर्चस्व स्थपित हो गया था, पर एक इलाका ऐसा था जिस पर हमला करने की ताकत मुगल कभी जुटा नहीं सके। यह इलाका था नेपाल का। ऐसा नहीं कि मुगलों ने कभी इस पर आधिपत्य का विचार नहीं किया, न तो अकबर ही इसकी हिम्मत जुटा पाया और न ही औरंगजेब ने कभी इस ओर देखा था। इतिहासकार इसकी कई वजह बताते हैं पर जो सबसे बड़ी वजह थी वह थी कुदरती तौर पर इसका इतना मजबूत होना।

कुदरती किला था नेपाल

मुगलों के जमाने में भी नेपाल का व्यापारिक नजरिए से खास स्थान रहा था, लेकिन ये भौगोलिक तौर पर बहुत मजबूत था और यहां की ऊंची चोटियां, पहाड़ी इलाका। इसके एक कुदरती किले के तौर पर मजबूत भी बनाती थी। मुगल सेना की ताकत घोड़े-ऊंट और हाथी भी होते थे।

 इतिहासकार ऐसा भी मानते हैं कि पहाड़ी इलाका होने की वजह से मुगल की सेना की ताकत माने जाने वाले घोड़े-ऊंट और हाथी ही उसकी कमजोरी भी बन सकते थे। और इसके अलावा वहां की ठंड भी बहुत परेशान करने वाली थी। मुगलों से पहले जिन शासकों ने नेपाल पर कब्जे का प्रयास किया उन्हें इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा था और युद्ध में मात भी खानी पड़ी थी।

फायदा देखते थे मुगल

मुगल हमेशा अपना फायदा ही देखते थे और मुगल भारत का इतिहास पुस्तक के मुताबिक मुगल शासक हमेशा उस जगह पर कब्जा करते थे जहां से उन्हें धन दौलत आदि मिले। बेशक नेपाल का व्यापारिक महत्व था और वहां पर कब्जा जमाकर मुगलों को फायदा भी होता, पर उससे ज्यादा युद्ध में खर्च भी हो जाता।

खून जमा देती थी सर्दी

नेपाल की सर्दी खून जमा देने वाली होती थी और 1349 में जब बंगाल के सुल्तान शम्सुद्दीन ने नेपाल पर कब्जे की कोशिश की थी तो उसकी सेना को सबसे ज्यादा सर्दी ने ही नुकसान पहुंचाया था। सैनिकों की खराब तबीयत, बीमारी और गोरखाओं के संघर्ष को देखते हुए शम्सुद्दीन को वापस लौटना पड़ गया था।